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Nov 1, 2022

कविताः मंदिर के दिये-सा है तू

- डॉ. कविता भट्ट

विदाई में तुम्हारे चेहरे की सलवटें

मुझे सताए जैसे बेघर को गर्म लू

 

तू रो न सका, मेरे आँसू न रुके

पहाड़ी घाटी में उदास नदी- सा तू

 

छोड़ रहा था चुन्नी काँपते हाथों से

सुना था पुरुष लौह स्तम्भ हैं हूबहू

 

तेरे मन के कोने मैंने भी रौशन किए

मेरी नजर में मंदिर के दिये -सा है तू

 

चार कदम में कई जीवन जी लिये

अमरत्व को उन्मुख अब यौवन शुरू... 

सम्प्रति: फैकल्टी डेवलपमेंट सेण्टर, पी.एम.एम.एम.एन.एम.टी.टी., प्रशासनिक भवन II, हे.न.ब.गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर (गढ़वाल), उत्तराखंड

3 comments:

Anonymous said...

सहज शब्दावली और सरल प्रवाह में
सुगठित कविता वाक़ई बहुत सुंदर

राजीव रत्न said...

.

Anonymous said...

बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति। सुदर्शन रत्नाकर