- सुरभि डागर
लौट भी आओ अब
झरोखों से झाँकती
हैं बूढ़ी आँखें ....
इन्तज़ार में हो जाती हैं गीली
और ताकती रहती हैं किसी
आहट को ...........
डाकिया भी नहीं लाता
कोई चिट्ठी....
कि तुम आओगे
खाली गलियाँ भी
बेताब हो उठती हैं
तुम्हारे पाँव के स्पर्श को
लौट भी आओ अब,.....
चौखट को पकड़कर ही
लाँघते थे,
तुम्हारी अँगुलियों की
छुअन को
व्याकुल हो उठती हैं ।
वायुयान देखने को
दौड़कर बाहर आती है
तुम्हारी बूढ़ी माँ
निराश हो पकड़ लेती है
खाट के पाये को ......
अब चुभने लगा घर का
सन्नाटा, जहाँ तुम्हारी
किलकारियाँ गूँजती थी,
बरसों से नहीं बजती
अब तुम्हारे फोन की घंटी
कमजोर पड़ गए
तुम्हारे पिता के कंधे
अब लौट भी आओ ....
सम्पर्कः इंद्रलोक कालोनी, नजीबाबाद रोड, बिजनौर- 246-701
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