पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)
चार शास्त्र छह उपनिषद बात मिली है दोय
सुख दीन्हें सुख होत है, दुख दीन्हें दुःख होय
कुछ वर्षों पूर्व जब मैं यात्रा के दौरान हाई वे से गुजर रहा था तो मुझे अचानक एक विशाल मार्ट पर लगा विज्ञापन पटल दृष्टिगत हुआ जिस पर लिखा था : स्वर्ग का वस्तु विक्रय केंद्र। और जब उत्सुकता वश मैं वहाँ उतरा तो उसका बड़ा सा प्रवेश द्वार अपने आप खुल गया और जब तक मुझे एहसास हुआ मैं उस विस्तृत मॉल के अंदर था। एक से बढ़कर एक देवदूत (Angel) मेरा स्वागत कर रहे थे।
- उन्हीं में से एक ने आगे बढ़कर ट्रॉली थमाते हुए कहा : बच्चे सावधानीपूर्वक।
- आदमी की आवश्यकता की हर वस्तु वहाँ उपलब्ध थी और जो एक बार में न उठा सकें उसके लिए दुबारा प्रवेश की भी सुविधा थी।
- सबसे पहले मैंने धैर्य (Patience) को चुना तो देखा समीप ही प्रेम (Love) उपलब्ध था और उसी के आगे समझदारी (Understanding)। हर चीज़ वहाँ बहुतायत से हासिल थी, सो इन्हें ले लिया।
- फिर मैंने बुद्धि (Wisdom) के दो बक्से अपनी ट्रॉली में रख लिये। अरे परोपकार (Charity) तथा आस्था (Faith) भी तो हैं जो मुझे चाहिये थीं। मैंने पवित्र आत्मा (Holy Ghost) पर भी नज़र रखी तथा उसी की सहायता से शक्ति (Strength) एवं साहस (Courage ) चुन लिया।
- मेरी ट्रॉली अब तक भर चुकी थी; लेकिन तभी मुझे गलियारे में अनुग्रह (Grace) और मोक्ष (Salvation) मुफ़्त की पर्ची लगी दिखे। चूँकि कोई दाम नहीं लगने अतः मैंने इनकी अधिकाधिक मात्रा चुन ली।
- और तमाम खरीदी के पश्चात मैं कीमत चुकाने बिलिंग काउंटर की ओर बढ़ा। अपनी आवश्यकतानुसार मैंने सब कुछ चुन लिया था। गलियारे की ओर बढ़ते समय मैंने जब एक रैक में प्रार्थना (Prayer) लिखी देखी, सो उसे भी इसलिए संगृहीत कर लिया, क्योंकि बाहर निकलते ही मैं फिर पाप की दुनिया में प्रवेश कर जाऊँगा। शांति (Peace) तथा आनंद (Joy) अंतिम शेल्फ पर तो गाना (Song) व प्रशंसा (Praise) काउंटर पर एक डोर से लटके हुए थे, सो मैंने खुद की मदद की।
- और अंत में मैंने देवदूत से पूछा : कितने दाम चुकाने हैं मुझे। उसने मुस्कुराते हुए कहा : इन्हें अपने साथ ले जाकर हर दिशा में फैला दो।
- पर मेरा प्रश्न अपनी जगह पर कायम था सो मैंने फिर पूछा : कितना भुगतान करना है मुझे।
- उसने शांत स्वर मधुर ध्वनि सहित कहा : कुछ भी नहीं। तुम्हारा बिल तो स्वयं ईश्वर ने पहले ही चुका दिया है। तुम्हारा उत्तरदायित्व तो इसे आगे विस्तारित मात्र करने का है।
स्वर्ग नरक किसने देखा है
पाप पुण्य का क्या लेखा है
सुख देने से सुख मिलता है
दुख से दुख मिलता है ।
55 comments:
आपसे विनम्र आग्रह है, जो कुछ भी ईश्वर से निःशुल्क मिला है, उसे निःशुल्क न बांटे। मुफ्त की वस्तुओं का लोग सम्मान नहीं करते।कुछ तो तिरस्कार भी करते हैं। दुनिया का व्यावहारिक सत्य यही है।
आपने धरती पर स्वर्ग बनाने का बहुत सरल मार्ग सुझाया हैl यह सब वस्तुयें तो सबके मन में ही निहित हैंl इसमें से दो तीन पर भी लोग अमल करलें तो पूरा विश्व ही स्वर्ग बन जायेl अद्भुत परिकल्पनाl🙏🙏
मित्र प्रेम चंद जी
हा हा........ आपकी बात में दम है पर हम सबने तो बालपन से यही सीखा है कि : भलो भलाइहि पै लहइ लहइ
और फिर दुनिया की व्यावहारिकता अपनी जगह और हमारा सोच अपनी जगह
-- जिनका काम सियासत है वो सियासत जानें
-- अपना पैग़ाम मोहब्बत है जहां तक पहुंचे
हार्दिक आभार सहित सादर
आदरणीय,
सही कहा आपने। सब अच्छा नि:शुल्क उपलब्ध है पर हमारी त्रासदी यही है कि लोभ मोह का आवरण हमारे विवेक को कमजोर कर देता है।
हार्दिक आभार सहित सादर
Bahut achchha lekh
Mukesh Shrivastava
आदरणीय भाई साहब,
सही हैं, इन्ही सब उपहार स्वरूप दान को अगर हर व्यक्ति एक दूसरे को प्रदान करे, तो ना केवल पृथ्वी पर स्वर्ग ही स्वर्ग रहे अपितु दुख की अनुभूति क्या होती हैं पता ही ना चले, बहुत सुन्दर एवं अनुपयोगी वृतांत उपरोक्त वर्णित सभी उपहार पृथ्वी पर विद्यमान हैं, हम पर निर्भर हैं क्या उचित हैं।
Excellent Article
आप सौभाग्यशाली हैं कि आपने धैर्य, प्रेम, समझदारी, बुद्धि, परोपकार, आस्था, पवित्र आत्मा - शक्ति, अनुग्रह, मोक्ष, शान्ति एवं आनन्द जैसे अलौकिक गुण ग्रहण किए जिससे कि आपके लिए यह म्रृत्युलोक भी स्वर्गलोग बन गया। हम सभी आपके सादर आभारी हैं कि आपने इन गुणों को विस्तारित कर अपने कर्त्तव्य का सफलतापूर्वक निर्वहन करके इनका मूल्य चुका दिया। अब हमारा दायित्व है कि इन गुणों को अपनाकर आपका ऋण चुकाएं। सादर,
-वी.बी.सिंह
लखनऊ
सर,
अति प्रेरणादायक लेख।🙏
"स्वर्ग नरक किसने देखा है
पाप पुण्य का क्या लेखा है
सुख देने से सुख मिलता है
दुख से दुख मिलता है ।"
आपका लेख मानस की चौपाई "सकल पदारथ है जग माही करमहीन नर पावत नाही " को चरितार्थ करता है।सचमुच मोहब्बत भी एक छलावा लगती है आज के युग मे। धैर्य और संतोष का स्थान " यह दिल मागे मोर" ने ले लिया है ज्यादातर।
पर अभी भी "परम संतोषी महा धनी " मानने वालो की कमी नही है। सादर प्रणाम
You cannot renounce desire, you can only understand the nature of desire & it's futility, you can control it through 'Man, Buddhi, Chintan,,, Apratim lekhani.
ज्योत से ज्योत जगाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो..
एक और प्रचलित कथा है
गुरु नानक देव जी एक गाँव में गये तो लोगो ने उनको बहुत बुरा भला कहा और उनको सत्संग नहीं करने दिया
गुरु नानक जी ने उनको आशीर्वाद दिया हमेशा यही बसे रहो
उनके चेलों को यह बात समझ नहीं आयी फिर भी चुप रहे
गुरु जी दूसरे गाँव गये तो लोगों ने उनका बहुत स्वागत किया और उनके प्रवचनों को बहुत ध्यान से सुना
गुरु जी ने चलते चलते आशीर्वाद दिया आप लोग चारों दिशा में फैल ज़ाओ
अब चेलों से रहा नहीं गया और गुरु जी से पूछा आपने गाली देने वाली को तो बसे रहने का आशीर्वाद दिया और आपकी बातों को सुनने वाली को तितर बितर होने का आशीर्वाद दे दिया ऐसा क्यूँ
गुरु नानक जी ने मुस्कुराते हुए बोला बहुत ही साधारण बात है
बुरायी ख़त्म ना हो सके तो फैलनी नहीं चाहिए जहां हैं वही रहने चाहिये
जबकि अच्छाई जितनी फैल सके उतना अच्छा
चेले गुरु जी के चरणों में नतमस्तक हो गये
प्रिय मनीष,
हार्दिक आभार। भोपाल आगमन पर मिलना अवश्य। सस्नेह
सारी अलौकिक अच्छाइयों को हम आत्मसात करने की कोशिशें करें..सब हैं हमारे पास..सब हमें पता भी हैं, हमने यदि कुछ अपनाकर जीवन में आत्मसात कर लीं तो वे अपनेआप हमारी सकारात्मक तरंगो से समाज में औरों को भी प्रेरित करेंगी और विस्तारित होंगी.
आपका बहुत-बहुत आभार कि आपने इतने अच्छे आलेख से हमें अच्छे गुणों पर चलने का मार्गदर्शन दिया
सादर प्रणाम 🙏🙏
Madhulika sharma
बहुत सुन्दर तरीके से समझाया.
पिताश्री आप के द्वारा उल्लेख किए गुण हम सब में है। इन सभी का उपयोग जीवन में आत्मसात करके हम सुख कि अनुभूति कर सकते है। पिताश्री को सादर नमस्कार व चरण स्पर्श 🙏
सारी अलौकिक अच्छाइयों को हम आत्मसात करने की कोशिशें करें..सब हैं हमारे पास..सब हमें पता भी हैं, हमने यदि कुछ अपनाकर जीवन में आत्मसात कर लीं तो वे अपनेआप हमारी सकारात्मक तरंगो से समाज में औरों को भी प्रेरित करेंगी और विस्तारित होंगी.
आपका बहुत-बहुत आभार कि आपने इतने अच्छे आलेख से हमें अच्छे गुणों पर चलने का मार्गदर्शन दिया
सादर प्रणाम 🙏🙏
आदरणीय आपने तो जितने भी सदगुण थे सभी को समेट लिया। एक उत्तम परिकल्पना के साथ वास्तव में आपकी जो सोच है यदि सभी लोग आत्मसात् कर सकें ये पृथ्वी वास्तव में स्वर्गलोक बन जाएगी। इस लेख के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ऐसी परिकल्पना भी हो सकती ही कल्पना नहीं थी।
मेरे हिसाब से तो फ्री की किसी भी वस्तु की कोई वैल्यू नहीं होती तो कुछ ना कुछ उसका दाम जरूर लगाना चाहिए
Daisy C Bhalla
Nice imagery of good deeds n soulful ways of leading life🙏🏼
Dear Daisy,
Thanks very very much. Regards
अपना पैगाम मोहब्बत है जहां तक पहुंचे
प्रिय भाई अशोक
सही कहा. कितनी विशाल विरासत हमें प्राप्त है, पर हम विवेक जाग्रत रखते हुए कितना लाभ प्राप्त कर सकते हैं हम पर निर्भर है
हार्दिक आभार।
प्रिय मधु बेन
बुद्धि, विवेक की थाती को संजोते हुए हम जीवन कितना सार्थक कर सकते हैं यही विनम्र प्रयास किया गया है इसमें।
हार्दिक आभार सहित सस्नेह
प्रिय हेमंत
सही समापन किया है आलेख का। हार्दिक आभार सहित सस्नेह
हार्दिक आभार परम आदरणीय सादर
Pratyek manushy me ye sabhi manviy sadgun samahit hain.yadi Manushy inko angikar kar le to Jivan ka uddeshy purn ho jaye. Bahut hi achchha lekh
D C Bhavsar
वाह आदरणीय,🌹💐🌷🙏
जीवन का मर्म, सब कुछ दिया उपर वाले ने और कीमत भी चुका दी,
हमें तो सिर्फ उपयोग व उपभोग करना है, सद्भावना, सामंजस्य, सत्कार के साथ ,बुद्धि व विवेक के साथ, बाकी प्रभु इच्छा,🙏
सर आपने बहुत सरल एवम् सुंदर तरीके से जीवन जीने का सारगर्भित वर्णन किया है। वर्तमान में हम सब इन चीजों से दूर होते जा रहे हैं
प्रिय संदीप
कितनी अकूत संपदा मिली ईश्वर से पर हमने ही कब कद्र की और जीवन में उतारा।
हार्दिक आभार सहित सस्नेह
आदरणीय सिंह सा.
इंजीनियरिंग समुदाय की विशालतम संस्था के उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी के बावजूद समय निकाल पाना लगभग असंभव है। पर आपका स्नेह अद्भुत है।
केवल लखनऊ निवास ही नहीं अपितु शहर की तहज़ीब के साक्षात उदाहरण हैं आप।
हार्दिक आभार सहित सादर
Thanks very much dear Mukesh
प्रिय महेश,
हार्दिक आभार। सस्नेह
प्रिय राजेश भाई
सही कहा आपने। जब आवे संतोष धन सब धन धूरी समान। हार्दिक आभार सहित सादर
Dear Shri Dadakar
Thanks very much. Regards
प्रिय किशोर भाई
सही कहा आपने। यही तो जीवन का सत्व तथा तत्व दोनों है, जो अनादि काल से ऋषि, मुनि, संतों ने हमें सीखाया है
हार्दिक आभार सहित सादर
प्रिय नरेंद्र
सही कहा और यही हमारी त्रासदी कि सच को जानते हुए भी हम अनजान बने रहते हैं।
हार्दिक आभार। सस्नेह
प्रिय भाई रवींद्र
सही कहा, पर सही उपभोग हेतु बुद्धि का विवेक समाहित उपयोग भी तो अनिवार्य है।
हार्दिक आभार सहित
Res. Bhavsar Ji
Prapt ko paropkar man kar aabhari hote hue jivan me aage badhane se bada sukh nahi
Thanks very very much. Kind regards
आदरणीया
आप जैसी विदुषी से प्राप्त सराहना सुख संतोष की वह थाती है जो कर्म पथ पर निरंतर चलते रहने हेतु अद्भुत ऊर्जा प्रदान करती है
हार्दिक आभार सहित सादर
Very nice article sir
Dear Dr. Deepmalika
Thanks very much. Kind regards
-- तुलसी इस संसार में भांति भांति के लोग
-- सबसे हंस मिल बोलिये नदी नाव संजोग
आमीन
जोशी जी, आपने तो स्वर्ग के माल से बहुत कुछ निशुक्ल बटोर लिया।मजे की बात है कि बहुत से लोग पैसे देकर बुराईयां खरीद ते है।
आदरणीय कासलीवाल जी
हा हा .... अच्छा कुछ सशुल्क मिले तो भी लेना चाहिए और ईश्वर ने तो सब कुछ नि:शुल्क दिया है तो क्या सोचना। फिर हमारा देश तो फ्री की बिजली पानी पर सरकार बना देता है। आपकी विनोदपूर्ण सोच हेतु हार्दिक आभार सहित सादर
प्रिय मित्र डॉ. कृष्णकांत
धर्म भी यही तो जो आपने साझा किया। काश सब जीवन में उतार लें इसे।
हार्दिक आभार सहित
प्रिय मित्र
मैंने कुछ नया नहीं कहा। सबको सब कुछ ज्ञात है। मैंने तो सिर्फ दोबारा परोस दिया।
हार्दिक आभार। सादर
सदगुणो को अपनाने की शिक्षा का इतना नायब तरीका सिर्फ आपकी लेखनी ही कर सकती है।तुलसी, सूर,कबीरा के अलावा अनेक ज्ञानियों ने इस विषय पर सदियों से अपने अपने अंदाज में सीखते आ रहे हैं,लेकिन इस आलेख को पढ़कर ऐसा लगा मानो विषय को देशकाल,वातावरण से जोड़कर प्रस्तुत किया गया हो ।
अत्यंत प्रभावशाली,रोचक और सारगर्भित आलेख।आपकी लेखनी को प्रणाम।सादर अभिवादन आदरणीय sir।
लिखते
आदरणीया
हार्दिक आभार। वैसे इसमें मेरा कुछ भी नहीं। सदियों से सब कुछ ज्ञात है। मेरी कोशिश दोबारा यादों की गर्द साफ करने हेतु reminder प्रस्तुत करने की रही है।
आपका स्नेह अद्भुत है सो एक बार पुनः आभार। सादर
अद्भुत, मार्मिक, मार्गदर्शन
प्रिय मित्र डॉ. श्रीकृष्ण अग्रवाल, हार्दिक आभार सादर
प्रिय मनोज
यह आप जैसे मित्रों का सालों से निरंतर प्रवाहित निर्मल निर्झर स्नेह ही है जो जीवन यात्रा सुखद स्वरूप बनी हुई है। हार्दिक आभार सहित सस्नेह
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