हाऊस वाइफ के अस्तित्व पर उठते सवाल?
- वन्दना गुप्ता
क्या हाऊस वाईफ सिर्फ बच्चे पैदा करने और घर सँभालने के लिए होती हैं ?
क्या हाऊस वाईफ का परिवार, समाज और देश के प्रति योगदान नगण्य हैं ?
यदि नहीं हैं तो क्यों ये आजकल के लाइफ इंश्योरेंस, बैंक या म्युच्यूवल फंड वाले फोन पर पूछते हैं कि आप हाऊस वाईफ हैं या वर्किंग वुमैन? आर्थिक निर्णय तो सर लेते होंगे?
इस तरह के कई प्रश्न करके क्या ये लोग हाऊस वाईफ के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह खड़ा नहीं कर रहे हैं?
आखिर क्यों आज इतने पढ़े लिखे होकर भी ऐसी अनपढ़ों जैसी बात पूछी जाती हैं और सबसे मजेदार बात तो ये है कि इस तरह के प्रश्न पूछने वाली महिला ही होती है।
ऐसे सवाल पूछते समय क्यूँ उसे शर्म नहीं आती। वह क्यों नहीं सोच पाती कि महिलाएं वर्किंग हों या हाऊस वाईफ उनका योगदान देश के विकास में एक पुरुष से किसी भी तरह कमतर नहीं है। जबकि आज सरकार ने भी घरेलू महिलाओं के योगदान को सकल घरेलू उत्पाद में शामिल करने का निर्णय लिया है...
अपने त्याग और बलिदान से, प्रेम और सहयोग से हाउस वाईफ इतना बड़ा योगदान करती है यह बात ये पढ़े- लिखे अनपढ़ क्यों नहीं समझ पाते?
जबकि हम सब जानते हैं कि एक स्वस्थ और खुशहाल समाज इन्हीं हाऊस वाईफ की देन है। आज बच्चों की परवरिश और घर की देखभाल करके हाऊस वाईफ अपना जो योगदान दे रही है वह किसी भी वर्किंग वूमैन से कम नहीं आंकी जा सकती है... आखिर इतनी सी बात भी इन बड़ी- बड़ी कंपनियों को समझ नहीं आती ?
पति और पत्नी दोनों शादी के बाद एक इकाई की तरह होते हैं तो फिर सिर्फ आर्थिक निर्णय लेने की स्थिति में एक को ही महत्व क्यूँ दिया जाता है? क्या सिर्फ इसलिए क्योंकि वह कमाता है? ऐसा कई बार होता है कि कोई मुश्किल आये और पति न हो तो क्या पत्नी उसके इंतजार में आर्थिक निर्णय न ले? क्या पत्नी की हैसियत घर की चारदीवारी तक ही बंद है?
जबकि हम देखते हैं कि कितने ही घरों में आज और पहले भी आर्थिक निर्णय महिलाएं ही लेती हैं... पति तो बस पैसा कमाकर लाते हैं और उनके हाथ में रख देते हैं... उसके बाद वो जाने... कि कैसे उस पैसे का इस्तेमाल करना है।
जब पति- पत्नी को एक दूसरे पर इतना भरोसा होता है तो फिर ये कौन होते हैं एक स्वच्छ और मजबूत रिश्ते में दरार डालने वाले...
कुछ लोगों की मानसिकता क्या दर्शा रही है कि हम आज भी उस युग में जी रहे हैं जहाँ पत्नी सिर्फ प्रयोग की वस्तु थी... मानती हूँ आज भी काफी हद तक औरतों की जिन्दगी में बदलाव नहीं आया है तो उसके लिए सिर्फ हाऊस वाईफ कहना कहाँ तक उचित होगा जबकि वर्किंग वुमैन की स्थिति भी अपने परिवार में आर्थिक निर्णय लेने की नहीं होती... उन्हें सिर्फ कमाने की इजाजत होती है। खर्च करने या आर्थिक निर्णय लेने का अधिकार वे नहीं रखतीं। ...तो फिर क्या अंतर रह गया दोनों की स्थिति में?
फिर ऐसा प्रश्न पूछना कहाँ तक जायज है कि निर्णय कौन लेता है? और ऐसा प्रश्न क्या घरेलू महिलाओं के अस्तित्व और उनके मान सम्मान पर गहरा प्रहार नहीं है?
क्या ऐसी कम्पनियों पर लगाम नहीं लगाया जाना चाहिए? उन्हें इससे क्या मतलब कि निर्णय कौन लेता है... वो सिर्फ अपना प्रयोजन बताएं । यह उनके परिवार की समस्या है वे निर्णय चाहे मिलकर लें या अकेले... फिर क्यूँ वे ऐसे प्रश्न पूछकर घरेलू महिलाओं के अस्तित्व को सूली पर लटकाते हैं? इस एक छोटे से सवाल को आधार बनाकर मैं आप सबसे भी पूछना चाहती हूं कि क्या आप भी ऐसा ही सोचते हैं -
- कि घरेलू महिलाएं निर्णय लेने में सक्षम नहीं होतीं?
- कि उन्हें अपने घर में दायरे तक ही सीमित रहना चाहिए?
- कि आर्थिक निर्णय लेना उनके बूते की बात नहीं है ?
और यह भी कि ये कम्पनियाँ जो कर रही हैं क्या सही कर रही हैं?
मेरे बारे में ...
मैं एक गृहिणी हूँ। मुझे पढऩे- लिखने का शौक है तथा झूठ से मुझे सख्त नफरत है। मैं जो भी महसूस करती हूँ, निर्भयता से उसे लिखती हूँ। अपनी प्रशंसा करना मुझे आता नहीं इसलिए मुझे अपने बारे में सभी मित्रों की टिप्पणियों पर कोई एतराज भी नहीं होता है।
- वन्दना गुप्ता
एक स्वस्थ और खुशहाल समाज इन्हीं हाऊस वाईफ की देन है। आज बच्चों की परवरिश और घर की देखभाल करके हाऊस वाईफ अपना जो योगदान दे रही है वह किसी भी वर्किंग वूमैन से कम नहीं आंकी जा सकती है...
क्या हाऊस वाईफ का परिवार, समाज और देश के प्रति योगदान नगण्य हैं ?
यदि नहीं हैं तो क्यों ये आजकल के लाइफ इंश्योरेंस, बैंक या म्युच्यूवल फंड वाले फोन पर पूछते हैं कि आप हाऊस वाईफ हैं या वर्किंग वुमैन? आर्थिक निर्णय तो सर लेते होंगे?
इस तरह के कई प्रश्न करके क्या ये लोग हाऊस वाईफ के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह खड़ा नहीं कर रहे हैं?
आखिर क्यों आज इतने पढ़े लिखे होकर भी ऐसी अनपढ़ों जैसी बात पूछी जाती हैं और सबसे मजेदार बात तो ये है कि इस तरह के प्रश्न पूछने वाली महिला ही होती है।
ऐसे सवाल पूछते समय क्यूँ उसे शर्म नहीं आती। वह क्यों नहीं सोच पाती कि महिलाएं वर्किंग हों या हाऊस वाईफ उनका योगदान देश के विकास में एक पुरुष से किसी भी तरह कमतर नहीं है। जबकि आज सरकार ने भी घरेलू महिलाओं के योगदान को सकल घरेलू उत्पाद में शामिल करने का निर्णय लिया है...
अपने त्याग और बलिदान से, प्रेम और सहयोग से हाउस वाईफ इतना बड़ा योगदान करती है यह बात ये पढ़े- लिखे अनपढ़ क्यों नहीं समझ पाते?
जबकि हम सब जानते हैं कि एक स्वस्थ और खुशहाल समाज इन्हीं हाऊस वाईफ की देन है। आज बच्चों की परवरिश और घर की देखभाल करके हाऊस वाईफ अपना जो योगदान दे रही है वह किसी भी वर्किंग वूमैन से कम नहीं आंकी जा सकती है... आखिर इतनी सी बात भी इन बड़ी- बड़ी कंपनियों को समझ नहीं आती ?
पति और पत्नी दोनों शादी के बाद एक इकाई की तरह होते हैं तो फिर सिर्फ आर्थिक निर्णय लेने की स्थिति में एक को ही महत्व क्यूँ दिया जाता है? क्या सिर्फ इसलिए क्योंकि वह कमाता है? ऐसा कई बार होता है कि कोई मुश्किल आये और पति न हो तो क्या पत्नी उसके इंतजार में आर्थिक निर्णय न ले? क्या पत्नी की हैसियत घर की चारदीवारी तक ही बंद है?
जबकि हम देखते हैं कि कितने ही घरों में आज और पहले भी आर्थिक निर्णय महिलाएं ही लेती हैं... पति तो बस पैसा कमाकर लाते हैं और उनके हाथ में रख देते हैं... उसके बाद वो जाने... कि कैसे उस पैसे का इस्तेमाल करना है।
जब पति- पत्नी को एक दूसरे पर इतना भरोसा होता है तो फिर ये कौन होते हैं एक स्वच्छ और मजबूत रिश्ते में दरार डालने वाले...
कुछ लोगों की मानसिकता क्या दर्शा रही है कि हम आज भी उस युग में जी रहे हैं जहाँ पत्नी सिर्फ प्रयोग की वस्तु थी... मानती हूँ आज भी काफी हद तक औरतों की जिन्दगी में बदलाव नहीं आया है तो उसके लिए सिर्फ हाऊस वाईफ कहना कहाँ तक उचित होगा जबकि वर्किंग वुमैन की स्थिति भी अपने परिवार में आर्थिक निर्णय लेने की नहीं होती... उन्हें सिर्फ कमाने की इजाजत होती है। खर्च करने या आर्थिक निर्णय लेने का अधिकार वे नहीं रखतीं। ...तो फिर क्या अंतर रह गया दोनों की स्थिति में?
फिर ऐसा प्रश्न पूछना कहाँ तक जायज है कि निर्णय कौन लेता है? और ऐसा प्रश्न क्या घरेलू महिलाओं के अस्तित्व और उनके मान सम्मान पर गहरा प्रहार नहीं है?
क्या ऐसी कम्पनियों पर लगाम नहीं लगाया जाना चाहिए? उन्हें इससे क्या मतलब कि निर्णय कौन लेता है... वो सिर्फ अपना प्रयोजन बताएं । यह उनके परिवार की समस्या है वे निर्णय चाहे मिलकर लें या अकेले... फिर क्यूँ वे ऐसे प्रश्न पूछकर घरेलू महिलाओं के अस्तित्व को सूली पर लटकाते हैं? इस एक छोटे से सवाल को आधार बनाकर मैं आप सबसे भी पूछना चाहती हूं कि क्या आप भी ऐसा ही सोचते हैं -
- कि घरेलू महिलाएं निर्णय लेने में सक्षम नहीं होतीं?
- कि उन्हें अपने घर में दायरे तक ही सीमित रहना चाहिए?
- कि आर्थिक निर्णय लेना उनके बूते की बात नहीं है ?
और यह भी कि ये कम्पनियाँ जो कर रही हैं क्या सही कर रही हैं?
मेरे बारे में ...
मैं एक गृहिणी हूँ। मुझे पढऩे- लिखने का शौक है तथा झूठ से मुझे सख्त नफरत है। मैं जो भी महसूस करती हूँ, निर्भयता से उसे लिखती हूँ। अपनी प्रशंसा करना मुझे आता नहीं इसलिए मुझे अपने बारे में सभी मित्रों की टिप्पणियों पर कोई एतराज भी नहीं होता है।
10 comments:
Bahut aavashyak prashn uthaya hai Vandana ji.. khushi hui padhkar..
vandana jee ka main niyamit pathak hoo.... kavita ke saath saath aalekh me bhi we bahut gambhir prashna uthati hain... isi kram me yah aalekh bhi hai.. bhasha par unki pakad achhi hai aur vishay par nai drishti de rahi hain...
बेहतरीन लेख ...सही मुद्दा उठाया है ..सटीक और सार्थक प्रश्न
वन्दना जी आपका लेख वाकई एक ज्वलंत प्रश्न पर चर्चा की मांग कर रहा है, घर में रहकर बच्चों को संस्कार देना तथा समाज में परिवार को एक सम्मानजनक स्थान दिलाना एक गृहणी का ही काम है और अन्ततः देश के प्रति योगदान !
Excellent ! :)
happy to see another staunch feminist in the row. Though I m a working girl yet I do respect housewives a lot because I know, those who are going out to earn bread-butter, actually can't think of a life without housewives. If we, the working people are the 'bread winners', u - the housewives are the 'heart-winners'. way to go vandana Ji.
बहुत ही प्रेरनादयी और आज के समाज को कचोटती...अच्छी रचना........
वंदना जी ने नारी शक्ति का बोध कराया है सबको।
बहुत सार्थक प्रश्न उठायें हैं...बहुत सुन्दर लेख ..आभार
मै नौकरी करती हूँ ..मुझे फिर भी कभी ये नहीं लगा कि जैसे मै कुछ बहुत बड़ा कोई महान काम कर रही हूँ ...घर की थोड़ी बहुत जिम्मेदारिया भी निभाने की कोशिश करती हूँ पर जैसी... मेरी मदर हर काम को बड़ी आसानी से निपटा लेती है ...वो बात मुझमे नहीं आती ...जो लोग ऐसा समझते है कि गृहिणी मतलब सिर्फ घर के कामकाज करने वाली ..तो उनकी सोच पे मुझे तो हँसी ही आएगी ..क्यों कि मुझे पता हैं कि अगर मेरी मदर 2 दिन काम से छुट्टी पा ले या आराम कर ले तो मेरी क्या 'हालत' होती है ...उनकी महत्ता मै पैसे कमा के लाने वाली से कही 'ज्यादा' है ...घर के सारे आर्थिक निर्णय भी उन्ही के होते है ..और सही भी...उनकी महत्ता नहीं समझना ही सबसे बड़ी बेवकूफी की बात है....
दोस्तों,
हौसला बढाने के लिये आप सबकी हार्दिक आभारी हूँ …………और यही चाहती हूँ कि सब अपनी सोच के दायरे को बढायें।
मै नौकरी करती हूँ ..मुझे फिर भी कभी ये नहीं लगा कि जैसे मै कुछ बहुत बड़ा कोई महान काम कर रही हूँ ...घर की थोड़ी बहुत जिम्मेदारिया भी निभाने की कोशिश करती हूँ पर जैसी... मेरी मदर हर काम को बड़ी आसानी से निपटा लेती है ...वो बात मुझमे नहीं आती ...जो लोग ऐसा समझते है कि गृहिणी मतलब सिर्फ घर के कामकाज करने वाली ..तो उनकी सोच पे मुझे तो हँसी ही आएगी ..क्यों कि मुझे पता हैं कि अगर मेरी मदर 2 दिन काम से छुट्टी पा ले या आराम कर ले तो मेरी क्या 'हालत' होती है ...उनकी महत्ता मै पैसे कमा के लाने वाली से कही 'ज्यादा' है ...घर के सारे आर्थिक निर्णय भी उन्ही के होते है ..और सही भी...उनकी महत्ता नहीं समझना ही सबसे बड़ी बेवकूफी की बात है....
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