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Oct 23, 2010

कमजोर नींव

कमजोर नींव
शिक्षा के साथ तो इस देश में क्रूर मजाक किया जा रहा है। शिक्षकों से सरकार पढ़ाने के अलावा सारे काम कराती है। मेरा अनुभव रहा है सरकारी स्कूल में अध्यापन का। मैंने देखा कि मध्याह्न भोजन का बैलेंस बनाने के लिए सरकार ने शिक्षक को गड़बड़ करने पर मजबूर कर दिया। संविदा शिक्षक के नाते शिक्षकों का शोषण शासन कर रहा है। इतने कम पैसे पर किस शिक्षक का क्या मन लगता होगा पढ़ाने में भगवान जाने। जबकि प्राइमरी और मिडिल एजुकेशन से ही विद्यार्थी की नींव मजबूत होती है। सरकार उसी को कमजोर बनाने पर तुली हुई है। कमजोर नींव पर खड़ी इमारत का क्या भविष्य हो सकता है, हर कोई सहज अनुमान लगा सकता है।
- लोकेन्द्र सिंह राजपूत, ग्वालियर, lokendra777@gmail.com

पानी रे पानी ...
उदंती अपने संपादन के परों पर अब खुले आसमान में परवाज कर रही है। साधुवाद। प्रेमचंद की कहानी पढऩे का अवसर देकर आपने बहुत ही अच्छा किया... यही जाना... पानी रे पानी तेरा रंग कैसा। आभार के साथ।
- देवी नागरानी, मुम्बई, dnangrani@gmail.com

अनूठा बदलाव
उमा जैसी महिलाएं यदि हमारे गांवों की कमान संभाल लें तो वह दिन दूर नहीं जब वे भारत गांव में बसता है कि युक्ति को सार्थक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। उमा जिसने अपने गांव में अनूठा बदलाव गढ़ा लेख के माध्यम से आपने सरपंच महिलाओं के सामने एक अनुकरणीय उदाहरण सामने रखा है।
- भावना गेडाम, चरोदा, भिलाई
संग्रहणीय अंक
उदंती का नया अंक देखने को मिला। विभिन्न लेखों के साथ पत्रिका में भरपूर रोचक सामग्री होती है जैसे- मकबरे में मारे जाते हैं पांच जूते, सबसे बड़ा सबसे छोटा, अब उड़कर जाइए ऑफिस, 40 लाख की साड़ी। और प्रेमचंद की कहानी ठाकुर की कुंआ देकर आपने इस अंक को संग्रहणीय बना दिया है।
- कुमुद शर्मा, बिलासपुर (छ.ग.)
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