सदियों पहले किसी पंथ के पुरोहित नागरिकों के
मृत सम्बंधी की आत्मा को स्वर्ग भेजने के लिए एक कर्मकांड करते थे और उसके लिए
बड़ी दक्षिणा माँगते थे। उक्त कर्मकांड के दौरान वे मंत्रोच्चार करते समय मिट्टी
के एक छोटे कलश में पत्थर भरकर उसे एक छोटी सी हथौड़ी से ठोंकते थे। यदि वह पात्र
टूट जाता और पत्थर बिखर जाते, तो वे कहते कि मृत व्यक्ति
की आत्मा सीधे स्वर्ग को प्रस्थान कर गई है। अधिकतर मामलों में मिट्टी के साधारण
पात्र लोहे की हथौड़ी की हल्की चोट भी नहीं सह पाते थे और पुरोहितों को वांछनीय
दक्षिणा मिल जाती थी।
अपने पिता की मृत्यु से दुखी एक युवक बुद्ध के
पास इस आशा से गया कि बुद्ध की शिक्षाएँ और धर्म अधिक गहन हैं और वे उसके पिता की
आत्मा को मुक्त कराने के लिए कोई महत्त्वपूर्ण क्रिया अवश्य करेंगे। बुद्ध ने युवक
की बात सुनकर उससे दो अस्थिकलश लाने और उनमें से एक में घी और दूसरे में पत्थर
भरकर लाने के लिए कहा।
यह सुनकर युवक बहुत प्रसन्न हो गया। उसे लगा कि
बुद्ध कोई नई और शक्तिशाली क्रिया करके दिखाएँगे। वह मिट्टी के एक कलश में घी और
दूसरे में पत्थर भरकर ले आया। बुद्ध ने उससे कहा कि वह दोनों कलश को सावधानी से
नदी में इस प्रकार रख दे कि वे पानी में मुहाने तक डूब जाएँ। फिर बुद्ध ने युवक से
कहा कि वह पुरोहितों के मन्त्र पढ़ते हुए दोनों कलश को पानी के भीतर हथौड़ी से
ठोंक दे और वापस आकर सारा वृत्तांत सुनाए।
उपर्युक्त क्रिया करने के बाद युवक अत्यंत
उत्साह में था। उसे लग रहा था कि उसने पुरानी क्रिया से भी अधिक महत्त्वपूर्ण और
शक्तिशाली क्रिया स्वयं की है। बुद्ध के पास लौटकर उसने सारा विवरण कह सुनाया, “दोनों कलश को पानी के भीतर ठोंकने पर वे टूट गए। उनके भीतर स्थित पत्थर तो
पानी में डूब गए लेकिन घी ऊपर आ गया और नदी में दूर तक बह गया।”
बुद्ध ने कहा, “अब
तुम जाकर अपने पुरोहितों से कहो कि वे प्रार्थना करें कि पत्थर पानी के ऊपर आकर
तैरने लगें और घी पानी के भीतर डूब जाए।”
यह सुनकर युवक चकित रह गया और बुद्ध से बोला, “आप कैसी बात करते हैं!? पुरोहित कितनी ही प्रार्थना
क्यों न कर लें, पर
पत्थर पानी पर कभी नहीं तैरेंगे और घी पानी में कभी नहीं डूबेगा!”
बुद्ध ने कहा, “तुमने
सही कहा। तुम्हारे पिता के साथ भी ऐसा ही होगा। यदि उन्होंने अपने जीवन में शुभ और
सत्कर्म किए होंगे, तो उनकी आत्मा स्वर्ग को प्राप्त होगी।
यदि उन्होंने त्याज्य और स्वार्थपूर्ण कर्म किए होंगे तो उनकी आत्मा नरक को जाएगी।
सृष्टि में ऐसा कोई भी पुरोहित या कर्मकांड नहीं है, जो
तुम्हारे पिता के कर्मफलों में तिल भर का भी हेरफेर कर सके।”
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प्रेरणादायी प्रसंग। सुदर्शन रत्नाकर
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