- डॉ. रत्ना वर्मा
समाज में व्याप्त किसी रूढ़िवादी परंपरा के विरोध में जब कभी कोई अभियान आरंभ किया जाता है, तो समाज के सभी वर्ग उसका समर्थन करते हैं और दिल से चाहते हैं कि वह बुराई जल्द से जल्द खत्म हो; परंतु पिछले महीने असम सरकार ने बाल विवाह के खिलाफ गिरफ्तारी का जो अभियान शुरू किया है, इसको लेकर अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली।
दरअसल राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) की रिपोर्ट के अनुसार, सबसे ज्यादा मातृ और शिशु मृत्यु दर असम राज्य की है और इसका सबसे बड़ा कारण बाल- विवाह को माना गया है। इस आँकड़े से चिंतित असम राज्य कैबिनेट ने पिछले माह ही 14 साल से कम उम्र की लड़कियों से शादी करने वाले को, यौन अपराधों से बच्चों के लिए संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो) के तहत गिरफ्तार करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। इसके बाद ही असम में हजारों की संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया गया और असम के मुख्यमंत्री का दावा है कि लोगों में बाल विवाह को लेकर जागरूकता आने लगी है। उन्होंने कहा है कि राज्य सरकार 2026 तक बाल विवाह को समाप्त कर देगी।
परंतु असम सरकार द्वारा बाल विवाह रोकने के लिए किए जा रहे गिरफ्तारी के इस तरीके पर गुवहाटी हाईकोर्ट ने भी बेहद सख्त टिप्पणी की है, यह कहते हुए कि- ‘सरकार के इस अभियान ने लोगों की निजी जिंदगी में तबाही ला दी है’।
हुआ यह है कि इस अभियान के तहत असम में लगभग 3000 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। कई मामलों में बाल विवाह करने वाले आरोपियों के न मिलने पर पुलिस परिवार के दूसरे सदस्यों को पकड़कर ले गई है । यही नहीं किसी परिवार में वर्षों पहले भी बाल-विवाह हुआ है, तो उनके भी रिश्तेदार गिरफ्तारी के डर से छुपते फिर रहे हैं। यही वजह है कि कोई भी बाल विवाह को रोकने के इस तरीके का समर्थन नहीं कर रहा है।
हम सभी जानते हैं कि बाल विवाह की समस्या आज की कोई नई समस्या नहीं है। अलग-अलग सामाजिक परिस्थितियों के चलते बाल-विवाह की कुप्रथा सदियों से चली आ रही है, जो आज बढ़कर एक गंभीर समस्या का रूप ले चुकी है। बाल विवाह किसी भी बच्चे के व्यक्तित्व के विकास में बाधक बनता है। शिक्षा के अवसर कम हो जाते हैं। कम उम्र में विवाह का लड़के और लड़कियों दोनों पर शारीरिक, बौद्धिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक प्रभाव पड़ता है। हमारे देश में अभी भी लड़के और लड़की के बीच किए जा रहे भेदभाव के कारण इसका दुष्परिणाम लड़कियों पर अधिक पड़ता है। उन्हें घरेलू हिंसा, दुर्व्यवहार और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से भी लड़कियाँ ही सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं।
देश के विभिन्न राज्यों में इस समस्या को लेकर समय-समय पर विभिन्न अभियान चलाए जाते रहे हैं और जिसके सकारात्मक परिणाम भी मिले हैं। आँकड़े भी इस बात की गवाही देते हैं कि यदि किसी सामाजिक कुरीति को दूर करने के लिए कारगर कदम उठाए जाएँ, तो किसी भी बुराई को समाप्त किया जा सकता है। जैसे- नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आँकड़ों के अनुसार 1992-93 में 20 से 24 साल उम्र की विवाहित महिलाओं में 54 फीसदी की शादी 18 साल से कम उम्र में हुई थी। यह अनुपात 2005-06 तक आते- आते 47 फीसदी और 2019-21 तक 23 फीसदी के आँकड़े पर आ गया है।
बाल- विवाह को रोकने के लिए पहले से कानून हैं, कानून में कई बदलाव भी किए जाते रहे हैं । उसके बाद भी यह समस्या हमारे देश में बनी हुई है। सवाल यह है कि बाल- विवाह को समाप्त करने का सबसे अच्छा तरीका क्या हो सकता है। जाहिर है मात्र कानून का डंडा दिखाकर इस बीमारी को दूर नहीं किया जा सकता। हमारे कानूनविद् और समाजशास्त्री भी यह मानते हैं कि शिक्षा के बेहतर अवसर, स्वास्थ्य सम्बन्धी जागरूकता और आर्थिक विकास के साथ बाल विवाह का प्रचलन अब कम होते जा रहा है। इसमें समय अवश्य लगता है पर इसके परिणाम दूरगामी और स्थायी होते हैं। यदि असम सरकार भी गिरफ्तारी जैसे उपाय न अपना कर इन उपायों को गंभीरता से अपनाती तो असम राज्य सरकार को कोर्ट के साथ आम लोगों की ऐसी फटकार न मिली होती।
असम में हो रहे बाल विवाह वहाँ की सामाजिक आर्थिक स्थिति के अनुसार अन्य राज्यों के मुकाबले अलग अवश्य हो सकते हैं पर उसे रोकने के लिए राजनीति पैंतरेबाजी अपनाना और जनता को जेल में भरना समस्या का इलाज नहीं है। यह जनता में आक्रोश ही बढ़ाएगा, ऐसा न हो कि एक सामाजिक समस्या राजनीति की भेंट चढ़ जाए। अतः बेहतर तो यही होगा कि कानून को अपनी जगह अपना काम करने दिया जाए और समाज में व्याप्त बाल विवाह के कारणों का अध्ययन कर परिस्थितियों के अनुसार विभिन्न जागरूकता अभियान को बिना किसी फायदे नुकसान के समाज के हित में तेजी से चलाया जाए। समाज के कुछ मुद्दों को जब तक राजनीति से ऊपर रखकर नहीं देखा जाएगा समाज और देश की उन्नति संभव नहीं है।
अतः आइए सब मिलकर सदियों से व्याप्त इस कुरीति को जड़- मूल से नाश करने में अपनी भागीदारी निभाएँ। यह तभी संभव है जब शासन- प्रशासन, कानून और विभिन्न सामाजिक संस्थाएँ मिलजुलकर जिम्मेदारी पूर्वक इसके विरूद्ध काम करेंगी तो निश्चित ही देश बाल विवाह के मकड़जाल से मुक्त होगा।
6 comments:
अच्छा आलेख-बधाई।
वाकई कानून का डंडा किसी समस्या का समाधान नहीं कर सकता, सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए लोगों तक समाजिक सुरक्षा और शिक्षा की अलख जगानी होगी।
आदरणीया,
सामयिक, ज्वलंत विषय को छुआ है आपने। इस दौर में फिर ज़रूरत है राजा राममोहन रॉय या दयानंद सरस्वती जैसे साहसिक समाज सुधारक व्यक्तित्वों की।
हार्दिक बधाई सहित सादर
रत्ना जी आपने बहुत अच्छा विषय उठाया है। कुछ समस्याओं के हल जागरूकता से ही हो सकते हैं।
आदरणीया !
समय की माँग थी इस लेख की !
हम व्यक्तिगत रूप से बाल विवाह की पैरोकारों में नहीं क्योंकि बाल विवाह किसी भी बच्चे के व्यक्तित्व के विकास में बाधक बनता ही है और शिक्षा के अवसर कम हो जाते हैं। कम उम्र में विवाह का लड़कियों पर शारीरिक, बौद्धिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक प्रभाव पड़ता है !
क़ानून की तारीख़ तय करनी चाहिए उसके बाद यह कार्यवाही हो तो अच्छा रहेगा !
सादर !
डॉ दीपेन्द्र कमथान,
एक ज्वलंत समस्या पर सुचिंतित आलेख।कुरीतियों को दूर करने हेतु सतत जागरूकता और शिक्षा के साथ ही कानून की भी आवश्यकता पड़ेगी,पर प्रायः राजनीतिक स्वार्थ समस्याओं का समाधान नही होने देते।
मेरे विचारों पर सहमति जताने के लिए आप सबका हार्दिक धन्यवाद आभार।
हम सबके मिले- जुले प्रयास से ही इस प्रकार की कुरितियों को समाज से दूर किया जा सकता है। अतः हमारी आपकी जिम्मेदारी है कि समाज को बेहतर बनाने के लिए आगे आएँ।
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