गीत लिखकर बांट देने वाले गीतकार रमेश शास्त्री
- हर मन्दिर सिंह 'हमराज'
किसी भी संगीत प्रेमी को यह बताने की जरूरत नहीं कि यह गीत लता मंगेशकर ने फिल्म बरसात के लिए गाया था। अपेक्षाकृत नए सुर, कलम, निर्माता, निर्देशक आदि के संयोग से जो गीत बना, वह सदाबहार बन गया। लेकिन सुनने वाले इस गीत के लेखक रमेश शास्त्री के परिचय के मोहताज ही बने रहे।
ग्राम दीयोर तहसील तलाजा जिला भावनगर (गुजरात) में स्कूल मास्टर यमुनावल्लभ नरभेराम शास्त्री के घर 2 अगस्त 1935 को जन्में डॉ. रमेश यमुनावल्लभ शास्त्री का बचपन दु:खद रहा। पिता की मृत्यु के बाद, भाभी के दुव्र्यवहार के कारण उन्होंने घर छोड़ दिया और 10 वर्ष की आयु में टे्रन द्वारा बनारस आ पहुंचे। यहां उन्होंने संस्कृत की पढ़ाई की। प्रतिभाशाली छात्र होने के कारण उन्हें कई स्वर्णपदक मिले और विशारद की डिग्री प्राप्त हुई। बनारस के बाद वे अहमदाबाद के गरीब बच्चों को संस्कृत भी पढ़ाते थे। अपने संस्कारों को उन्होंने हमेशा बनाए रखा। वे हमेशा धोती- कुर्ता पहनकर ही कॉलेज जाया करते थे जहां के योग्य शिक्षकों फादर वालेस एवं एस्थर सालोमन से उन्हें शिक्षा ग्रहण करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। प्रतिभा के धनी शास्त्री जी को अध्यापकों एवं सहपाठियों से बहुत स्नेह एवं सम्मान मिला। भावनाओं को तुरंत ही कविता के रूप में व्यक्त करने की अनूठी योग्यता के कारण वे शीघ्र कवि कहलाने लगे। एक बार कॉलेज के एक समारोह में उभरती अभिनेत्री निम्मी के हाथों वे सम्मानित भी किए गए थे।
अभिनेता-निर्माता-निर्देशक राजकपूर ने अपनी पहली फिल्म आग की असफलता के बाद जब दूसरी फिल्म बरसात के गीत लेखन के लिए अखबारों में विज्ञापन प्रकाशित करवाया तो उसके जवाब में रमेश शास्त्री ने अपने लिखे कुछ गीत उन्हें भेज दिए जिनमें से हवा में उड़ता जाए, मोरा लाल दुपट्टा मलमल का, हो जी, हां जी... गीत चुन लिया गया। इसके बाद अपने कई गीतों को लेकर वे मुम्बई पहुंचे। बाद के वर्षों में उनके लिखे कई गीतों को पौराणिक फिल्मों में शामिल किया गया लेकिन बरसात के उक्त गीत ने जो प्रसिद्धि पाई, वह उनके लिखे अन्य बाद के गीतों को नसीब नहीं हो सकी। वैसे गीता दत्त का गाया गीत कंकर-कंकर से मैं पूछूं, शंकर मेरा कहां है, कोई बताए... भी बहुत पसंद किया गया।
उपलब्ध जानकारी के अनुसार 1949 की फिल्म बरसात के अतिरिक्त जिन फिल्मों में रमेश शास्त्री जी के लिखे गिने- चुने गीत शामिल हुए, उनके नाम हैं- राम विवाह-1949 (रूप अनूप सुहाए... गौरी पूजन चली जानकी) एवं उषा हरण -1949 (झिलमिल झिलमिल तारे चमके..., रात सुहानी खिली चांदनी..., आज मेरे जीवन के नभ में छाई है अन्धियारी) इनके अतिरिक्त हर हर महादेव-1950 (मन न माने..., गुन गुन गुन गुंजन करता भंवरा...,कंकर- कंकर से मैं पूछूं..., ऋतु अनोखी प्यार अनोखा..., रूमझूम- रूमझूम चली जाऊं..., हलुलुलुल- हलुलुलु हाल रे... एवं टिम टिमाटिम... ) एवं जय महाकाली 1951 (चम चमा चम... दुनिया मेरी बसाने वाले...) में भी उनके गीत शामिल किए गए थे। उनकी बेटी के अनुसार, शास्त्री जी ने राम शरण के नाम के कुछ गैर फिल्मी गीत भी लिखे थे जो रेडियो सीलोन से बजते थे लेकिन उनकी विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है। उन्होंने बहुत से गीत लिख कर बांट दिए जिसे लोगों ने अपने नाम से बाद में प्रस्तुत कर दिया। गीत लिखने के बाद वे उस पर अपना अधिकार नहीं जताते थे।
उनका विवाह अपने एक दोस्त की पत्नी की बहन से हुआ था जिसे उन्होंने स्पष्ट रूप से बता दिया था कि बड़ा आदमी बनने की बजाय वे एक अच्छे कॉलेज में अध्यापक के रूप में छात्रों को पढ़ाने का काम करना चाहते हैं। अध्यापन कार्य से वे जीवन पर्यन्त जुड़े रहे। संस्कृत हमेशा ही उनका प्रिय विषय बना रहा और इसे बच्चों को पढ़ाते भी रहे। शास्त्री जी Philosophical Principles of Charak Sanhitaa विषय को लेकर डॉक्टरेट प्राप्त करने वाले सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी के पहले और भारत के 151 वें विद्यार्थी बने। प्रारंभ में स्कूल के अध्यापक के रूप में उन्होंने कार्य किया। 20 नवम्बर 1976 को उन्होंने गवर्नमेंट आयुर्वेद कालेज, भावनगर में अध्यापन शुरु किया। बाद में वे बड़ौदा एवं अहमदाबाद में भी रहे। गवर्नमेंट आयुर्वेद कॉलेज बड़ौदा से वे सन् 1990 को सेवानिवृत्त हो गए। सेवानिवृत्ति के बाद भी वे शिष्यों को संस्कृत पढ़ाने का कार्य नि:स्वार्थ भाव से करते थे।
उनका जीवन सदा ही विविध घटनाओं से भरा रहा लेकिन विषम परिस्थितियों में भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी। ब्राह्मण परिवार में जन्में शास्त्रीजी ने सदा ही अपने धर्म का पालन किया। वे दूसरों के मन की बातों को भंापने की विलक्षण प्रतिभा रखते थे लेकिन उन्होंने इसे कभी जाहिर नहीं होने दिया। संस्कृत के अध्ययन में अत्यधिक रूचि रखने के कारण उन्होंने संस्कृत की अनेकानेक पुस्तकों का संग्रह कर लिया था जिसमें कई दुर्लभ पुस्तकें भी शामिल थी। लेकिन जैसे ही उन्हें यह पता चला कि उनकी बेटी संगीता की रूचि संस्कृत में नहीं बल्कि मनोविज्ञान में है, उन्होंने सभी पुस्तकें दान कर दीं ताकि उनका सदुपयोग हो सके।
उनका बेटा कपिलदेव शास्त्री, जिसने पढ़ाई के बाद मेकेनिकल इंजीनियर का डिप्लोमा प्राप्त किया था, पिछले 20-22 वर्षों से एक मानसिक बीमारी से ग्रस्त हो गया। आम धारणा बनी कि वह सामान्य जिंदगी नहीं जी सकेगा लेकिन दृढ़ निश्चय के साथ संगीता जी ने उसे सामान्य बनाने के लिए स्वयं संस्कृत की बजाय मनोविज्ञान विषय में पढ़ाई की और काफी हद तक अपने प्रयास में सफल हुईं। वे स्वयं अध्यापक के रूप में कार्यरत हैं एवं डॉक्टरेट के लिए प्रयासरत हैं।
दुर्भाग्य ने जीवनपर्यन्त उनका साथ निभाया। उनका बेटा मानसिक बीमारी से ग्रस्त हो गया और पत्नी का कैंसर के कारण निधन हो गया जो उनके लिए असहनीय था। भूचाल ने उन्हें बर्बाद कर दिया लेकिन नियति मानकर उन्होंने सब कुछ अपने बेटे एवं पुत्री के साथ रहते हुए सहज रूप में स्वीकार किया। अन्त में वे स्वयं पहले पारकिंसन्स एवं बाद में मस्तिष्क की बीमारी से ग्रस्त हो गए लेकिन अंत तक अपने पुत्र एवं पुत्री के लिए स्नेह की वर्षा करते रहे। पिछले 10 वर्षों से बीमारी के कारण उनका सारा वक्त बिस्तर पर ही बीता और अन्तत: 30 अप्रैल 2010 को सदा के लिए उन्हें हर तरह के कष्टों से तभी मुक्ति मिली जब उन्होंने अंतिम सांस ली।
अहमदाबाद निवासी उनकी बेटी सुश्री संगीता शास्त्री (संपर्क-09825328512) कहानी एवं पटकथा लेखिका के रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी हैं एवं निर्माता अभिनेता निमेष देसाई के कोरस कम्यूनिकेशन द्वारा प्रस्तुत नाटकों एवं टीवी धारावाहिकों के साथ लेखिका के रूप में जुड़ी हैं।
(निमेष देसाई एवं सुश्री संगीता शास्त्री से प्राप्त जानकारी को अहमदाबाद के रजनीभाई पण्डया ने पहुंचाया जिसे (सूरत के हरीश रघुवंशी द्वारा उपलब्ध कराई गई रमेश शास्त्री के लिखे गीतों की जानकारी के साथ) प्रस्तुत किया लिस्नर्स बुलेटिनके संपादक हर मन्दिर सिंह 'हमराज' ने)
पता- संपादक- लिस्नर्स बुलेटिन
एच आई जी- 545, रतनलाल नगर, कानपुर- 208022
मोबाइल - 9450936901
3 comments:
आज पुराने गीत सुनते सुनते श्री रमेश शास्त्री जी के गाने को आँख बंद कर सुना तो अचानक लिखने वाले को जानने की इच्छा हुई 🌹 उनकी बेटी का नाम भी संगीता है 😊😊
और मेरा भी 😊😊💥💥🕉️🕉️
और मेरा भी 😊😊💥💥🕉️🕉️
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