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डॉ. श्याम सखा ‘श्याम’
आज नहीं तो
कल होगा
हर मुश्किल
का हल होगा ।
जंगल गर
ओझल होगा
नभ भी बिन
बादल होगा ।
नभ गर बिन
बादल होगा
दोस्त कहाँ
फ़िर जल होगा ।
आज बहुत
रोया है दिल
भीग गया काज़ल
होगा ।
आँगन बीच
अकेला है
बूढ़ा- सा
पीपल होगा ।
दर्द- भरे
हैं अफ़साने
दिल कितना
घायल होगा ।
छोड़ सभी जब
जाएँगे
तेरा ही
संबल होगा ।
झूठ अगर
बोलोगे तुम
यह तो खुद
से छल होगा ।
रोज़ कलह
होती घर में
रिश्तों
में दल-दल होगा ।
संपर्कः निदेशक,
हरियाणा साहित्य अकादमी ,
अकादमी भवन, पी-16, सेक्टर-14,पंचकूला-134113
मो.-09416359019,
Email-
shyamskha1973@gmail.com
1 comment:
जंगल का न होना, फिर बादल का न होना ,बादल न होने पर जल का न होना, परस्पर नाखून और मांस कि तरह जुड़ा है, जिसे श्याम जी ने बहुत सहजता से व्यक्त किया है। घर की कलह रिश्तों को दलदल बना देती है , यह आज के पारिवारिक विघटन का कटु सत्य है। कम से कम शब्दों में जीवन और जगत का सत्य पेश कर दिया है ।विनोद सव जी का नक्सली अन्दोलन पर प्रस्तुत विश्लेषण तार्किक है।भैरव प्रसाद की कहानी 'एक पाँव का जूता'बहुत मार्मिक है। पाठक को द्रवित किए बिना नहीं रहती। क्या इस तरह की कालजयी रचना सेहमारे राजनेता कुछ सीखेंगे?अँधियारे रास्ते और उजला सवेरा-भावना सक्सैना जी का आलेख शोषण के इतिहास को परत -दर -परत खोलने में सक्षम हैं । अपने साढ़े तीन साल के प्रवास में आपने भारतीयों की 140 साल पहली पीड़ा को पाठकों के समक्ष रखा ऽनुपम मिश्र का आलेख और डॉ रत्ना जी का सम्पादकीय हमें वर्त्तमान की अपरिहार्य चिन्ता से रूबरू कराते हैं। छोटी -पत्रिका में साहित्य और समाज के व्यापक फलक को प्रस्तुत किया गया है । अनिता ललित के हाइकु गागर में सागर की तरह हैं साथ ही अभिव्यक्ति की ताज़गी को भी सँजोए हैं।
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