टेस्ट ट्यूब बेबी के 'जनक' का सम्मान
दुनिया भर के नि:संतानों की सूनी गोद आबाद करने का तरीका इजाद करने वाले 85 वर्षीय प्रोफेसर रॉबर्ट एडवड्र्स को वर्ष 2010 के मेडिसिन के नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया है। टेस्ट ट्यूब बेबी के जनक माने जाने वाले ब्रिटिश फिजियोलॉजिस्ट प्रोफेसर एडवड्र्स को पुरस्कार के रूप में 15 लाख डॉलर की राशि मिलेगी। उनके काम को चिकित्सा क्षेत्र के विकास में मील का पत्थर माना गया है।
दुनिया भर के नि:संतानों की सूनी गोद आबाद करने का तरीका इजाद करने वाले 85 वर्षीय प्रोफेसर रॉबर्ट एडवड्र्स को वर्ष 2010 के मेडिसिन के नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया है। टेस्ट ट्यूब बेबी के जनक माने जाने वाले ब्रिटिश फिजियोलॉजिस्ट प्रोफेसर एडवड्र्स को पुरस्कार के रूप में 15 लाख डॉलर की राशि मिलेगी। उनके काम को चिकित्सा क्षेत्र के विकास में मील का पत्थर माना गया है।
1978 में विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) तकनीक से पहले टेस्ट ट्यूब बच्चे का जन्म हुआ था। तब से अब तक करीब 40 लाख दम्पत्ति इस तकनीक का सफलता पूर्वक इस्तेमाल कर चुके हैं। इस विधि को विकसित करने में प्रो. एडवड्र्स का साथ दिया था स्रीरोग विशेषज्ञ पैट्रिक स्टेपटो ने, जिनकी करीब एक दशक पहले मौत हो चुकी है।
प्रो. एडवड्र्स की उपलब्धि को इसलिए भी बड़ा माना जाता है क्योंकि शुरूआत में इनकी खोज का सबने विरोध किया था। चर्च से लेकर सरकारों तक, यहां तक कि मीडिया भी इस खोज के खिलाफ था। इस वजह से उन्हें निजी स्तर पर फंड जुटाना पड़ा था। एडवड्र्स ने 1955 में इस दिशा में काम करना शुरू किया था। वे 1968 में पहली बार प्रयोगशाला में मानव डिंब को निषेचित करने में सफल हुए। निषेचित डिंब को माता के गर्भ में स्थापित करने का काम उन्होंने 1972 में शुरू किया। शुरूआती विधि सफल नहीं हुई और कई महिलाओं को गर्भपात कराना पड़ा। यह गलत हार्मोन ट्रीटमेंट के कारण हो रहा था। इसके बाद 1977 में उन्होंने नई विधि विकसित की जिसमें हार्मोन का इस्तेमाल करने के बजाय सही टाइमिंग पर जोर दिया गया। आज स्थिति यह है कि पश्चिमी देशों में लगभग दो फीसदी बच्चे इसी तरीके से पैदा हो रहे हैं।
इसके बाद ही अगले साल, 25 जुलाई 1978 को प्रथम टेस्ट ट्यूब बेबी लुइस ब्राउन का जन्म हुआ। प्रो. एडवड्र्स को नोबेल पुरस्कार देने पर प्रतिक्रिया देते हुए लुइस ब्राउन ने कहा, 'यह बेहद अच्छी खबर है। मैं और मेरी मां (लेस्ली) दोनों खुश हैं कि आईवीएफ के जनक को वह सम्मान मिला जिसके वे हकदार हैं। उन्हें और उनके परिवार को हम निजी तौर पर बधाई देते हैं।'
लुइस के जन्म के बाद चिकित्सा विज्ञान की नैतिकता को लेकर सवाल उठाए गए। धार्मिक नेताओं ने इसका जबरदस्त विरोध किया। लोगों ने यह सवाल भी उठाए कि क्या टेस्ट ट्यूब बेबी विकसित होकर एक सामान्य वयस्क बनेगा? कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट ने कहा है, दीर्घकालीन अध्ययन ने साबित किया है कि आईवीएफ बच्चे दूसरे बच्चों की तरह ही स्वस्थ हैं। टेस्ट ट्यूब बेबी के सामान्य होने के सभी संदेह तब दूर हो गए जब 2006 में पहली टेस्ट ट्यूब बेबी लुइस ब्राउन ने अपने बच्चे को जन्म दिया। गौरतलब है कि लुइस ने अपने पति वेस्ली मुलिंडर से प्राकृतिक तरीके से गर्भधारण किया।
आज इस पद्धति का उपयोग सबसे ज्यादा भारत में हो रहा है, क्योंकि यह सुविधा सबसे कम खर्च पर यहां उपलब्ध हो जाती है। यही वजह है कि न केवल भारत के बल्कि विदेशों के बांझ दंपत्तियों के लिए भी गुजरात का आनंद शहर मन की मुराद पूरी करने वाला तीर्थ बन गया है।
प्रो. एडवड्र्स की उपलब्धि को इसलिए भी बड़ा माना जाता है क्योंकि शुरूआत में इनकी खोज का सबने विरोध किया था। चर्च से लेकर सरकारों तक, यहां तक कि मीडिया भी इस खोज के खिलाफ था। इस वजह से उन्हें निजी स्तर पर फंड जुटाना पड़ा था। एडवड्र्स ने 1955 में इस दिशा में काम करना शुरू किया था। वे 1968 में पहली बार प्रयोगशाला में मानव डिंब को निषेचित करने में सफल हुए। निषेचित डिंब को माता के गर्भ में स्थापित करने का काम उन्होंने 1972 में शुरू किया। शुरूआती विधि सफल नहीं हुई और कई महिलाओं को गर्भपात कराना पड़ा। यह गलत हार्मोन ट्रीटमेंट के कारण हो रहा था। इसके बाद 1977 में उन्होंने नई विधि विकसित की जिसमें हार्मोन का इस्तेमाल करने के बजाय सही टाइमिंग पर जोर दिया गया। आज स्थिति यह है कि पश्चिमी देशों में लगभग दो फीसदी बच्चे इसी तरीके से पैदा हो रहे हैं।
इसके बाद ही अगले साल, 25 जुलाई 1978 को प्रथम टेस्ट ट्यूब बेबी लुइस ब्राउन का जन्म हुआ। प्रो. एडवड्र्स को नोबेल पुरस्कार देने पर प्रतिक्रिया देते हुए लुइस ब्राउन ने कहा, 'यह बेहद अच्छी खबर है। मैं और मेरी मां (लेस्ली) दोनों खुश हैं कि आईवीएफ के जनक को वह सम्मान मिला जिसके वे हकदार हैं। उन्हें और उनके परिवार को हम निजी तौर पर बधाई देते हैं।'
लुइस के जन्म के बाद चिकित्सा विज्ञान की नैतिकता को लेकर सवाल उठाए गए। धार्मिक नेताओं ने इसका जबरदस्त विरोध किया। लोगों ने यह सवाल भी उठाए कि क्या टेस्ट ट्यूब बेबी विकसित होकर एक सामान्य वयस्क बनेगा? कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट ने कहा है, दीर्घकालीन अध्ययन ने साबित किया है कि आईवीएफ बच्चे दूसरे बच्चों की तरह ही स्वस्थ हैं। टेस्ट ट्यूब बेबी के सामान्य होने के सभी संदेह तब दूर हो गए जब 2006 में पहली टेस्ट ट्यूब बेबी लुइस ब्राउन ने अपने बच्चे को जन्म दिया। गौरतलब है कि लुइस ने अपने पति वेस्ली मुलिंडर से प्राकृतिक तरीके से गर्भधारण किया।
आज इस पद्धति का उपयोग सबसे ज्यादा भारत में हो रहा है, क्योंकि यह सुविधा सबसे कम खर्च पर यहां उपलब्ध हो जाती है। यही वजह है कि न केवल भारत के बल्कि विदेशों के बांझ दंपत्तियों के लिए भी गुजरात का आनंद शहर मन की मुराद पूरी करने वाला तीर्थ बन गया है।
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