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Nov 1, 2022

रेखाचित्रः एक बूँद

- कुसुमलता चांडक 

हरिद्वार का प्रसिद्ध हरि की पौड़ी घाट और शरद पूर्णिमा का दिन। उत्सुकतावश मेला देखने के मोह में पतिदेव के साथ मैं भी प्रातः नौ बजे ही हरि की पौड़ी पहुँच गई । नहाने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ रही थी, मेला लगा हुआ था। लेकिन इस धक्कम-धक्का वाली भीड़ में पहुँचने की हममें हिम्मत नहीं थी; अत: पुल पर पहुँचकर नजारा देखने लगे। नीचे का दृश्य देखकर ही मैं  चौंक गई, पानी तो मुश्किल से कहीं- कहीं एक या दो फुट के लगभग ही नजर आ रहा था। पानी की धार बहुत तेज थी। जगह - जगह पत्थर नजर आ रहे थे एवं सड़ते हुए कपड़ों का ढेर व काफी मात्रा में फूल भी तैर रहे थे। पुल के नीचे खंडित मूर्तियाँ बिखरी हुई थीं। खंडित मूर्तियाँ देखकर मन में सहज विचार आया कि संसार में हर चीज नश्वर है। जब तक उनकी पूजा होती है, तभी तक उनका अस्तित्व है। टूटने पर फेंक दी जाती हैं या गंगा जी में प्रवाहित कर दी जाती हैं। किसी मूर्ति का सिर गायब था, तो किसी का धड़ नहीं था, तो कहीं पर उनके हाथ - पैर बिखरे हुए थे। मूर्तियाँ प्लास्टर ऑफ पेरिस की थी ,जिसकी वजह से गंगा का जल भी प्रदूषित हो रहा था। भगवान शंकर की पावन नगरी में उनके प्रतिरूपों का यह हाल देखकर मन दुखी हो गया।

एक तरफ लोग उसी पानी में किंचित मात्र नहाकर या कहिए अपने शरीर को सप्रयास भिगोकर नहाने की रस्म पूरी कर रहे थे। कहाँ स्वच्छ कल-कल बहते पानी में नहाना और कहाँ मैली गंगा में नहाने को मजबूर होना। मन में यह सोचना कि हमने गंगा जी में स्नान कर लिया है और नहाने का पुण्य लाभ तो मिलेगा ही।

    दूसरी तरफ एक घाट पर करीब पुल के नीचे व इधर-उधर करीब 40-50 लोग जिसमें औरतें व मर्द व छोटी बच्चियाँ तक बड़े मनोयोग से गंगा की तलहटी से सिक्के बीन रही थीं। गीली मिट्टी उठाती व उँगलियों से टटोलती व पैसा मिलने पर एक खुशी से उनकी आँखों में चमक कौंध जाती थी, मानो कारूँ का खजाना मिल गया हो। कहीं - कहीं छलनी लेकर भी लोग गीली मिट्टी छान रहे थे शायद पैसे या फिर पीतल या सोना - चाँदी मिल जाए; क्योंकि हमारे समाज में लोग कुछ सोना या चाँदी की चीज भी माँ गंगा को अर्पण करते हैं। हमने इस बारे में वहाँ के लोगों से जानकारी ली, तो मालूम हुआ कि एक महीने से गंगा का सफाई अभियान चल रहा है; अतः गंगा जी का पानी ऊपर से रोक दिया गया है और कचरा बीनने वाले सफाई अभियान में लगे हुए हैं। यह सब देखकर लगा कि गंगा माँ ने अपनी झोली खोल दी है। मानो कह रही है कि मेरा सब कुछ ले लो, लेकिन वापिस मुझे मेरा स्वच्छ स्वरूप दे दो। यह सब देखकर मन दुखी हो गया। गंगा मैया को अर्पित करने के लिए जो फूल और नारियल लाई थी, वो फूल हमने एक पेड़ के नीचे डाल दिए व नारियल बच्चों को दे दिया। मैनें अपने पतिदेव का हाथ पकड़ लिया और एक संकल्प लिया कि गंगा जी की स्वच्छता में एक बूँद ही सही, लेकिन सहयोग करूँगी और करती रहूँगी।

                            

भोपाल, म.प्र.

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