1. उठो वत्स!
उठो वत्स!
भोर से ही
जिंदगी का
बोझ ढोना
किसान होने
की पहला शर्त है
धान उगा
प्राण उगा
मुस्कान उगी
पहचान उगी
और उग रही
उम्मीद की
किरण
सुबह सुबह
हमारे छोटे
हो रहे
खेत से....!
2. गाँव से
शहर के
गोदाम में गेहूँ?
गरीबों के
पक्ष में बोलने वाला गेहूँ
एक दिन गोदाम
से कहा
ऐसा क्यों
होता है
कि अक्सर
अकेले में अनाज
सम्पन्न से
पूछता है
जो तुम खा
रहे हो
क्या तुम्हें
पता है
कि वह किस
जमीन का उपज है
उसमें किसके
श्रम की स्वाद है
इतनी ख़ुशबू
कहाँ से आई?
तुम हो कि
ठूँसे जा रहे
हो रोटी
निःशब्द!
3. ठहराव
जिंदगी के
सफर में
संवेदना को
है
अपने पंथ की
पहचान
मुसाफिर ठहरो
चौराहा है
पूछ लो
सम्भावना से सही दिशा
ले लो थोड़ा
ज्ञान
पता तो पता
है
चुप्पी और
चीख की चिंता है
संवेदनशील
सुनो!
चलते चलते
चिंतन करो
काँटें बिछे
हैं
पैर धीरे
धीरे धरो
कछुए के
धैर्य-सा
हर यात्रा
में होना चाहिए-
रचनाकार के
बारे मेंः जन्म: ग्राम- खजूरगाँव, पोस्ट- साहुपुरी,
जिला- चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत, 221009, शिक्षा: काशी
हिंदू विश्वविद्यालय में स्नातक अंतिम वर्ष का छात्र (हिंदी आनर्स) सम्पर्कः
मो.नं. : 8429249326, ईमेल : corojivi@gmail.com
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