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Aug 14, 2013

बदलते सपने चूड़ियों जैसे

बदलते सपने
चूड़ियों जैसे
- ज्योत्स्ना प्रदीप
1
जब से पिता
छोड़ चले हैं घर
माँ है सावन।
2
भरी कलाई
सूनी सड़क बन
ताके मौसम।
3
हमारा दर्द
आपमें बसता था
दर्द यही है।
4
ऐसा बाबुल
किसका होगा भला
इतना भला!
5
चुप लेटी हैं
मायके की गलियाँ
कुछ दिनों से।
6
आँखों का पानी
कह रहा माँ की
एक कहानी।
7
बहा न सके
दर्द मन का सारा
बहते आँसू।
8
उमर भर
बदलते सपने,
चूड़ियों जैसे।
9
पावन मन
ये निष्पाप नयन
फिर भी आँसू!
10
राखी के धागे
वो बड़े हैं अभागे
जो नहीं बँधे।
11
माँ और बाप
वात्सल्य का अनन्त
पूर्ण  आलाप।
12
टूटते घर
बन रहे मकान
सुबह-शाम।

13
सपने सारे
कच्ची बेल -से फैले
ले के सहारे।
14
जीवन बीता
वो कभी बनी राधा
तो कभी सीता।
15
हिम-सा दर्द
हँसी की मीठी धूप
पिघला गई।
16
खो गई सारी
वे कागज़ की नावें
सूखा है गाँव।
17
हथेली पर
लकीरों में उगी है
पूरी जि़न्दगी।
18
याद तुम्हारी
बन गई है अब
सितार गूँगा।
19
घर-मकान
खिंच गई दीवार
टूटते रिश्ते।
20
खो गई सभी
कागज़ की नावें थीं
चुप है नदी।
21
कौन किसका?
कोई हँस पड़ा तो
कोई सिसका।
22
गिरी है आज
कलियों पर ओस
रोया है कोई।
23
तू तो फरिश्ता
मैं हूँ एक इंसान
ये कैसा रिश्ता?
24
काली रात में
तुम्हारी याद हुई
सोनम भोर।

सम्पर्क: क्वार्टर नं-5, टाइप-3, सी आर पी 'एफ़' कैम्पस, जलन्धर 144801 (पंजाब)Email- ps9353@gmail.com

2 comments:

Anita Lalit (अनिता ललित ) said...

ज्योत्स्ना जी... इतने भावपूर्ण, इतने मार्मिक हाइकु....सच में दिल भर आया... :(
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति !

~सादर!!!

Unknown said...

धन्यवाद, रत्ना जी जो मेरी रचनायो को अपनी पत्रिका में स्थान दिया. आभारी हूँ।