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Jan 1, 2022

हाइकुः मन के पूरब में सूरज उगा


कमला निखुर्पा

1

रात ओढ़ाए

मोतियों की चादर

ठिठुरी धरा।

2

किससे कहे

कसक गलन की

जमें हैं सब।

3

ढूँढती रही

बर्फीली नगरी में

नेह की आँच।

4

सोया है जग

कोहरे से लिपट

रोया है कोई।

5

लम्बी है रात

कोई तो सुलगा दे

यादों की आग।

6

धरा के माथे

रवि नेह चुम्बन

पुलका मन।

7

स्वर्णिम हुई

कलरव कूजित

चारों दिशाएँ।

8

हारेगा शीत

मन के पूरब में

सूरज उगा।

7 comments:

Anima Das said...

सुंदर सृजन 🌹🙏

नीलाम्बरा.com said...

बहुत सुन्दर

Satya sharma said...

बहुत सुंदर हाइकु

HYPHEN said...

"रात ओढ़ाए / मोतियों की चादर / ठिठुरी धरा।"
"किससे कहे / कसक गलन की / जमें हैं सब।"
- सुंदर हाइकु! हार्दिक बधाई!

- डाॅ. कुँवर दिनेश, शिमला

Ramesh Kumar Soni said...

हारेगा शीत

मन के पूरब में

सूरज उगा।
अच्छे हाइकु बधाई।

Krishna said...

बहुत सुंदर सृजन

प्रेम गुप्ता `मानी' said...

अच्छा लगे ये हाइकु, बहुत बधाई