उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Mar 1, 2023

कविताएँः 8 मार्च महिला दिवस - ग्रामीण स्त्रियाँ


 - हरभगवान चावला

1.

थककर लेटीं ग्रामीण स्त्रियाँ

पति या पुत्र की पदचाप सुनते ही

तुरन्त उठकर यूँ बैठ जाती हैं

कि कहीं पकड़ा न गया हो

उनके लेटने का गुनाह।

2.

ग्रामीण स्त्रियों की नींद में

जाग्रति हमेशा मौजूद रहती है

नींद में भी उन्हें ख़याल रहता है

कि कहीं कटड़ा न पी जाए

रात में अपनी माँ का सारा दूध

कि कहीं साँड चर न जाएँ खेत

कि कहीं राख होने से बची न हो कोई चिंगारी

कि कहीं किवाड़ की साँकल खुली न रह गई हो

कि कहीं नशे की झोंक में फिसल न जाए पति

कि कहीं भूखा तो नहीं सो गया हो कोई बच्चा

बार-बार जागती है ग्रामीण स्त्रियों की नींद पर

ग्रामीण स्त्रियाँ नींद न आने की शिकायत नहीं करतीं।

3.

ग्रामीण स्त्रियों को सुनती है

रात में होने वाली बारिश की

सबसे पहली बूँद की आवाज़

सबसे पहले वे चूल्हा ढकती हैं

फिर उपलों को भीतर घसीटती हैं

फिर सँभालती हैं बाहर छूटे कपड़े

बस इतनी ही देर वे बारिश से

सब्र करने की मनुहार करती हैं।

4.

जैसे-जैसे बढ़ती है

ग्रामीण स्त्रियों की उम्र

इनकी गोद बड़ी होती जाती है

आँखें उदास।

सम्पर्कः 406, सेक्टर-20, सिरसा-125055 ( हरियाणा)

1 comment:

शिवजी श्रीवास्तव said...

वाह,ग्रामीण स्त्रियों की नियति,संस्कृति और दिनचर्या का प्रभावी चित्रण।बधाई श्री हरभगवान चावला जी।