- सतीश उपाध्याय
भीतर की गूँज कह रही
कोशिश बारंबार करें
पानी की हर बूँद बचाने
खुद को हम तैयार करें ।
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जल से ही रंगत रौनक है
धरती की हरियाली
उत्सव और उल्लास इसी से
और ऋतुएँ मतवाली ।
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तितली की है फुरगन इसमें
बंद कली की शोख अदा
रस, रंग, परिहास इसी से
कोयल की है मधुर सदा।
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बूँद बद संचय करने की
युक्ति सौ -सौ बार करें।।
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नव पल्लव की रक्तिम आभा
बीजों की भी थिरकन है
ऊँचे , पर्वत ,चट्टानों में
झीलों की भी सिहरन है।
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हर क्यारी गुलजार इसी से
खिले फूल में लाली है
ये रखवाला रूप , गंध का
हर बगिया का माली है।
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बूँद तोड़ दे सारी जड़ता
इन पर तो एतबार करें।।
सम्पर्कः स्वतंत्रता सेनानी कुटी, कृष्णा वार्ड, मनेंद्रगढ़ जिला एमसीबी, छत्तीसगढ़, 9300091563
1 comment:
बहुत ही सुन्दर रचना 💐
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