नारी तो सृजन है ।
है पिता के स्नेह और
माँ की मधुर ममता से
सिंचित,
वो तो उनकी कल्पना और
प्रेम का सुन्दर मिलन
है ।
नारी तो सृजन है ।
माँ, बहन, बेटी, सखी,
सहधर्मिणी और प्रेयसी
है,
सुरचित, सुन्दर नीड़ की
निर्मात्रि, सुखदा, श्रेयसी है,
वो तो स्वप्नों का सदन
है।
नारी तो सृजन है ।
कल के सुन्दर स्वप्न को
अपने रुधिर से सींचती
है,
विघ्न -बाधाओं से भिड़
उसको हृदय से भींचती है,
देवदारु और वटवृक्षों
की
वो जननी, भुवन है ।
नारी तो सृजन है ।
है सदा उपेक्षिता
उत्पीड़िता और शोषिता
वो,
स्वप्न के अपने सदन से,
है सदा निर्वासिता वो,
वो तो अपने सद्विचारों, संस्कारों
का रुदन है ।
नारी तो सृजन है!
नारी तो सृजन है!!
1 comment:
सुंदर भावों से परिपूर्ण कविता।प्रणति ठाकुर जी को बधाई।
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