- धर्मेन्द्र गुप्त
अपने
बारे में कभी सोचा नहीं
ठीक से दरपन कभी देखा नहीं
भूखे बच्चे को
सुलाऊँ किस तरह
याद मुझको कोई भी क़िस्सा नहीं
आप मुझको तय करें मुमकिन नहीं
मैं कोई
बाज़ार का सौदा
नहीं
ज़हन में हर
वक़्त रहती धूप है
मेरा सूरज तो कभी ढलता नहीं
नाज़ मैं किस चीज़ पर आख़िर करूँ
मुझमें
मेरा कुछ भी तो अपना नहीं
जो ठहर
जाए निगाहों में मेरी
ऐसा
मंज़र सामने आया नहीं
सबके हिस्से में कोई अपना तो है
अपने हिस्से में मैं ख़ुद अपना नहीं
तेज हैं कितनी हवाएँ , फिर भला
दर्द का बादल ये क्यों उड़ता नहीं
सम्पर्कः के 3/10 ए.
माँ शीतला भवन गायघाट, वाराणसी -221001, 8935065229,
8004550837
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