सागर सा गहरा
उदंती के माध्यम से पाठकों तक जो जानकारी पंहुचती है वह दुर्लभ है। रोटी खाते ही शेरू बन गया अछूत आज की जातिवादी और सड़ी- गली वर्ण व्यवस्था वाली सोच का तालिबानी और कुरूप चेहरा है। प्रेमवन तो अनुकरणीय है, पर लुटेरा प्रशासन उसमें भी बाधा ही बनता है। नारे दीवारों की शोभा बनकर रह जाते हैं। मुक्तिबोध की कहानी पढऩे का अवसर मिला केवल उदंती के कारण। सभी के लिए कुछ न कुछ सागर -सा गहरा है, इस उदंती के गागर में। अनावश्यक सामग्री है ही नहीं। आपको इतना परिमार्जित अंक निकालने के लिए बधाई।
उदंती का ताजा अंक मिला। साज- सज्जा बहुत आकर्षक है सदैव की तरह। विचार सामग्री भी रोचक और विविधतापूर्ण है। छत्तीसगढ़ के संदर्भ में उभरते सवालों तथा कालजयी रचनाओं को साहित्य के माध्यम से बखूबी संजोकर रख रही हैं। आपके इस प्रयास की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। वैसे तो आज साहित्यकार खेमे में बंटे हुए हैं, आत्ममुग्धता का भाव ओढ़े हुए सामाजिक चिंतन से विमुख अथवा उधारी की सोच से ग्रस्त दिखते हैं। इस दृष्टि से उदंती का कार्य मार्गदर्शी है, प्रेरणास्पद है।
हिंदी सिनेमा के बारे में तो हर जगह पढऩे को मिल जाता है, पर क्षेत्रीय सिनेमा पर मैटर ढूंढऩा मुश्किल हो जाता है। उदंती की अच्छी पहल के लिए बधाई।
रॉक गार्डन की तर्ज पर रश्मि सुंदरानी द्वारा दुर्ग में कबाड़ का जो उपयोग किया गया है वह प्रशंसनीय है। उनसे प्रेरणा लेते हुए कबाड़ का यदि इसी तरह शहर के सौन्दर्य वृद्धि में उपयोग कर लिया जाए तो सरकार और शहरवासियों दोनों की समस्याओं का समाधान होगा। इसी तरह दीनानाथ द्वारा की गई पहल भी सराहनीय है। अगर निजी तौर पर व्यक्ति ऐसे उदाहरण पेश करता रहे तो पर्यावरण को बनाए रखने में आसानी होगी।
उदंती के अक्टूबर अंक में अनकही के लिए बधाई देना चाहता हूं - मूल्यहीनता के इस युग में आप की खोज- मूल्य रक्षा की है। आज हमारे समाज का दुर्भाग्य है कि मीडिया इन महानताओं को महत्व नहीं दे रहा है। ये घटनाएं यदि औरों के लिए उदाहारण बन सके तो अंधेरे के खिलाफ ये रोशनी के दिए आशा जागते हैं ।
उदंती के अक्टूबर अंक में प्रमोद ताम्बट का सटीक व्यंग्य मानो कह रहा है ... ओय ओय ... सुरेश कलमाड़ी गिर गया और अब तो सचमुच गिर गया है, बच नहीं पाया है। सभी रचनाएं बेहतरीन, ताजातरीन, सार्थक अंक।
डॉ. परदेशीराम वर्मा ने छत्तीसगढ़ में रेजीमेंट बनाए जाने को लेकर जो सवाल उठाए हैं उस विषय को गंभीरता से लेते हुए विचार किया जाना चाहिए। छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद ने अब सारी हदें पार कर ली है।
उदंती के माध्यम से पाठकों तक जो जानकारी पंहुचती है वह दुर्लभ है। रोटी खाते ही शेरू बन गया अछूत आज की जातिवादी और सड़ी- गली वर्ण व्यवस्था वाली सोच का तालिबानी और कुरूप चेहरा है। प्रेमवन तो अनुकरणीय है, पर लुटेरा प्रशासन उसमें भी बाधा ही बनता है। नारे दीवारों की शोभा बनकर रह जाते हैं। मुक्तिबोध की कहानी पढऩे का अवसर मिला केवल उदंती के कारण। सभी के लिए कुछ न कुछ सागर -सा गहरा है, इस उदंती के गागर में। अनावश्यक सामग्री है ही नहीं। आपको इतना परिमार्जित अंक निकालने के लिए बधाई।
- रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
आज के साहित्यकार ?rdkamboj@gmail.com
उदंती का ताजा अंक मिला। साज- सज्जा बहुत आकर्षक है सदैव की तरह। विचार सामग्री भी रोचक और विविधतापूर्ण है। छत्तीसगढ़ के संदर्भ में उभरते सवालों तथा कालजयी रचनाओं को साहित्य के माध्यम से बखूबी संजोकर रख रही हैं। आपके इस प्रयास की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। वैसे तो आज साहित्यकार खेमे में बंटे हुए हैं, आत्ममुग्धता का भाव ओढ़े हुए सामाजिक चिंतन से विमुख अथवा उधारी की सोच से ग्रस्त दिखते हैं। इस दृष्टि से उदंती का कार्य मार्गदर्शी है, प्रेरणास्पद है।
-ब्रिजेन्द्र श्रीवास्तव, ग्वालियर, मो. 09425360243
brijshrivastava@rediffmail.com
अच्छी पहलbrijshrivastava@rediffmail.com
हिंदी सिनेमा के बारे में तो हर जगह पढऩे को मिल जाता है, पर क्षेत्रीय सिनेमा पर मैटर ढूंढऩा मुश्किल हो जाता है। उदंती की अच्छी पहल के लिए बधाई।
- नव्यवेश नवराही, जालंधर, navrahi@gmail.com
प्रशंसनीय कार्य रॉक गार्डन की तर्ज पर रश्मि सुंदरानी द्वारा दुर्ग में कबाड़ का जो उपयोग किया गया है वह प्रशंसनीय है। उनसे प्रेरणा लेते हुए कबाड़ का यदि इसी तरह शहर के सौन्दर्य वृद्धि में उपयोग कर लिया जाए तो सरकार और शहरवासियों दोनों की समस्याओं का समाधान होगा। इसी तरह दीनानाथ द्वारा की गई पहल भी सराहनीय है। अगर निजी तौर पर व्यक्ति ऐसे उदाहरण पेश करता रहे तो पर्यावरण को बनाए रखने में आसानी होगी।
- पूजा शुक्ला, रायपुर (छ.ग.)
मार्गदर्शी दीपकों की दिव्य ज्योतिउदंती के अक्टूबर अंक में अनकही के लिए बधाई देना चाहता हूं - मूल्यहीनता के इस युग में आप की खोज- मूल्य रक्षा की है। आज हमारे समाज का दुर्भाग्य है कि मीडिया इन महानताओं को महत्व नहीं दे रहा है। ये घटनाएं यदि औरों के लिए उदाहारण बन सके तो अंधेरे के खिलाफ ये रोशनी के दिए आशा जागते हैं ।
- सुरेश यादव, नई दिल्ली
sureshyadav55@gmail.com
जाग्रत समाज के बूते ही इस तरह की सामाजिक समस्याएं दूर हो पाएंगी। sureshyadav55@gmail.com
-लोकेन्द्र सिंह राजपूत, ग्वालियर म.प्र.
www.apnapanchoo.blogspot.com
ओय ओय.... गिर गयाwww.apnapanchoo.blogspot.com
उदंती के अक्टूबर अंक में प्रमोद ताम्बट का सटीक व्यंग्य मानो कह रहा है ... ओय ओय ... सुरेश कलमाड़ी गिर गया और अब तो सचमुच गिर गया है, बच नहीं पाया है। सभी रचनाएं बेहतरीन, ताजातरीन, सार्थक अंक।
- अविनाश वाचस्पति, नई दिल्ली मो.09868166586
avinashvachaspati@gmail.com
छत्तीसगढ़ में रेजीमेंटडॉ. परदेशीराम वर्मा ने छत्तीसगढ़ में रेजीमेंट बनाए जाने को लेकर जो सवाल उठाए हैं उस विषय को गंभीरता से लेते हुए विचार किया जाना चाहिए। छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद ने अब सारी हदें पार कर ली है।
- राजेश साहू, राजनांदगांव (छ.ग.)
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