बदले हुए परिवेश में
बदल गया कथ्य है।
झूठ बोलते हैं आँकड़े
प्रपंच हुआ है भाषण
विचारों को बांध रहा
तर्कों का अनुशासन।
सुविधा से छोटा होकर
छिप गया कहीं सत्य है।
हम जिन्हें पात्र समझतें
वे केवल हैं कठपुतलियाँ
जैसे चाहे वैसे नचा रहीं
सूत्रधार
की अँगुलियाँ।
मंच स्वयं बना यवनिका
संचालक हुआ नेपथ्य है।
किसकी कर रहें गुलामी
शब्दों को ज्ञान नहीं है
कठपुतलियों को सूत्रधार
की
पहचान नहीं है।
विचार छोड़ विचारधारा का
समाज बन गया भृत्य है।
बदले हुए परिवेश में
बदल गया कथ्य
है।
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kshitijjain415@gmail.com
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