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Jun 1, 2024

दोहेः नभ बिखराते रंग

  - डॉ. उपमा शर्मा

1.

मत कितने ही भिन्न हों, रहे नहीं मनभेद। 

बन जाएँ संबंध जो, करो नहीं विच्छेद।

2.

'उपमा' ऐसों से बचो, पचा न पाते जीत। 

सुख-दुख देते साथ जो, वही आपके मीत।

3.

मान सभी का तुम रखो, मिले प्यार को प्यार।

जैसा सबसे चाहते, करो वही व्यवहार।

4.

चतुराई उसमें भरी, कहे न छोड़ो आस। 

कंकड़ गागर डालकर, काग मिटाए प्यास। 

5.

कल बदलेगी जीत में, आज लगे जो हार।

थोथा-थोथा सब उड़े, रह जाना है सार।

6.

जीवन दुर्गम पथ रहा, आने अनगिन मोड़।

कर्म किए जा बस मनुज, फल की इच्छा छोड़।

7.

देखो हठी पतंग को, कितनी है मुँहजोर। 

ऊँची भरे उड़ान ये, जब-जब खींची  डोर।

8.

सोच समझकर बोलिए, शब्दों से भी घाव।

मन को मोहे है सदा, जग में मधुर स्वभाव।

9.

जीवन में हर पल नया, 'उपमा' कुछ ले जोड़।

उड़ जाए यह हंस कब, सब कुछ जग में छोड़।

10.

अलक बाँधती यामिनी,थमी चंद्र की चाल।

भोर जागकर आ गई, रवि आया नभ भाल।

11.

हरी मखमली दूब पर, पड़ती तुहिन फुहार।

 भीगे- भीगे पात हैं, पहने मुक्ताहार।

12.

कैनवास पर भोर के, नभ बिखराता रंग।

आई स्वर्णिम रश्मियाँ, जब दिनकर के संग।

13.

मिश्री हो या फिटकरी, लगते एक समान।

परखो तो व्यवहार से, होती है पहचान।

14.

अनुबंधों से मुक्त जो, मुझको करदो आज। 

सच कहती हूँ बोल दूँ, दिल के सारे राज। 


1 comment:

Anonymous said...

सुंदर दोहे। हार्दिक बधाई ।सुदर्शन रत्नाकर