कविताः सरहद
आँख फड़क रही थी
दो तीन रोज़ से
आज खबर मिली
सरहद पर गोली चल गई
शाम ढले.....
क्या हुआ
कुछ बुरा हो तो,
कौन था
वो.....
आजकल तो,
सरहद
सुनसान हैं,
सन्नाटे बस
सुनती हैं,
उम्मीद
किसी के घर
वापस आने की
आज बूढ़ी
हो चली है,
शायद
कभी भी
ये ज़मीं छोड़
ज़मीं में
दफ़्न हो जाने वाली है....
दीवार-
बैसाखी,
छत का छाता,
अल्हड़ पगडंडी,
वो चर्च वाली गली
अकेले होने वाले
हैं
सदा के लिए,
ना देखने के लिए
बाट
कभी
किसी की.....
कोई युग
बदलेगा
शायद
सन्नाटों को भरने
के लिए,
कई जमाने
सुधारने होंगे
सरहद की
हद
फिर से
थाम लेने के
लिए....
और
सोच के देखो
बंजर सरहद में
क्या कुछ बचा है...
जो रोएगा
कुछ खोने से,
कुछ बुरा और
हो जाने से,
बस तीन दिन
आँख
मेरी फड़की,
और
सरहद की गोली
आज
शाम
लेखक के बारे में- कार्यक्षेत्र: रक्षा मंत्रालय उद्यम- भारत
इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, (गाजियाबाद इकाई), पद: उप प्रबंधक, शैक्षिक योग्यता: बी. ई. ( इलेक्ट्रॉनिक्स एवं कम्यूनिकेशन), अभिरुचि: शतरंज, कविता लेखन, बागवानी, मूल निवास: सुजानगढ़,
राजस्थान, वर्तमान
पता: पटेल गार्डन, द्वारका मोड़, नई दिल्ली ११००७८,
Labels: एकता चौधरी, कविता
3 Comments:
सुंदर भाव व्यंजना अच्छी कविता
सुंदर भाव व्यंजना अच्छी कविता
Very touching
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