कमला निखुर्पा
1
रात ओढ़ाए
मोतियों की चादर
ठिठुरी धरा।
2
किससे कहे
कसक गलन की
जमें हैं सब।
3
ढूँढती रही
बर्फीली नगरी में
नेह की आँच।
4
सोया है जग
कोहरे से लिपट
रोया है कोई।
5
लम्बी है रात
कोई तो सुलगा दे
यादों की आग।
6
धरा के माथे
रवि नेह चुम्बन
पुलका मन।
7
स्वर्णिम हुई
कलरव कूजित
चारों दिशाएँ।
8
हारेगा शीत
मन के पूरब में
सूरज उगा।
7 comments:
सुंदर सृजन 🌹🙏
बहुत सुन्दर
बहुत सुंदर हाइकु
"रात ओढ़ाए / मोतियों की चादर / ठिठुरी धरा।"
"किससे कहे / कसक गलन की / जमें हैं सब।"
- सुंदर हाइकु! हार्दिक बधाई!
- डाॅ. कुँवर दिनेश, शिमला
हारेगा शीत
मन के पूरब में
सूरज उगा।
अच्छे हाइकु बधाई।
बहुत सुंदर सृजन
अच्छा लगे ये हाइकु, बहुत बधाई
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