एक और दिन - सौरभ राय
प्रदूषण से लड़ते-लड़ते
एक और पत्ती सूख गयी है
पक्ष विपक्ष ने
एक दूसरे को गालियाँ देने का
मुद्दा ढूँढ़ लिया है
डस्टबिन कूड़े से
थोड़ा और भर गया है
किसान का बैल
भूखे पेट
हल जोतने से अकड़ गया है।
पत्रकारों ने जनता को
डरना शुरू कर दिया है
मज़दूर कारखानों में पिस रहें हैं
उनकी साँसें निकल रही चिमनियों से
किसानों के घुटनों के घाव
फिर से रिस रहें हैं
हीरो हिरोइन का रोमांस पढ़
युवा रोमांचित हैं
लड़की का जन्म अनवांछित है।
धर्मगत जातिगत नरसंहार
डेंगू मलेरिया कालाज़ार
हत्या खुदखुशी बलात्कार
हाजत में पुलिस की मार
ज़हरीली शराब की डकार से
थोड़े और लोग मर रहें हैं
कुछ मुस्टण्डे
लो वेस्ट निक्कर पहन
रक्तदान करने से डर रहे हैं।
एक और सूरज डूब रहा है
अपने घोटालों की फेहरिस्त देख
मंत्री स्वयं ही ऊब रहा है
अमीर क्रिकेटरों के नखरे
और नंग धड़ंग लड़कियों का
नाच देख
पब्लिक ताली पीट रहा है
मुबारक हो! मुबारक हो!
भारतवर्ष में एक और दिन
सकुशल बीत रहा है।

कविता संग्रह- अनभ्र रात्रि की अनुपमा (2009), उतिष्ठ भारत (2011), यायावर (2012)
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