ज्ञानियों और पण्डितों का कथन है कि जीवन में
आपदाएँ आएँ, तो उनसे न घबराएँ । उनका यह कहना एक सौ एक
नए पैसे सही है। आपदाओं से बड़े-बड़े फायदे हैं। सूखा, बाढ़,
भूस्खलन, वृक़ान, भूकम्प
आदि अनेक आपदाएँ हैं, जिनका प्रभाव बड़ा व्यापक होता है।
सूखा और बाढ़ के दौरे तो हमारे देश में कहीं न कहीं प्रायः हर साल बे-रोक-टोक होते
ही रहते हैं। हाँ, भूकम्प, तूफ़ान,
युद्ध वगैरह भी यदि जल्दी-जल्दी हमारे मेहमान बनते रहें, तो अच्छा है। इन आपदाओं के आने पर सरकार से लेकर समाज के ‘स्वयंसेवी’
संगठन और जनसाधारण तक की अच्छी-खासी लाटरी खुल जाती है।
सरकार मित्र देशों से ही नहीं, अपने जानी दुश्मनों से भी सहानुभूति के बहाने करोड़ों-अरबों की
राहत-सामग्री बटोर लेती है, फिर भी उसका पेटा पूरा नहीं
होता। महज राहत के नाम पर ही वह न जाने कितने टैक्स जनता पर थोप देती है।
कर्मचारियों से एक-एक दिन का वेतन और जनता-जनार्दन से दान वसूल लेती है। कथित
समाज-सेवी संस्थाओं के तो पौ-बारह हो जाते हैं। इन आपदाओं के समय वे चन्दा इकट्ठा
करके नाम और काम दोनों ही कमा लेते हैं। छुटभइये नेताओं पर तो चन्दा उगाहने का
भूत-सा सवार हो जाता है। परमार्थ से स्वार्थ की ओर अग्रसर होने के ये सुनहरे अवसर
हुआ करते हैं ।
कहीं बाढ़ आती है, तो लोग
डूबते-उतराते हैं, अपनी सम्पत्ति गवॉँते हैं, मगर कुछ लोग तर हो जाते हैं। कहीं भले ही सूखा हो और सारा इलाक़ा भूखा हो,
लेकिन नेताओं, अफसरों और स्वयंसेवी महानुभावों
के घर हरियाली छा जाती है। इकट्ठे किए गए चन्दे और सरकार से प्राप्त राहत-कोष का
अच्छा-खासा हिस्सा उनके हिस्से में आ जाता है। दान में मिली या तैयार कराई गई
राहत-सामग्री में से काफी कुछ उनके घरों की शोभा बढ़ाती है। तीन लोकों में न्यारी
भगवान कृष्ण को मथुरा नगरी में भी एक बार भयंकर बाढ़ आई। किसी से नहीं रुक पाई। उस
वक़्त देखा गया कि भुने चने, गुड़, पूड़ी,
सब्जी,चाय, दूध के पैकेट
तक राहत-अधिकारी के कर्मचारी अपने थैलों में खुले आम भर-भर कर अपने घर ले जाते थे।
बचा-खुचा सामान बराय-नाम बाढ़-पीड़ितों तक पहुँचाकर यश लूटा जाता था। ।
इन आपदाओं के आते ही व्यापारी-वर्ग के तो ठाट हो
जाते हैं। गल्ला, दाल, चीनी,
गुड़, तेल, घी, कपड़ा आदि सारी चीज़ों की एकदम तेजी अर्रा पड़ती हे है। दूरदर्शी व्यापारी
बखूबी जानते हैं कि इन चीज़ों की खपत होनी ही है, फिर क्यों
न खरीददारों के सिर पर अच्छी-खासी चपत लगाते हुए आँधी के आम बटोर लिए जाएँ।
अधिकारियों को खुश रखने के लिए उन्हें चन्दा भी तो देना होता है। आखिर चन्दा अपनी
गाँठ से तो देना नहीं है। तेल को तिलों में से ही निकालना है।
सांस्कृतिक कार्यक्रमों, अलाँ-फलाँ नाइटों के आयोजकों, साड़ी और रेडी-मेड
कपड़ों की डिस्काउण्ट सेल लगाने वालों को पीड़ितजनों के लिए राहत पहुँचाने तथा
पुण्य के भागी बनने-बनाने का एक मजबूत आधार हाथ लग जाता है। घोषणा की जाती है कि
आमदनी का सारा पैसा राहत-कोष में दिया जाएगा। लीजिए, मनोरंजन
और व्यापार-कर से भी बचे। कितना आया, कितना गया, कितना कमाया, इसे कौन देखता है?
क्रिकेट-मैचों को प्रायोजित करके अपने विज्ञापन
के जरिए अन्धाधुन्ध कमाई करने वाली पेय पदार्थों और सिगरेट की कम्पनियों को ही
नहीं,
गुटकों-सुटकों तथा बीडी-तम्बाकू के निर्माण-कर्ताओं के लिए भी
बढ़िया मौका रहता है कि इन दैवीय आपदाओं के आने पर, चाहें तो
वे भी इसी तरह की परोपकारी घोषणाएँ करके खुद भारी मुनाफ़ा कमा लें।
विदेशी पावडरों और खुशबुओं से लिपी-पुती बड़े
घरों की महिलाओं व अफसरों की नकचढ़ी बीवियों को भी चन्दा इकट्ठा करने के बहाने
अपनी लियाकत और ताकत दिखाने का मौका मिल जाता है। कचहरी, इन्कम-टैक्स, सेल्स-टैक्स के बाबुओं से लेकर मंत्री
तक, सभी ज़्यादा से ज़्यादा चन्दा वसूल करके अपने-अपने
आक़ाओं की नजरों में वाहवाही लूटने में जुट जाते हैं। जिस विभाग में जितनी ज़्यादा
वसूली होती है, उसे उतनी ही अधिक वाहवाही मिलती है। अख़बारों
में नाम आ जाते हैं। जिलाधिकारी, मंत्री या प्रधान मंत्री को
चैक अथवा ड्राफ्ट देते हुए फोटो खिंचते हैं, विज्ञापन होता
है। यह क्या कम ज्ञानकी बात है? इसके अलावा बड़े-बड़े और
सामर्थ्यवान् लोगों के 'नोटिस' में आकर,
अपनी पहचान बनाकर कभी किसी दिन अपना कोई काम भी बनाया जा सकता है।
एक तथाकथित अखिल भारतीय संस्था के अध्यक्ष महोदय
की मीडिया क॑ लोगों से इसी बात पर तुनका-तुनकी हो गई कि दूरदर्शन तथा अखबार उनके
कार्यकर्ताओं को पूरा-पूरा कवरेज नहीं दे रहे हैं। जब उनसे पूछा गया कि क्या उनकी
समाजसेवी संस्था भूकम्प- पीड़ितों को राहत पहुँचाने के काम में प्रचार पाने के लिए
लगी है?
तो उनका बेझिझक उत्तर धा-'जो हम कर रहे हैं,
उसका पता तो लोगों को चलना ही चाहिए। वरना हमारे करने का फ़ायदा क्या?’
सार की बात यह कि आपदाएँ कुछ लोगों के लिए सचमुच
सौगात बन कर आती हैं तथा ढेर सारी खुशियाँ लाती हैं। अतः ऐसे लोग मनौती मनाते रहते
हैं कि आपदाएँ आएँ और बार-बार आएँ। ●
सम्पर्कः 46, गोपाल विहार
कॉलोनी, देवरी रोड, आगरा-282001
(उ.प्र.)
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