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Oct 23, 2010

कबाड़ में छुपे सौंदर्य को आकार देती रश्मि सुन्दरानी


कबाड़ में छुपे सौंदर्य को आकार देती रश्मि सुन्दरानी

- संजीव तिवारी
हजारों लाखों लोगों ने चंडीगढ़ के रॉक गार्डन को देखा होगा और सबने उसे सराहा होगा किन्तु रॉक गार्डन बनाने वाले पद्मश्री सम्मान से सम्मानित नेकचंद सैणी के सृजनशील मानस जैसा चिंतन और उनके पदचिन्हों पर चलते हुए उसे साकार करने का प्रयास बिरले लोगों ने ही किया होगा। लेकिन श्रीमती रश्मि सुन्दरानी ने नेकचंद से प्रेरणा लेकर रॉक गार्डन की कला को छत्तीसगढ़ के शहर दुर्ग में साकार कर दिखाया। रश्मि जी को रॉक गार्डन इतना प्रभावित किया कि उनकी कल्पनाशील मन ने न केवल रॉक गार्डन में लगाए गए कलाकृतियों के सौंदर्य और उनकी कलागत बारीकियों को आत्मसात किया वरन उससे कुछ अलग हटकर काम करने का जज़्बा मन में पाला और एक नया संसार रच डाला।
कल्पनाओं को साकार स्वरूप देने का जज़्बा लिये पर्यावरण अभियांत्रिकी में स्नातकोत्तर रश्मि ने जब दुर्ग नगर निगम में अपने आयुक्त पति एस.के.सुन्दरानी राज्य प्रशासनिक अधिकारी के साथ कदम रखा तो नगर पालिका निगम के स्टोर्स में पुराने रिक्शों, कचरा ढोने वाले हाथठेलों, मोटर बाईक और गाडिय़ों के टायर आदि का कबाड़ अंबार के रूप में भरा देखा। नगर पालिका निगम दुर्ग विभागीय नियमों के कारण बरसों से इस कबाड़ को सहेजने
और उपयुक्त स्थान में रखने के लिए विवश थी साथ ही उसे इन सामानों की सुरक्षा के लिए सुरक्षा कर्मचारी की भी व्यवस्था करनी पड़ रही थी।
श्रीमती सुन्दरानी ने जब अपने पति को इस समस्या से दो- चार होते देखा तो उन्हें चंडीगढ़ के रॉक गार्डन में कबाड़ से बनी कलाकृतियां याद आ गई और उन्होंने यहां पड़े इस कबाड़ को आकार देने के बारे में अपने पति से बातचीत की। किन्तु इसे साकार करने के लिए सबसे बड़ी समस्या थी इन सामानों को वेल्ड कर एक दूसरे से जोडऩे की। श्रीमती सुन्दरानी ने मन में घुमड़ रही आकृतियों का एक रफ स्कैच बनाया और वेल्डर की सहायता से बेकार पड़ी इन वस्तुओं को नया आकार देने लगीं। पर यह सब इतना आसान भी नहीं था। लौह खण्ड, टिन आदि बेकार पड़े इस कबाड़ को अपने मन के अनुसार आकार देने के लिए वेल्डर को समझाने में उन्हें बहुत मशक्कत करनी पड़ी।
कुछ अच्छा और नया करने की चाह हो तो राह अपने आप निकल ही आती है। कुछ ही प्रयासों के बाद जो आकृतियां उभर कर आईं वे नायाब थीं। इस तरह कबाड़ से बनी कलाकृतियां जब आम और खास लोगों की नजर में आने लगी तो श्रीमती सुन्दरानी को प्रोत्साहन मिलने लगा और वे अपने काम में और अधिक उत्साह के साथ जुट गईं।
अपने इन प्रयासों के संबंध में रश्मि सुन्दरानी कहती हंै कि जब उनके पति रायगढ़ नगर पालिका निगम में आयुक्त थे तब उन्होंने इस तरह के एक- दो प्रयास वहां भी किए थे जिसे लोगों ने काफी सराहा और रायगढ़ के कुछ चौराहों पर उन्हें लगाया भी गया। इसके बाद उन्हें लगा कि इस पर और काम करना चाहिए। फिर पति का स्थानांतरण दुर्ग नगर पालिका निगम में बतौर आयुक्त हो गया जहां उनकी कल्पनाओं ने एक नई उड़ान भरी।
श्रीमती सुन्दरानी के मानस में गजब की इमेजिनेशन पलती है उन्होंने गाडिय़ों के बेयरिंग, सायकल रिक्शों के छर्रा- कटोरी, दांतेदार बेयरिंग तथा पायडल को जोड़कर एक विशालकाय डायनासोर का निर्माण किया जो आज दुर्ग के गौरव पथ का गौरव बढ़ा रहा है। इसके साथ ही गौरव पथ के दोनों तरफ उनकी बनाई गई कई कलाकृतियां साकार होकर शहर की शोभा बढ़ा रहीं हैं।
छत्तीसगढ़ की संस्कृति व लोककला को प्रदर्शित करती इन कलाकृतियों में वीनावादक, मृदंगवादक, मोर, कछुआ, मकड़ी आदि की अद्भुत कृतियां मुस्कुराने लगीं। जिसे देखकर राह चलते लोग ठहर जाते हैं और कबाड़ से बने इन कृतियों को निहारने लगते हैंं।
रश्मि सुन्दरानी का निवास स्थान ऐसी कलाकृतियों का खजाना बन गया है। अब वहां प्रतिदिन अनेक कृतियां आकार ले रही हैं। उनकी कला के प्रति समर्पण, निष्ठा एवं श्रम एक मिसाल है। उनका अपना गार्डन मोर, बतख, मकड़ी, विभिन्न प्रकार के पारंपरिक वस्त्रों से सजे वादक के साथ ही अनुपयोगी वस्तुओं से निर्मित है जिनकी सुन्दरता देखते बनती है।
हर व्यक्ति के हृदय में एक कलाकार बसता है, एक सर्जक बसता है, मन में आकार लेती अपनी कल्पनाओं को अभिव्यक्त करने की अपनी- अपनी शैली भी होती है। धीरे- धीरे वेल्ड होते लोहे के टुकड़े जब रश्मि जी के निर्देशन में भौतिक स्वरूप धरते हैं तब इन निर्जीव कृतियों में जान आ जाती है। उनकी बनाई कलाकृतियां कलात्मक सौंदर्य व परिकल्पना की जुगलबंदी है। हर तरफ से मिल रही प्रशंसा एवं नगर निगम के सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी की धर्मपत्नी होने के बावजूद रश्मि में सादगी और सहजता कूट- कूट कर भरी हुई है जो उनके भीतर छुपे कलाकार को दमक व आभा प्रदान करता है। बेकार पड़े कबाड़ को कलाकृति में ढाल कर रश्मि सुंदरानी ने एक सराहनीय कदम उठाया है। यदि उनसे प्रेरणा लेकर हर शहर में ऐसा काम होने लगे तो शहर के ऐसे कबाड़ को नष्ट करने की समस्या से मुक्ति पाई जा सकती है।
पता- ए 40, खण्डेलवाल कालोनी, दुर्ग (छ.ग.), मो. 09926615707
www.gurturgoth.com, aarambha.blogspot.com

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