तू रुककर न देख
- डॉ. गिरिराज शरण अग्रवाल
ज़िंदगी में डर बहुत हैं, पर उन्हें दमभर न
देख
रास्ते में गर निकल आया तो फिर पत्थर न देख
दोस्ती हर पल बदलती है,
नया कानून है
देख ले किस किसको मिलती है, मगर अंदर न देख
कब कहा था रास्ते आसान हैं, ए ज़िंदगी
पर मिली है तो इसे जी,
बारहा मुड़कर न देख
आने वाली रुत डरायेगी तुझे मालूम था
पतझरों से डर नहीं,
वीरानियाँ जीकर न देख
जिसको चाहो वह मिले अक्सर जरूरी तो नहीं
अवसरों को छीन ले,
अलगाव में जीकर न देख
एक पल संकल्प का सुलझा ही देगा गुत्थियाँ
मंज़िलें मिलकर रहेंगी, दोस्त
तू रुककर न देख
2 comments:
एक पल संकल्प का...बहुत सुंदर ग़ज़ल आदरणीय!
एक पल संकल्प का सुलझा ही देगा गुत्थियाँ
मंज़िलें मिलकर रहेंगी, दोस्त तू रुककर न देख
बहुत सुंदर ग़ज़ल ।बधाई
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