- डॉ. कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’
उसकी चुप्पी-
मेरे भीतर उतर आई हो
कहीं जैसे;
करने को आतुर हों
अनन्त यात्रा
मेरी आत्मा तक
उसकी आँखें
यों देख रही हैं
एकटक मुझे
भीतर से भीतर तक
अभी तो स्पर्श भी न किया
फिर ये कैसा जादू है।
सुंदर अभिव्यक्ति। सुदर्शन रत्नाकर
इस प्यारी सी कविता के लिए बहुत बधाई
बहुत सुंदर कविता...हार्दिक बधाई।कृष्णा वर्मा
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सुंदर अभिव्यक्ति। सुदर्शन रत्नाकर
इस प्यारी सी कविता के लिए बहुत बधाई
बहुत सुंदर कविता...हार्दिक बधाई।
कृष्णा वर्मा
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