(राम प्रसाद 'बिस्मिल' की अन्तिम रचना)
मिट गया जब मिटने वाला फिर सलाम आया तो क्या!
दिल की बर्बादी के बाद उनका पयाम आया तो क्या!
मिट गईं जब सब उम्मीदें मिट गए जब सब खयाल,
उस घड़ी गर नामावर लेकर पयाम आया तो क्या!
ऐ दिले- नादान मिट जा तू भी कू- ए- यार में,
फिर मेरी नाकामियों के बाद काम आया तो क्या!
काश! अपनी जिंदगी में हम वो मंज़र देखते,
यूँ सरे-तुर्बत कोई महशर- खिराम आया तो क्या!
आखिरी शब दीद के काबिल थी 'बिस्मिल' की तड़प,
सुब्ह- दम कोई अगर बाला- ए- बाम आया तो क्या!
गोरखपुर जेल से चोरी छुपे बाहर भिजवायी गयी इस ग़ज़ल में प्रतीकों के माध्यम से अपने साथियों को यह सन्देशा भेजा था कि अगर कुछ कर सकते हो तो जल्द कर लो वरना सिर्फ पछतावे के कुछ भी हाथ न आयेगा।
मिट गया जब मिटने वाला फिर सलाम आया तो क्या!
दिल की बर्बादी के बाद उनका पयाम आया तो क्या!
मिट गईं जब सब उम्मीदें मिट गए जब सब खयाल,
उस घड़ी गर नामावर लेकर पयाम आया तो क्या!
ऐ दिले- नादान मिट जा तू भी कू- ए- यार में,
फिर मेरी नाकामियों के बाद काम आया तो क्या!
काश! अपनी जिंदगी में हम वो मंज़र देखते,
यूँ सरे-तुर्बत कोई महशर- खिराम आया तो क्या!
आखिरी शब दीद के काबिल थी 'बिस्मिल' की तड़प,
सुब्ह- दम कोई अगर बाला- ए- बाम आया तो क्या!
गोरखपुर जेल से चोरी छुपे बाहर भिजवायी गयी इस ग़ज़ल में प्रतीकों के माध्यम से अपने साथियों को यह सन्देशा भेजा था कि अगर कुछ कर सकते हो तो जल्द कर लो वरना सिर्फ पछतावे के कुछ भी हाथ न आयेगा।
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