पिछले कुछ वर्षों से प्लास्टिक उत्पादन में काफी तेज़ी से वृद्धि हुई है। वर्ष 2050 तक इसका उत्पादन प्रति वर्ष एक अरब टन होने की संभावना है। इसके चलते प्लास्टिक प्रदूषण में वृद्धि निश्चित है। इस समस्या से निपटने के लिए उरुग्वे में 150 से अधिक देशों के बीच एक बैठक का आयोजन किया जा रहा है।
गौरतलब है कि गत वर्ष
मार्च में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा ने निर्णय किया था कि प्लास्टिक कचरे को
नियंत्रित करने के लिए एक बाध्यकारी संधि लाई जाए। इस संधि में प्लास्टिक उत्पादन
से लेकर उसके निपटारे तक के संपूर्ण जीवनचक्र को शामिल किया जाएगा। इस संधि को 2024 तक अंतिम रूप दिए जाने की उम्मीद है। इस अवधि में राष्ट्रों को मिलकर
प्लास्टिक प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए नियम और रणनीतियाँ तैयार करने का
चुनौतीपूर्ण कार्य करना होगा। नेचर पत्रिका के एक संपादकीय के मुताबिक इस संदर्भ
में तीन प्रमुख मुद्दों को संबोधित करना होगा और इनसे निपटने की दृष्टि से कुछ सुझाव
भी दिए गए हैं।
प्रदूषण-
तमाम समुद्री कचरे में
से लगभग 85 प्रतिशत तो प्लास्टिक कचरा है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम
(यूएनईपी) का अनुमान है कि समुद्रों में प्रति वर्ष लगभग 2.3-3.7 करोड़ टन कचरा पहुँचेगा और वर्ष 2040 तक समुद्र में
प्लास्टिक कचरे की मात्रा तिगुनी हो जाएगी। दरअसल, अधिकांश
प्लास्टिक कचरा उत्पन्न तो भूमि पर होता है लेकिन नदियों से होते हुए अंतत:
समुद्रों में पहुँच जाता है।
ऑस्ट्रेलिया स्थित
मिंडेरू फाउंडेशन के अनुसार समाज के लिए प्लास्टिक प्रदूषण की लागत प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर से अधिक होती है जिसमें पर्यावरण की सफाई और पारिस्थितिक क्षति
शामिल हैं। यह लागत प्लास्टिक प्रदूषण को संबोधित न करने की वजह से पैदा होती है।
इस सम्बंध में दक्षिण
अफ्रीका स्थित काउंसिल फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च की प्रमुख वैज्ञानिक
लिंडा गॉडफ्रे के अनुसार संधि वार्ताकारों को प्लास्टिक प्रदूषण समस्या हल करने
सम्बंधी विभिन्न प्रतिस्पर्धी विचारों से निपटना होगा। जैसे गैर-सरकारी संगठन और
कार्यकर्ता एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने और सुरक्षित विकल्प खोजने
पर ज़ोर देते हैं। दूसरी ओर, प्लास्टिक उद्योग का मत है कि
कचरे के बेहतर संग्रहण के माध्यम से प्रदूषण से निपटा जा सकता है। इन दोनों से अलग,
अपशिष्ट प्रबंधन और पुनर्चक्रण उद्योग अधिक से अधिक पुनर्चक्रण की
वकालत करते हैं।
गॉडफ्रे को उम्मीद है
कि संधि में इन सारे उपायों का समावेश होगा। वैसे प्रत्येक उपाय का अनुपात हरेक
देश के लिए भिन्न हो सकता है। उनका मत है कि उच्च आय वाले देशों से निम्न आय वाले
देशों में प्लास्टिक कचरे के स्थानांतरण पर प्रतिबंध लगाने से भी प्रदूषण काफी कम
किया जा सकता है।
गॉडफ्रे यह भी चाहती हैं कि इस संधि के माध्यम से प्लास्टिक निर्माता उनके द्वारा बनाए गए उत्पादों के संग्रहण, छंटाई और पुनर्चक्रण की भी ज़िम्मेदारी व खर्च उठाएँ। इससे लैंडफिल में प्लास्टिक प्रदूषण में कमी आएगी और स्थानीय निकायों पर अपशिष्ट प्रबंधन का वित्तीय बोझ भी कम होगा। इसके साथ ही समुद्रों में प्लास्टिक की मात्रा को कम करने के लिए संधि में यह भी शामिल होना चाहिए कि विभिन्न देश अपने द्वारा उपयोग किए जाने वाले प्लास्टिक की मात्रा को कम करने का लक्ष्य एक समय सीमा में निर्धारित करें।
पुनर्चक्रण -
वर्तमान में केवल 9 प्रतिशत प्लास्टिक कचरे का पुनर्चक्रण किया जा रहा है क्योंकि इस कचरे का
मूल्य बहुत कम है। यदि इसका मूल्य अधिक होता तो अधिक से अधिक प्लास्टिक का
पुन:उपयोग किया जाता, पर्यावरण में यह कम मात्रा में पहुँचता
और नए प्लास्टिक उत्पादन की ज़रूरत भी कम होती। इसे वर्तुल अर्थव्यवस्था कहा जाता
है।
प्लास्टिक क्षेत्र में
वर्तुल अर्थव्यवस्था के लिए ऑस्ट्रेलिया के अरबपति व मिंडेरू फाउंडेशन के अध्यक्ष
एंड्रयू फॉरेस्ट ने इस संधि के माध्यम से पॉलीमर (प्लास्टिक निर्माण के बुनियादी
घटक) के निर्माण पर अधिभार लगाने का प्रस्ताव दिया है। इससे प्राप्त राशि का उपयोग
पुनर्चक्रण के लिए किया जा सकता है।
इसके अलावा वे
प्लास्टिक उत्पाद बेचने वाले खुदरा विक्रेताओं से प्लास्टिक कचरा वापस खरीदने और
इसका पुन: उपयोग करने के तरीके खोजने का भी सुझाव देते हैं। हालांकि खुदरा
विक्रेताओं पर पड़ने वाली अतिरिक्त लागत का प्रभाव सीधे तौर पर उपभोक्ताओं पर पड़ेगा
लेकिन फॉरेस्ट को उम्मीद है कि उपभोक्ता उन उत्पादों के लिए अधिक भुगतान करने को
तैयार होंगे जिससे पर्यावरण में पहुँचने वाले प्लास्टिक की मात्रा कम होती है। इस
विचार को अपनाने से ऐसे प्लास्टिक का उत्पादन बंद हो जाएगा जिसका पुन: उपयोग या
पुनर्चक्रण नहीं किया जा सकता क्योंकि उन्हें पुन: खरीदने वाला कोई नहीं होगा।
फॉरेस्ट चाहते हैं कि
इस संधि के माध्यम से अगले पाँच वर्षों में एक ऐसी प्रणाली विकसित हो जिसके तहत
प्लास्टिक प्रदूषण करने वाली कंपनियों को दंडित किया जा सके। ऐसा होने पर कंपनियाँ
अपने वर्तमान तौर-तरीकों को बदलेंगी।
हालांकि गॉडफ्रे
प्लास्टिक में वर्तुल अर्थव्यवस्था को लेकर शंका में हैं क्योंकि अभी तक
पुनर्चक्रित प्लास्टिक से होने वाले स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में बहुत कम
जानकारी है। कहीं ऐसा न हो कि हम पर्यावरण बचाने के चक्कर में स्वास्थ्य जोखिम बढ़ा
दें।
पूरे विश्व और विशेष
रूप से एशिया में प्लास्टिक कचरे को जला दिया जाता है। इससे काफी कम समय में कचरा
कम हो जाता है और यह बैक्टीरिया, वायरस और मच्छरों का
प्रजनन स्थल नहीं बन पाता। लेकिन प्लास्टिक के जलने से भारी वायु प्रदूषण होता है।
बाहरी वायु प्रदूषण मृत्यु का एक प्रमुख कारण है। कई क्षेत्रों में तो प्लास्टिक
भूदृश्य का एक हिस्सा बन चुका है और स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा बना हुआ है। यह
मिट्टी में रच-बस गया है और इसे हटाना एक बड़ी चुनौती होगी।
कई अध्ययनों से पता चला
है कि माइक्रोप्लास्टिक सांस, भोजन और पानी के माध्यम से
शरीर में प्रवेश कर सकता है। नैनोप्लास्टिक से मानव त्वचा और फेफड़े की कोशिकाओं
में क्षति और सूजन पैदा करने के भी साक्ष्य मिले हैं। प्लास्टिक में बिसफेनॉल-ए,
थेलेट्स और पीसीबी जैसे पदार्थ मिलाए जाते हैं जो अंतःस्रावी
गड़बड़ी और प्रजनन सम्बंधी विकारों का कारण बन सकते हैं। इस सम्बंध में कई
विशेषज्ञ इस संधि के माध्यम से प्लास्टिक में उपयोग किए जाने वाले रसायनों पर
प्रतिबंध लगाने या उसको चरणबद्ध तरीके से खत्म करने का सुझाव देते हैं। (स्रोत
फीचर्स)
1 comment:
जागरूक करता महत्त्वपूर्ण आलेख।
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