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Jul 10, 2020

तू रुककर न देख

तू रुककर न देख

- डॉ. गिरिराज शरण अग्रवाल

ज़िंदगी में डर बहुत हैं, पर उन्हें दमभर न देख
रास्ते में गर निकल आया तो फिर पत्थर न देख

दोस्ती हर पल बदलती है, नया कानून है 
देख ले किस किसको मिलती है, मगर अंदर न देख

कब कहा था रास्ते आसान हैं, ए ज़िंदगी 
पर मिली है तो इसे जीबारहा मुड़कर न देख

आने वाली रुत डरायेगी तुझे मालूम था 
पतझरों से डर नहीं, वीरानियाँ जीकर न देख

जिसको चाहो वह मिले अक्सर जरूरी तो नहीं 
अवसरों को छीन ले, अलगाव में जीकर न देख

एक पल संकल्प का सुलझा ही देगा गुत्थियाँ
मंज़िलें मिलकर रहेंगी, दोस्त तू रुककर न देख

2 comments:

प्रीति अग्रवाल said...

एक पल संकल्प का...बहुत सुंदर ग़ज़ल आदरणीय!

Sudershan Ratnakar said...

एक पल संकल्प का सुलझा ही देगा गुत्थियाँ
मंज़िलें मिलकर रहेंगी, दोस्त तू रुककर न देख
बहुत सुंदर ग़ज़ल ।बधाई