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May 15, 2020

चार लघुकथाएँ

 1. आधी दुनिया
-सुकेश साहनी
  
....साड़ी पहनकर दिखाओ, लूजफिटिंग के सूट में फिगर्स का पता ही नहीं चलता... चलकर दिखाओ... लम्बाई? ऐसे नहीं-बिना सैडिंल के चाहिए... मेकअप तो नहीं किया है न?... पार्क में चलो, चेहरे का रंग खुले में ही पता चलता है... बड़ी बहन की शादी में क्या दिया था? ...क्या-क्या पका लेती हो? ...घर सम्हालना आता है? आज के समय में नौकर-मेहरी रखना ‘सेफ’ नहीं है।
  ...‘जयमाल’ के समय सूट पहनना, लहँगा-चोली नहीं चलेगा... डार्लिंग, ये देहाती औरतों वाला अंदाज़ छोड़ दो ...आज की रात हम जो कहेंगे, करना होगा ...हमसे कुछ मत छिपाना ...शादी से पहले किसी से प्यार किया था? ...कितना नमक झोंक दिया है सब्जी में?! ...स्वीटहार्ट! इधर आओ, हमारे करीब ...दिनभर की थकान हम अभी दूर किए देते हैं! ...चूमने का ये अंग्रेजी अंदाज कहाँ से सीखा? तुम तो छिपी रुस्तम निकली! ...कैसा खाना बनाया है? देखते ही भूख मर गई।
  ...खिड़की पर मत खड़ी हुआ करो ...बेमतलब खी-खी मत किया करो! ...तुम्हारे घर वालों में जरा भी अक्ल नहीं है, इस कूड़े-कबाड़ की जगह कार ही दे देते। ...अक्ल से बिल्कुल पैदल हो! प्यार करने के तरीके इन विदेशी मेमो से सीखो। ...कितनी बार कहा है बेवक्त घर का रोना मत रोया करो, सारा मजा किरकिरा हो जाता है। ...मुझसे पहले तुम कैसे सो सकती हो? ...दोस्त आएँ, तो उन्हें चाय-पानी के लिए पूछा करो। ...दोस्तों के सामने मुँह उठाए क्यों चली आती हो? उनसे ज्यादा हँस-हँसकर बात मत किया करो।
 ....बहुत फालतू-खर्च करने लगी हो!! ...तुम्हारे खानदान में किसी ने बेटा जना है जो तुम जनोगी! मैं तो फँस गया!! ...दिन-रात मायकेवालों का जाप मत किया करो। ...किसे चाय-पानी के लिए पूछना है किसे नहीं, ये सब भी सिखाना पड़ेगा तुम्हें? ...तुम्हारी बहन की शादी में बहुत माल खर्च कर रहे हैं, हमें तो बहुत सस्ते में ही निबटा दिया था बुढ़ऊ ने।
  ...आए दिन पर्स उठाकर कहाँ चल देती हो? घर का नाम मत डुबो देना! ...बेटियों को चौपट करोगी तुम! भगवान के लिए उन्हें अपने जैसा मत बनाना। ...रोजाना माँ को देखने मत चल दिया करो। बुढ़िया के प्राण इतनी आसानी से नहीं निकलने वाले, अब ‘खबर’ आने पर ही जाना। ...दिन-रात घुटनों को लेकर ‘हाय-हाय’ करना छोड़ दो। घर में घुसते ही मूड खराब हो जाता है।
  ...कितनी ठंडी होती जा रही हो दिन-ब-दिन! ...मोहल्ले की इन दो टके की औरतों से बात मत किया करो ...अब ये रोना धोना बंद करो! माँ के मरने पर नहीं पहुँच सकी तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा। ...ये चोंचले मुझे मत दिखाओ! ...ज्यादा अगर-मगर मत करो ...शक्की बुढ़िया की तरह ‘बिहेव’ मत करो ...दिमाग का इलाज कराओ ...सिर मत खाओ ....ज्यादा चीं-चपड़ मत करो! मुझसे ऊँची आवाज में बात मत करना ...तुम्हारी ये मजाल?! ....मुझे आँखें दिखाती हो! निकलो ...अभी निकलो ‘मेरे’ घर से।

2.सेल्फी
   
उसका पूरा ध्यान आँगन में खेल रहे बच्चों की ओर था। शुचि की चुलबुली हरकतों को देखकर उसे बार-बार हँसी आ जाती थी। कल शुचि जैसी बच्ची उसकी गोद में भी होगी, सोचकर उसका हाथ अपने पेट पर चला गया। उसे पता ही नहीं चला कब राकेश उसके पीछे आकर खड़ा हो गया था।
   ‘‘जान! आज हम तुम्हारे लिए कुछ स्पेशल लाए हैं।’’
  ‘‘क्या है?’’
 ‘‘पहले तुम आँखें बंद करो, आज हम अपनी बेगम को अपने हाथ से खिलाएँगे।’’ राकेश ने अपने हाथ पीठ पीछे छिपा रखे थे।
   ‘‘दिखाओ, मुझे तो अजीब-सी गंध आ रही है।’’
  ‘‘पनीर पकौड़ा है-स्पेशल!’’ उसके होठों पर रहस्यमयी मुस्कान थी।
  उसका ध्यान फिर शुचि की ओर चला गया, वह मछली बनी हुई थी, बच्चे उसके चारों ओर गोल दायरे में घूम रहे थे, ‘‘हरा समंदर, गोपी चंदर। बोल मेरी मछली कितना पानी? शुचि ने अपना दाहिना हाथ घुटनों तक ले जाकर कहा, ‘‘इत्ता पानी!’’
  ‘‘कहाँ ध्यान है तुम्हारा?’’ ,राकेश ने टोका, ‘‘लो, निगल जाओ!’’
  ‘‘है क्या? क्यों खिला रहे हो!’’
  ‘‘सब बता दूँगा, पहले तुम खा लो....।’’
  आँगन से बच्चों की आवाजें साफ सुनाई दे रही थी, ‘‘बोल मेरी मछली…  पानी’’ छाती तक हाथ ले जाकर बोलती शुचि, ‘‘इत्ता .. इत्ता पानी!’’
  ‘‘मुझसे नहीं खाया जाएगा।’’
  ‘‘तुम्हें आने वाले बच्चे की कसम.... खा लो।’’
  ‘‘तुम्हें हुआ क्या है? कैसे बिहेव कर रहे हो, क्यों खिलाना चाहते हो?’’
  ‘‘यार, तुम भी जिद करने लगती हो, दादी माँ का नुस्खा है आजमाया हुआ। इसको खाने से शर्तिया लड़का पैदा होता है।’’
  सुनते ही चटाख से उसके भीतर कुछ टूटा, राकेश उससे कुछ कह रहा था, पर उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। वह डबडब करती आँखों से देखती है ...शुचि की जगह वह खड़ी है, बच्चे उसके चारों ओर गोलदायरे में दौड़ते हुए एक स्वर में पूछ रहे हैं ...बोल मेरी मछली ...कित्ता पानी? उसकी आँखों में दृढ़ निश्चय दिखाई देने लगता है ...अब तो पानी सिर से ऊपर हो गया है। वह अपना हाथ सिर से ऊँचा उठाकर कहती है, ... इत्ता ...इतना पानी!!!
  ‘‘क्या हुआ?’’राकेश ने मलाई में लिपटी दवा उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा,’’आइ लव यू, यार!!’’
  ‘‘नहीं!!’’ राकेश के हाथ को परे धकेलते हुए सर्द आवाज में उसने कहा, ‘‘दरअसल तुम मुझे नहीं, मुझमें खुद को ही प्यार करते हो!’’

3. ब्रेक पांइट
 
माँ जी, आपके पति बहुत बहादुर हैं...’’ राउण्ड पर आए डॉक्टर ने नाथ की पत्नी से कहा, ‘‘एकबारगी हम भी घबरा गए थे, पर उस समय भी इन्होंने हिम्मत नहीं हारी थी। अब खतरे से बाहर हैं।’’
  पूरे अस्पताल में नाथ की बहादुरी के चर्चे थे। चलती ट्रेन  से गिरकर उनका एक बाजू कट गया था और सिर में गम्भीर चोट आई थीं। घायल होने के बावजूद उन्होंने दुर्घटना स्थल से अपना कटा हुआ बाजू उठा लिया था और दूसरे यात्री की मदद से टैक्सी में बैठकर अस्पताल पहुँच गए थे। चार घण्टे तक चले जटिल ऑपरेशन के बाद वह सात दिन तक आई.सी.यू. में जिंदगी और मौत के बीच झूलते रहे थे। आज डॉक्टरों ने उन्हें खतरे से बाहर घोषित कर जनरल वार्ड में शिफ्ट कर दिया था।
  ‘‘विक्की दिखाई नहीं दे रहा है...?’’ दवाइयों के नशे से बाहर आते ही उन्होंने पत्नी से बेटे के बारे में पूछा।
  ‘‘सुबह से यहीं था, अभी-अभी घर गया है।’’ शीला ने झूठ बोला, जबकि सच्चाई इससे बिल्कुल उलट थी। माँ-बाप को छोड़कर सपत्नीक अलग रह रहा पुत्र अपनी नाराजगी के चलते पिता के एक्सीडेंट की बात जानकर भी उन्हें देखने अस्पताल नहीं आया था।
  थोड़ी देर तक दोनों के बीच मौन छाया रहा।
  ‘‘मेरे ऑपरेशन की फीस किसने दी थी?’’  उन्होंने फिर पत्नी से पूछा।
  इस दफा शीला से कुछ बोला नहीं गया। वह चुप रही। नाथ ने आँखें खोलीं और सीधे पत्नी की आँखों में झाँकने लगे। शीला ने जल्दी से आँखें चुरा लीं। उनको अपनी जीवनसंगिनी का चेहरा पढ़ने में देर नहीं लगी। उनकी आँखें पत्नी की कलाई पर ठहर गईं, जहाँ से सोने की चूड़ियाँ गायब थीं।
  ‘‘शाबाश पुत्र!!’’ उनके मुँह से दर्द से डूबे शब्द निकले और उनकी आँखें डबडबा आईं।
  शीला ने पैंतीस वर्ष के वैवाहिक जीवन में पहली बार अपने पति की आँखों में आँसू देखे तो उसका कलेजा मुँह को आने लगा। यह पहला अवसर नहीं था जब जवान बेटे ने उनके दिल को ठेस पहुँचाई थी, पर हर बार बेटे की इस तरह की हरकतों को उसकी नादानी कहकर टाल दिया करते थे।
  एकाएक उनकी तबियत बिगड़ने लगी। डयूटी रूम की ओर दौड़ती हुई नर्सें... ब्लड प्रेशर नापता डाक्टर... इंजेक्शन तैयार करती स्टाफ नर्स....
  उनकी साँस झटके ले लेकर चल रही थी...
  डॉक्टर ने निराशा से सिर हिलाया और चादर से उनका मुँह ढक दिया। वह हैरान था, उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि जिस आदमी ने अपनी बहादुरी और जीने की प्रबल इच्छा के बल पर सिर पर मँडराती मौत को दूर भगा दिया था, उसी ने एकाएक दूर जाती मौत के आगे घुटने क्यों टेक दिए थे?!

4.विजेता

"बाबा, खेलो न!"
"दोस्त, अब तुम जाओ। तुम्हारी माँ तुम्हें ढूँढ रही होगी।"
"माँ को पता है, मैं तुम्हारे पास हूँ । वो बिल्कुल परेशान नहीं होगी। पकड़म-पकड़ाई ही खेल लो!"
"बेटा, तुम पड़ोस के बच्चों के साथ खेल लो। मुझे अपना खाना भी तो बनाना है।"
"मुझे नहीं खेलना उनके साथ । वे अपने खिलौने भी नहीं छूने देते ।" ...अगले ही क्षण कुछ सोचते हुए बोला... "मेरा खाना तो माँ बनाती है ,तुम्हारी माँ कहाँ है?"
"मेरी माँ तो बहुत पहले ही मर गयी थी।" ...नब्बे साल के बूढ़े ने मुस्कराकर कहा।
"बच्चा उदास हो गया। बूढ़े के नज़दीक आकर उसका झुर्रियों भरा चेहरा अपने नन्हें हाथों में भर लिया... "अब तुम्हें अपना खाना बनाने की कोई जरूरत नहीं, मैं माँ से तुम्हारे लिए खाना ले आया करूँगा। अब तो खेल लो!"
"दोस्त!" --बूढ़े ने बच्चे की आँखों में झाँकते हुए कहा... "अपना काम खुद ही करना चाहिए|और फिर, अभी मैं बूढ़ा भी तो नहीं हुआ हूँ, है न !"
"और क्या, बूढ़े की तो कमर भी झुकी होती है।"
"तो ठीक है, अब दो जवान मिलकर खाना बनाएँगें ।" ...बूढ़े ने रसोई की ओर मार्च करते हुए कहा। बच्चा खिलखिलाकर हँसा और उसके पीछे-पीछे चल दिया।
कुकर में दाल-चावल चढ़ाकर वे फिर कमरे में आ गये । बच्चे ने बूढ़े को बैठने का आदेश दिया, फिर उसकी आँखों पर पटटी बाँधने लगा । पटटी बँधते ही उसका ध्यान अपनी आँखों की ओर चला गया। मोतियाबिन्द के आपरेशन के बाद एक आँख की रोशनी बिल्कुल खत्म हो गई थी। दूसरी आँख की ज्योति भी बहुत तेजी से क्षीण होती जा रही थी।
"बाबा,पकड़ो, पकड़ो!" ...बच्चा उसके चारों ओर घूमते हुए कह रहा था |
उसने बच्चे को हाथ पकड़ने के लिए हाथ फैलाए तो एक विचार उसके मस्तिक में कौंधा... जब दूसरी आँख से भी अँधा हो जाएगा, तब? तब? तब वह क्या करेगा? किसके पास रहेगा? बेटों के पास? नहीं-नहीं! बारी-बारी से सबके पास रहकर देख लिया। हर बार अपमानित होकर लौटा है। तो फिर?
"मैं यहाँ हूँ ।मुझे पकड़ो!"
उसने दृढ़ निश्चय के साथ धीरे-से कदम बढ़ाए। हाथ से टटोलकर देखा। मेज, उस पर रखा गिलास, पानी का जग, यह मेरी कुर्सी और यह रही चारपाई...और...और...यह रहा बिजली का स्विच। लेकिन तब मुझ अँधे को इसकी क्या ज़रूरत होगी?...होगी। तब भी रोशनी की ज़रुरत होगी... अपने लिए नहीं... दूसरों के लिए... मैंने कर लिया... मैं तब भी अपना काम खुद कर लूँगा!
"बाबा, तुम मुझे नहीं पकड़ पाए। तुम हार गए ...तुम हार गए!" बच्चा तालियाँ पीट रहा था।
बूढ़े की घनी सफेद दाढ़ी के बीच होंठों पर आत्मविश्वास से भरी मुस्कान थिरक रही थी।

1 comment:

अनीता सैनी said...

बहुत सुंदर लघुकथाएँ।