ओय ओय ओय ओय, फुट ब्रिज गिर गया, फुट ब्रिज गिर गया, बच्चे लोग ताली बजाओ। आज हम विध्नसंतोषियों के लिए बहुत खुशी का दिन है। हम ना कहते थे- भ्रष्टाचार चल रहा है, भ्रष्टाचार चल रहा है! कोई सुन ही नहीं रहा था, हम इतनी जोर जोर से चिल्ला रहे थे कि- धांधली चल रही है, मगर कोई सुनने को ही तैयार नहीं था। अब देख लिया अपनी आंख से भ्रष्टाचार का नमूना- फुट ब्रिज गिर गया। चलो अपना- अपना हाथ आगे करो, अब लड्डू बंटने वाले हैं।
दो- तीन दिन पहले टुरिस्ट बस पर फायरिंग हुई, कुकर बम फूटा हमारे लिए बड़ी खुशी की बात थी। हम चिल्ला रहे थे- सुरक्षा कमजोर है, सुरक्षा कमजोर है, किसी के कान पर जूं रेंगने को तैयार न थी, रेंगेगी भी कैसे, लोगों के सिरों में जूं हंै कहां आजकल जो कानों पर आकर रेंगे!
अब तो मानोगे, कि दो- चार ब्लॉस्ट और होंगे, या ठीक कॉमनवेल्थ खेलों के उद्घाटन में ही धम- धम होगी तभी मानोगे, कि हम सही कह रहे थे। हम हमेशा सही कहते हैं, कहते रहते हैं, कहते रहते हैं, तुम लोग सुनते कहां हो! अब तो सुनोगे झक मार के। हमारे लिए इससे बड़ा खुशी का मौका दूसरा नहीं। दो- चार धमाके और हों तो मजा आए।
सालों से पानी नहीं बरसा ढंग से, गटर और जमुना में फर्क करना मुश्किल था। अब कॉमनवेल्थ होने को हैं तो देख लो, पानी बरस- बरस कर हमारा समर्थन कर रहा है। छतें टपक रहीं हैं, खुद भी टपक जाएं तो कोई बड़ी बात नहीं। पानी शहर में घुसा चला आ रहा है, सारी पोलें खोल रहा है, दुनिया देख रही है, कोस रही है कि- जो देश अपना गटर सिस्टम सही नहीं कर सकता उसे कॉमनवेल्थ कराने की जिम्मेदारी किस उल्लू के पठठे ने दी है। हम यहीं तो कह रहे हैं इतने दिन से- कि लापरवाहों, अकर्मण्यों, मक्कारों का देश है यह, चोट्टों, भ्रष्टाचारियों का देश है यह, इनसे कुछ होना- हवाना नहीं है, काहे को तो इतनी बड़ी जिम्मेदारी दे दी गई इन्हें कंडे थोपने भर कीऔकात है इनकी, वही करते रहते तो ही ठीक था।
अब देखो, खेल गांव में कितनी गंदगी मचा के रखी है, जैसे सुअरबाड़ी हो। विदेशी खिलाडिय़ों के बिस्तरों पर कुत्ते सो रहे हैं। जिन मजदूरों की औकात दो कौड़ी की नहीं वे भी कमीशन के गद्दों पर लोट लगा रहे हैं। इनका बस चले तो दुनिया भर के ढोर-डंगरों को भी वहां लाकर बसा दें।
हम ना कहते थे, जिम्मेदारी तो किसी एक में नहीं है, आजाद देश मिल गया है तो सब साले मकरा गए हैं। देश की इज्जत का किसी को रत्ती भर खयाल नहीं है। अब हमी को देख लो, बकर-बकर हमसे चाहे जितनी करवा लो, टांग खिचाई, टांग अड़ाई, छिलाई, जग- हंसाई हमसे चाहे जितनी करवा लो, निंदा, आलोचना, बुराई हमसे जी भर के करवा लो, मगर बाकी दिनों में, जब कोई कॉमनवेल्थ सिर पर नहीं होता, हम कहां भाड़ झोकते रहते हैं, हमसे कोई मत पूछना।
उनका पता है- 8 ए /15 नॉर्थ टी.टी. नगर भोपाल-४६२००३ मोबाइल ०९८९३४७९१०६
ईमेल tambatin@yahoo.co.in, tambatin@gmail.com.
दो- तीन दिन पहले टुरिस्ट बस पर फायरिंग हुई, कुकर बम फूटा हमारे लिए बड़ी खुशी की बात थी। हम चिल्ला रहे थे- सुरक्षा कमजोर है, सुरक्षा कमजोर है, किसी के कान पर जूं रेंगने को तैयार न थी, रेंगेगी भी कैसे, लोगों के सिरों में जूं हंै कहां आजकल जो कानों पर आकर रेंगे!
अब तो मानोगे, कि दो- चार ब्लॉस्ट और होंगे, या ठीक कॉमनवेल्थ खेलों के उद्घाटन में ही धम- धम होगी तभी मानोगे, कि हम सही कह रहे थे। हम हमेशा सही कहते हैं, कहते रहते हैं, कहते रहते हैं, तुम लोग सुनते कहां हो! अब तो सुनोगे झक मार के। हमारे लिए इससे बड़ा खुशी का मौका दूसरा नहीं। दो- चार धमाके और हों तो मजा आए।
सालों से पानी नहीं बरसा ढंग से, गटर और जमुना में फर्क करना मुश्किल था। अब कॉमनवेल्थ होने को हैं तो देख लो, पानी बरस- बरस कर हमारा समर्थन कर रहा है। छतें टपक रहीं हैं, खुद भी टपक जाएं तो कोई बड़ी बात नहीं। पानी शहर में घुसा चला आ रहा है, सारी पोलें खोल रहा है, दुनिया देख रही है, कोस रही है कि- जो देश अपना गटर सिस्टम सही नहीं कर सकता उसे कॉमनवेल्थ कराने की जिम्मेदारी किस उल्लू के पठठे ने दी है। हम यहीं तो कह रहे हैं इतने दिन से- कि लापरवाहों, अकर्मण्यों, मक्कारों का देश है यह, चोट्टों, भ्रष्टाचारियों का देश है यह, इनसे कुछ होना- हवाना नहीं है, काहे को तो इतनी बड़ी जिम्मेदारी दे दी गई इन्हें कंडे थोपने भर कीऔकात है इनकी, वही करते रहते तो ही ठीक था।
अब देखो, खेल गांव में कितनी गंदगी मचा के रखी है, जैसे सुअरबाड़ी हो। विदेशी खिलाडिय़ों के बिस्तरों पर कुत्ते सो रहे हैं। जिन मजदूरों की औकात दो कौड़ी की नहीं वे भी कमीशन के गद्दों पर लोट लगा रहे हैं। इनका बस चले तो दुनिया भर के ढोर-डंगरों को भी वहां लाकर बसा दें।
हम ना कहते थे, जिम्मेदारी तो किसी एक में नहीं है, आजाद देश मिल गया है तो सब साले मकरा गए हैं। देश की इज्जत का किसी को रत्ती भर खयाल नहीं है। अब हमी को देख लो, बकर-बकर हमसे चाहे जितनी करवा लो, टांग खिचाई, टांग अड़ाई, छिलाई, जग- हंसाई हमसे चाहे जितनी करवा लो, निंदा, आलोचना, बुराई हमसे जी भर के करवा लो, मगर बाकी दिनों में, जब कोई कॉमनवेल्थ सिर पर नहीं होता, हम कहां भाड़ झोकते रहते हैं, हमसे कोई मत पूछना।
............
प्रमोद ताम्बट व्यंग्यकार हैं उन्होंने कई रेडियो एवं नुक्कड़ नाटकों में अभिनय व निर्देशन किया है। भोपाल की प्रथम वीडियो फिल्म 'सच तो यह है कि' में संवाद लेखन एवं अभिनय। भोपाल दूरदर्शन पर प्रसारित सीरियल 'चेहरे' तथा 'हजारों ख्वाहिशें ऐसी' फीचर फिल्म में अभिनय। देश भर की विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में उनके अनेक व्यंग्य प्रकाशित हुए हैं।उनका पता है- 8 ए /15 नॉर्थ टी.टी. नगर भोपाल-४६२००३ मोबाइल ०९८९३४७९१०६
ईमेल tambatin@yahoo.co.in, tambatin@gmail.com.
1 comment:
अच्छा व्यंग है . श्री प्रमोद ताम्बत सुलझे हुआ व्यंगकर हैं .
बधाई .
Post a Comment