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Apr 5, 2021

धरोहरः भगवान विष्णु का नारायणपाल मंदिर


जगदलपुर
के उत्तर-पश्चिमी तरफ, चित्रकोट झरने से जुड़ा हुआ, नारायणपाल नाम का एक गाँव है, जो इंद्रवती और नारंगी नदियों के संगम के निकट स्थित है। इस गाँव में एक प्राचीन विष्णु मंदिर है जो 1000 साल पहले बनाया गया था।  1069 ई में चक्रकोट में महाप्रतापी नाग राजा राजभूषण सोमेश्वर देव का शासन था। सोमेश्वर देव का शासन चक्रकोट (बस्तर) का स्वर्णिम युग था। सोमेश्वर देव ने अपने बाहुबल से चक्रकोट के आसपास के राज्यों पर अधिकार कर लिया था। उसके सम्मान में कुरूषपाल का शिलालेख कहता है कि वह दक्षिण कौशल के छ लाख ग्रामों का स्वामी था। उसका यश चारों तरफ फैला था।। नारायणपाल मंदिर पूरे बस्तर जिले का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहाँ भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित है। नारायणपाल मंदिर बस्तर की विरासत में अपने सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक मूल्य के लिए जाना जाता है। पूर्वाभिमुख  यह प्रस्तर मंदिर मध्यम ऊँचाई की जगती पर अवस्थित है।  यह मंदिर 11वीं शताब्दी के वास्तुशिल्प का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसे चक्रकोट के छिंदक नागवंशी शासकों द्वारा बनाया गया जो नागकालीन उन्नत वास्तुकला का बेहतर प्रमाण है।

यह मंदिर वस्तुतः शिव मंदिर था, किन्तु परवर्ती काल में इस मंदिर के गर्भगृह में विष्णु की प्रतिमा प्रतिष्ठापित कराई गई, जिसके कारण इसे नारायण मंदिर कहा जाने लगा। मंदिर की स्थापत्यकला मध्यप्रदेश खजुराहों के मंदिर के सदृश्य है। ऊँची जगती पर स्थित इस मंदिर का शिखर काफी ऊँचा है। मंदिर का मंडप अष्टकोणीय है। मंदिर का द्वार अलंकृत बेशर शैली का है। मंदिर की खास बात यह है कि मंदिर के द्वार और इसकी बाहरी दीवारों पर गणेश की प्रतिमाएँ उकेरी गईं हैं।

नारायणपाल मंदिर का वास्तुकला पर चालुक्य शैली का प्रभाव है। छिंदक राजवंश की रानी सोमेश्वर देव की माता गुंडमहादेवी भगवान विष्णु की परमभक्त थी।  जब उसकी आयु 100 वर्ष से भी अधिक रही होगी तब उसने अपने दिवंगत पुत्र सोमेश्वर देव की याद में भगवान विष्णु का भव्य मंदिर बनवाया।  गुंडमहादेवी के 60 वर्षीय पौत्र कन्हरदेव के शासनकाल 1111 ई में इस मंदिर का निर्माण पूरा हुआ।

मंदिर के मंडप में स्थित आठ फुट ऊँचे शिलालेख में शिवलिंग, सूर्य-चंद्रमा के अलावा गाय और बछड़े की आकृति है उकेरी गई है। वहीं मंदिर में स्थापित शिलालेख यह स्पष्ट करता है कि हजार साल पहले भी बस्तर के रहवासी देवालय निर्माण में राजाओं को धन देकर सहयोग करते रहे हैं। मंदिर निर्माण में जिन लोगों ने सहयोग किया था उनके नाम दर्ज है। अब यह मंदिर भारतीय पुरातत्व विभाग के अंतर्गरत संरक्षित है।

नारायणपाल के आस पास के गाँवों में भी की दुर्लभ मूर्तियाँ भी मिली हैं जो इस बात का प्रमाण है कि बस्तर का समूचा क्षेत्र कितना भव्य रहा होगा कि वहाँ के राजा- महाराजाओँ ने इतने भव्य एवं कलात्मक मंदिरों का निर्माण कराया था। नारायणपाल के पास के एक गाँव कुरूषपाल में एक ग्रामीण बुटुराम के खेत में भगवान आदिनाथ की हजारों साल पुरानी मूर्ति मिली है। ग्रामीण ने सोनारपाल के जैन धर्मावलंबियों की मदद से मंदिर बनवा दिया है। नारायणपाल से मात्र चार किमी दूर पूर्वी टेमरा के जंगल में 11 वीं शताब्दी की गजलक्ष्मी सहित तेरह मूर्तियाँ भी प्राप्त हुई हैं। इसी तरह बोदरागढ़ किला में लज्जागौरी सहित कई दुर्लभ प्रतिमाएँ भी मिली हैं।

नारायणपाल से लगे ग्राम कुरूषपाल में ग्रामीण बुटुराम के खेत में भगवान आदिनाथ की हजारों साल पुरानी मूर्ति मिली है। ग्रामीण ने सोनारपाल के जैन धर्मावलंबियों की मदद से मंदिर बनवा दिया है। नारायणपाल के पास ही तिरथा नामक गाँव है। नारायणपाल से महज चार किमी दूर पूर्वी टेमरा के जंगल में 11 वीं शताब्दी की गजलक्ष्मी सहित तेरह मूर्तियाँ उपेक्षित पड़ी हैं। इसी तरह बोदरागढ़ के किला में दुर्लभ लज्जागौरी सहित कई दुर्लभ प्रतिमाएँ उपेक्षित पड़ी हैं। इसकी जानकारी पुरातत्व विभाग को है लेकिन इन्हे संरक्षण देने इनके पास पिुलहाल कोई प्रोजेक्ट नहीं है। इन मूर्तियों की सुरक्षा के लिए केन्द्र और राज्य सरकार का पुरातत्त्व विभाग कुछ नहीं कर रहा है।

सम्पूर्ण बस्तर के इन कलात्मक मंदिर व अन्य पुराअवशेषों को देखते हुए पर्यटन और पुरात्त्व विभाग को चाहिए कि बस्तर को देश के प्रमुख पर्यटन के नक्शे पर लाएँ और इस क्षेत्र को पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित करें।  सुरक्षित यातायात के साधन के साथ रहने- खाने की पर्याप्त व्यवस्था होने पर ही इन क्षेत्रों में पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी।  ( संकलित)

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