समीक्ष्य कृति- धूप के गुलमोहर (लघुकथा-संग्रह), प्रथम संस्करण- 2021 लेखकः ऋता शेखर’मधु’, प्रकाशक: श्वेतांशु प्रकाशन- नई दिल्ली, पृष्ठ: 188, मूल्य: 340/-
अपने नाम को सार्थक करता ऋताशेखर का लघुकथा
संकलन,
‘धूप के गुलमोहर’ कहीं धूप में गुलमोहर हो जाने की प्रेरणा देता है
तो कहीं जेठ की आग उगलती दोपहरिया में रस-रंग की धार सा अंतस को गहरे तक सिंचित
करता है।
पाँच श्रेणियों में सलीके से वर्गीकृत की गयीं
138 लघुकथाओं से सुसज्जित यह संकलन हमें वैचारिक एवं भावनात्मक दोनों ही स्तर पर
प्रभावित और समृद्ध करता है।
सामाजिक सरोकार की श्रेणी वाली कथाएँ हमें मात्र
मानवीय सरोकारों की ओर अँगुली पकड़कर ही नहीं ले चलती हैं, वरन् हमारी सोच में कुछ डिग्री का फर्क लाने की भी क्षमता रखती हैं।
ममता के बेपनाह विस्तार में भी संबंधों के दायरे
हमारी सोच में झुकाव, वरीयता स्वाभाविक रूप से ले ही
आते हैं। यह बात संकलन की प्रथम कथा,
‘माँ’ में लेखिका ने कुछ इस अंदाज में कही है कि कथा समाप्त करते ही
मेरे भीतर का पाठक चमत्कृत हो मुस्कुराया।
‘डील’
हमारे बदलते सामाजिक परिवेश की कथा है। ‘नेग’ में समय के साथ आया परिवर्तन तो
परिलक्षित है ही, किंतु साथ ही है पुरानी
रूढ़िवादी मानसिकता भी। इन दोनों कथाओं का
चुस्त-दुरुस्त चुहल- भरा अंत ही कथाओं को रोचक बना जाता है। कथन और कहन का संतुलन बखूबी बनाए रखा है लेखिका
ने।
दोहरी
मानसिकता वाले आचरण पर चोट करती कथा ‘नैतिकता’ का कसाव इसका मुख्य आकर्षण हैं।
‘प्रैक्टिकल नॉलेज’ की कथा-वस्तु थोड़ा हटकर है और यही ताजापन इस कथा की विशेषता
भी है।
‘रिटायर्ड’- नौकरी की सेवा अवधि समाप्त होने पर
व्यक्ति के भीतर उपजे खालीपन, अनुपयोगी होने के अहसास को
दर्शाती कथा है। न लेखिका ने कहीं उस खालीपन का जिक्र किया, न
पात्र विशेष ने व्यक्त किया, कथा के अन्य पात्रों का व्यवहार
भी पात्र विशेष के प्रति अत्यंत सौहार्द पूर्ण रहा; फिर भी
कथा समाप्त कर मन भीग गया। अनकहे ही सब कुछ कह देने का कौशल ही इस कथा को विशेष
बना जाता है।
इस श्रेणी में लेखिका ने कुछ ऐसे सरोकारों की ओर
भी हमारा ध्यान आकर्षित किया है, जिन पर हम बात करने से
बचना चाहते हैं, जिन्हें हम हमेशा कालीन के नीचे खिसका देते
हैं। ऐसी ही एक कथा है ‘कासे कहूँ ’।
लघुकथा- ‘युग परिवर्तन’ और ‘बेतार संदेश’ में
हमारी युवा पीढ़ी की संवेदनशीलता को सटीक प्रतीकों के माध्यम से दर्शाया गया है।
इसी प्रकार सामाजिक सरोकार की श्रेणी में कुल मिला कर 41 कथाएँ हैं जो अपने-अपने
ढंग से पाठक मन पर अपनी छाप छोड़ती हैं।
दूसरी श्रेणी ‘रिश्तों की लघुकथाएँ’ की है, जिसके अंतर्गत 45 कथाएँ हैं। माता- पिता- बच्चे, भाई-
बहन, सास- ससुर- बहू, देवरानी- जिठानी,
बहन- बुआ, सखियाँ। लेखिका ने हर रिश्ते के
ताने-बाने को बुना है इन कथाओं में।
संप्रेषण किसी भी रचना की आत्मा होती है और
लघुकथा में शब्द सीमा की अनिवार्यता के कारण भावों, विचारों
का संप्रेषण तो रस्सी पर चलती नटी- सा संतलुन का कौशल माँगता है। कथा ‘काठ की
हांडी’ में लेखिका का यह कौशल बखूबी उभर कर आया है।
‘शापित फल्गु’ कई कारणों से एक बहुत ही खास कथा
है। ननद- भाभी के रिश्ते को नारी की पारस्परिक
समझ से जोड़ना लेखिका की विकसित सोच का परिचायक हैं। इस कथा की सबसे बड़ी विशेषता
है एक पौराणिक संदर्भ को सामाजिक विचारधारा से लघुकथा के चोले में कुछ इस तरह फिट
कर देना कि कहीं भी न असहजता लगे, न ढीलापन नजर आए।
‘संक्राति की सौगात’, ‘मनमर्जी’ आदि लघुकथाएँ सास-ससुर और बहू के रिश्ते में एक नया मोड़ लेकर
सामने आती हैं और मन को कुछ ऐसी ठंडक पहुँचाती है, जैसे जेठ
की तपती धरती पर पहली बारिश की फुहार।
‘बीज का अंकुर’, ‘सागर
की आत्महत्या’, ‘पिता की कोख’, ‘ठोस
रिश्ता’ आदि कुछ ऐसी कथाएँ हैं, जो अपने- अपने विशिष्ट अंदाज
में हमसे यह कहती हैं कि हर पारिवारिक रिश्ता दूसरे रिश्तों को मजबूती देता है यदि
हम समझदारी से काम लें।
कहते हैं लघुकथा में एक संदेश, एक उद्देश्य का निहित होना उसकी शक्ति का परिचायक होता है। इस श्रेणी की
लघुकथाओं में पारिवारिक संबंधों में समस्याएँ और उनके निराकरण का संदेश निहित है।
मानवेतर लघुकथाओं की श्रेणी की पाँचों संदेशपरक
कथाओं में लेखिका ने अलग- अलग और कुछ तो बड़े अनूठे प्रतीक चुने हैं । ‘प्यासी
आत्मा’,
दोधारी तलवार सी हमारे सिर पर लटकती है, तो
‘व्यवस्था का नकाब’, हमें आईना दिखाती है।
अगली श्रेणी की चार लघुकथाएँ को ऋता जी ने
कोरोनाकाल की लघुकथाओं के अंतर्गत रखा है। इन लघुकथाओं की पृष्ठभूमि भले ही
कोरोनाकाल है, किंतु उनकी कथावस्तु सार्वकालिक है, फिर वह ‘दाग अच्छे हैं’ की सास-बहू का परस्पर सांमजस्य हो या
‘भीड़-निर्माता’ की प्रिया की संवेदनशीलता।
पाँचवी और आखिरी श्रेणी है विविध कथाओं की। इस
श्रेणी में 43 लघुकथाएँ हैं। एक तरफ ‘मरियम’, ‘समझौता’,
आदि लघुकथाएँ अपनी संवेदनशीलता से भीतर तक उतर जाती हैं, तो दूसरी तरफ ‘प्रतिकार’ जैसी कथा
पीड़ा और अट्टहास दोनों को एक साथ ही उपजा जाती है। हर कथा का अपना विशिष्ट कथ्य
है और विशिष्ट ही कहन भी।
कुल मिलाकर ‘धूप के गुलमोहर’ से हो कर गुजरना
संवेदनाओं, भावों, सरोकारों की एक
ऐसी यात्रा है, जिसमें एक तरफ यथार्थ हमारी बाह थामे चलता है,
तो दूसरी ओर हालात को बदलने की संभावनाएँ भी हमारा साथ नहीं छोड़ती।
जो निभा पाए, उसके लिए लघुकथा अभिव्यक्ति का एक अत्यंत सशक्त
माध्यम है। लघुकथा विधा के प्रति ऋता जी की गंभीरता और उसके निर्वाह के प्रति उनकी
सजगता का परिचय तो इस संकलन के प्रारम्भ में उनके द्वारा लिखी गई ‘मेरी बात’ से ही
मिल जाता है।
धूप के
गुलमोहर की भूमिका लिखी है प्रेरणा गुप्ता जी ने।
जो ईमानदारी इस विधा के प्रति उनकी स्वयं की लघुकथाओं में परिलक्षित होती
है,
उसी ईमानदारी का निर्वाह उन्होंने इस संकलन की भूमिका लेखन में किया
है।
सम्पर्कः 5 /138 विकास नगर, लखनऊ - 226022, Email: namitasachan9@gmail.com
6 comments:
अभिभूत हूँ आदरणीया नमिता जी की समीक्षा से। लघुकथाओं के मर्म तक पहुँचकर कुशलता से शब्दों में बांधना उनकी लेखन शैली की विशिष्टता है। उदंती जैसी उत्कृष्ट पत्रिका में पुस्तक को स्थान पाना पुरस्कार पाने जैसा है। बहुत बहुत आभार आदरणीया नमिता जी एवं आदरणीया रत्ना जी 🙏
हार्दिक आभार, ऋता जी, अच्छी लघुकथाओं का आनंद हमें उपलब्ध कराने हेतु। रत्ना जी आ बहुत आभार।
अद्भुत अप्रतिम समीक्षा की है दी नमिता सुंदर जी ने बहुत बहुत साधुवाद है उन्हें
बहुत संतुलित और सटीक समीक्षा।
सादर आभार, आपका
हार्दिक आभार, रेखा जी
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