उषा उथुप, विकास झा और सृष्टि से एक खास बातचीत
- रचना श्रीवास्तव
हिन्दी फिल्म संगीत के स्वर्णिम इतिहास में किशोर, रफ़ी, मुकेश, लता और
आशा जी का युग अद्भुत था और इन महान हस्तियों के बीच अपने आप को स्थापित करना एक
दुरूह काम था। इतिहास गवाह है की वे संगीत के कई दशक अपने नाम कर पाए क्योंकि उन
सबकी अपनी-अपनी विशेषता थी। रफ़ी साहेब जहाँ ऊँचे सुरों में बड़ी सहजता और मिठास से
गाते थे, किशोर दा की गंभीर आवाज़ और उसका चुलबुलापन
उनको अनोखा बनाता था और मुकेश जी की मीठी आवाज़ आत्मा तक पहुँचती थी। लता जी की शहद
में डूबी आवाज़ और पक्के रागों में उनकी पारंगता, उनको
विशेष बनाती थी और आशा जी, मस्ती भरे गानों की रानी
थीं। ऐसे में कुछ नया लेकर आना और इन सबके बीच अपनी पहचान बना पाना बहुत मुश्किल
था पर 1971 में एक फिल्म आयी "हरे रामा हरे
कृष्णा" और इसका टाइटल सॉन्ग गाया, एक नयी गायिका
ने, जिनका नाम था "उषा उथुप"। हरे रामा हरे
कृष्णा, बहुत जल्दी सबकी ज़ुबान पर चढ़ गया और आरडी बर्मन की धुन और ऊषा जी की आवाज़ देश विदेश के लोगों पर सर चढ़कर बोलने
लगी। इस आवाज़ में एक अलग बात थी और जो इस आवाज़ के दीवाने हुए, बस इसी आवाज़ के दीवाने बनकर रह गए। कभी-कभी मुझे लगता है की उषा उथुप लेडी
किशोर कुमार हैं क्योंकि उनकी आवाज़ में वही रौब है, वही
शरारत है और वही अल्हड़पन और मस्ती है। उषा जी का "हरे रामा हरे कृष्णा"
से शुरू हुआ संगीतमय सफर, "शालीमार",
"शान" और सात खून माफ़ से
अब तक ज़ारी है। उनके गानों की दीवानगी आज भी बदस्तूर ज़ारी है। हर कलाकार का जीवन
विविध रंगों से भरा होता है और हम जितना जानते हैं, दरअसल
वही पूरा सच नहीं होता। उषा उथुप को एक इंसान और एक कलाकार के तौर पर और बेहतर
समझने का प्रयास किया विकास झा जी ने उनकी आत्मकथा "उल्लास की नाव" के
द्वारा। उषा जी की आत्मकथा "उल्लास की नाव" के बारे में मैंने उषा जी और
विकास जी दोनों से बात की। बड़ी दिलचस्प बातें हुईं और बड़ा मज़ा आया इन दोनों से बात
करके और मैं वही आप सबसे बाँट रही हूँ-
विकास जी, उषा जी पर किताब लिखने का
विचार आपको कैसे आया ?
मैं किशोरावस्था से ही उषा जी के गाने सुनता था। उस समय मुझे यह नहीं
पता था कि मैं एक पत्रकार बनूँगा। उषा जी मेरे लिए बहुत पहले से ही सम्मानीय थीं।
उनकी ऊर्जा, उनके सुर मुझको बहुत ही प्रभावित करते थे।
जब मैंने पत्रकारिता की दुनिया में कदम रखा तो मुझे लगा कि मैं उनका एक लम्बा सा
साक्षात्कार लूँ। मैंने कई बार उषा जी के ऑफिस में फ़ोन किया पर अंजन दा हमेशा फ़ोन
उठाते और कहते "दीदी बिजी हैं' या कहते दीदी
रिकॉर्डिंग में हैं। मैं कलकत्ता आता और हर बार निराश होता। हर बार उषा जी से
मिलना नहीं हो पाता तब मैं किसी और का साक्षात्कार ले कर या कोई और स्टोरी लिख कर
वापस चला जाता। ऐसा करते-करते २० साल निकल गए। इसी समय में मैंने बहुत सी किताबें
लिखीं। एंग्लो इंडियन का एक गाँव है उन पर मैंने एक किताब लिखी "माक्सेके
गंज"। इसके बाद मैं फिर एक बार कलकत्ता आया और फिर उषा जी के ऑफिस में फ़ोन
किया। इस बार नोबिन दा ने फ़ोन उठाया। उनको मैंने अपने २० साल की दास्तान सुनाई।
उन्होंने कहा कि आप दीदी का नंबर लीजिये और उनसे बात कर लीजिये। बस यहीं से
प्रारम्भ हुआ लिखने का सिलसिला। यहाँ मैं यह कहना चाहूँगा की भगवान जो करता है, अच्छा ही करता है क्योंकि इस इंतजार के समय में मैंने जो किताबें लिखी उससे
मेरा आत्मविश्वास बहुत बढ़ गया। मुझे लगा ३००-४०० पन्ने की किताब तो मैं लिख सकता
हूँ और शायद यही कारण है कि मैं 'उल्लास की नाव' लिख सका।
उषा जी, जब विकास कुमार जी आपके पास
आये और उन्होंने कहा कि वह आपकी जीवनी लिखना चाहते हैं तो आपकी क्या
उषा जी के साथ किताब के लेखक विकास झा |
प्रतिक्रिया थी?
विकास जी ने जब यह कहा तो मुझे बहुत ख़ुशी हुयी थी। जब विकास जी ने मुझे बताया कि वह पिछले २० सालों से मुझसे मिलने की कोशिश कर रहे थे तो इस बात का मुझे बहुत दुःख हुआ। मैंने उनको सॉरी भी बोला क्योंकि मुझको तो मालूम ही नहीं था कि कोई लेखक मुझसे मिलने की कोशिश कर रहा है। क्या था कि उस समय मोबाइल नहीं होते थे, मात्र एक लैंड लाइन था तो उस समय जो भी वहाँ बैठता था वही फोन उठाता था। उस समय वहाँ पर अंजन दास जी रहे होंगे और उन्होंने ही फ़ोन उठाया होगा और बात मुझ तक नहीं पहुँचाया होगा। शायद उन्होंने अपने मन में ही सोच लिया होगा कि क्यों करना है इतना सारा इंटरव्यू और वो वहीं पर इनको मना कर देते होंगे। वैसे मैं ऐसी नहीं हूँ कि आप सिर्फ मेरे मैनेजर से ही बात करें पर मेरे सभी मैनेजर बहुत अच्छे रहे हैं। यहाँ मैं यह भी सोचती हूँ कि समय-समय की बात है, जब तक भगवान नहीं चाहते हैं तब तक कोई काम नहीं होता है।
उषा जी, किताब बनने की यह पूरी यात्रा कैसी रही?
इसकी पूरी यात्रा बहुत ही सुखद रही। जब मैं विकास जी से जुड़ी, उसके बाद हमारे साक्षात्कारों का सिलसिला प्रारम्भ हुआ। हमने बहुत से विषयों पर बात की और मुझे इस किताब पर बहुत गर्व है। शायद विकास जी को ऐसा नहीं लग रहा होगा जैसा मुझको लग रहा है क्योंकि मुझ जैसी साधारण गायिका की किताब आयी और वो भी हिन्दी में। मेरी किताब का हिन्दी में आना मेरे लिए बहुत ही ख़ुशी की बात है।
विकास जी जब आपसे प्रश्न पूछ रहे थे तो जीवन का कौन सा ऐसा लम्हा था जिसको बताने में आपको कष्ट हुआ ?
मैं ५१ सालों से गा रही हूँ। बहुत से लोगों ने मेरा साक्षात्कार लिया है। बहुत सी बातें थीं जिनको मैंने किसी को नहीं बताया। परन्तु जब मैं इनके साथ बात कर रही थी तब बहुत सहज लगा। विकास जी मुझसे हिंदी में बात करते थे, इनसे मैंने बहुत कुछ सीखा है। विकास जी नोटबुक निकालते थे और उस पर लिखते जाते थे। जब पहली मुलाकात हुई तो मैंने उनसे कहा क्या आप डिक्टोफोन में रिकॉर्ड करेंगे? तो इन्होंने कहा, नहीं मैं पूरा हाथ से लिखूँगा। उनकी बात सुन कर मुझको बहुत ही अच्छा लगा क्योंकि मुझको भी लिखना बहुत अच्छा लगता है। कागज़ और कलम से मुझको बहुत प्रेम है। आजकल कोई नहीं लिखता तो मुझको इनका लिखना बहुत अच्छा लगा। साक्षात्कार के प्रारम्भ में बहुत ही उबाऊ हिस्सा आया जहाँ मैंने साधारण प्रश्न जैसे कब काम करना प्रारम्भ किया, कहाँ से काम करना प्रारम्भ किया, कैसे शुरू किया इत्यादि। फिर मैंने कहा कि क्या मैं उन विषयों पर भी बात करूँ जिन पर आज तक मैंने बात नहीं किया है? जैसे अपने व्यक्तिगत जीवन में या व्यवसायिक जीवन में किन संघर्षों का सामना किया है? मैं हमेशा कहती थी की नहीं मैंने नहीं किया है परन्तु कभी भी मैंने यह नहीं बताया कि पोलियो के बुखार के बाद मुझको बहुत परेशानी हुई थी। मुझे लकवा हो गया था। जिसको कहते हैं हैमिपैरासिस।
इस बारे में कोई नहीं जानता। बहुत से लोगों को अपनी परेशानियों के बारे मैं बात करना बहुत ही अच्छा लगता है परन्तु मुझको नहीं लगता हालाँकि मुझे बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा पर मैंने उन परेशानियों में भी अच्छाई ढूंढने की कोशिश की। जब आपकी कोई जीवनी लिख रहा हो तो सबसे महत्त्वपूर्ण होता है उस पर विश्वास करना। मैंने विकास जी से अनुरोध किया कि आप इसको सेंसेशनल नहीं बनाएँगे। मुझको सेंसेशनल बाते करना अच्छा नहीं लगता। मुख्यमंत्री जतिन चर्टजी ने मुझे गाने से बैन कर दिया था पर आप कभी नहीं देखेंगी कि मैंने कभी उस घटना के बारे में बात की हो पर विकास जी से मैंने सारी बातें की क्योंकि मैं उन पर विश्वास करती हूँ। जो भी आपकी जीवनी लिख रहा है उस पर आपको विश्वास होना चाहिए, उसका आदर करना चाहिए और उसको आपसे और आपको उससे ईमानदार होना चाहिए।
मैंने और मेरी बहन इन्दिरा ने एक ही परिवार में शादी की है पर मेरी शादी ठीक नहीं चली पर मैंने कभी इस बारे में बात नहीं की। मुझे अच्छा नहीं लगता है ऐसी बातें करना पर विकास जी से बात की मैंने। मुझे उनसे बात करना बहुत सहज लगा। इस किताब में उन्होंने मेरे पूरे परिवार के बारे में बहुत ही गहराई से लिखा है।
आप हिन्दी इतनी अच्छी कैसे बोल लेती हैं ?
मुझे भाषाएँ अच्छी लगती है। मैं मुम्बई मैं पली बढ़ी हूँ, वहाँ मेरी दूसरी भाषा हिन्दी थी और हमारी पड़ोसी थीं ज़मीला। उनसे भी मैंने बहुत सीखा। उनके साथ ही पली हूँ। उनके साथ रह कर मैंने बहुत उर्दू भी सीखी है।
विकास जी, उषा जी की हिन्दी के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
इस विषय में मैं एक घटना का ज़िक्र करना चाहूँगा। "उल्लास की नाव" के विमोचन के लिए पटना में एक कार्यक्रम रखा गया था। कार्यक्रम के बाद इनके सम्मान में एक छोटी सी पार्टी रखी थी। उस पार्टी में बिहार के चीफ सेक्रेटरी त्रिपुरारि शरण जी भी आये थे और बोले आपकी किताब हिन्दी में आयी है तो आप एक कागज़ पर हिन्दी में मेरा नाम लिख दीजिये। क्योंकि जब आप किताब पर हस्ताक्षर कीजियेगा तो मेरा नाम सही लिखा हो इसलिए कह रहा हूँ। मैं सोच में पड़ गया कि पता नहीं उषा जी लिख पाएँगी या नहीं पर यकीन मानिए, उषा जी ने एकदम सही लिख दिया तो त्रिपुरारि जी ने कहा, वाह मान गया आपको उषा जी आपके चरण छूता हूँ। तो देखिये इनकी हिन्दी कितनी अच्छी है।
विकास जी, आपने अपनी किताब में अलग-अलग विषय लिया है और उसका शीर्षक बहुत ही सुन्दर दिया है। क्या आपने नाम देकर चैप्टर लिखा है या चैप्टर लिख कर नाम दिया है ?
जवाब में हँसते हुए वे पूछते हैं, ये बताइये, माता-पिता बच्चे का नाम उसके जन्म से पहले रखते हैं या बाद में? बाद में ही न? तो मैंने भी शीर्षक बाद में ही रखा था। हमारी किताब का एक विषय है "पतंग उड़ाती लड़की' आप शायद नहीं जानती होंगी की उषा जी पतंग उड़ाने में बहुत माहिर हैं।
आपने किताब का नाम 'उल्लास की नाव' कैसे सोचा?
मैंने उषा जी को दो नाम भेजे थे, "उल्लास की नौका" तथा "उल्लास की नाव" और इन्होंने तुरंत कहा बस "उल्लास की नाव" ही ठीक है और किताब का नाम "उल्लास की नाव" पड़ गया।
विकास जी, इस किताब की विशेषता क्या है ?
जब मैंने किताब लिखने का विचार किया था तो ऊषा जी को पहले ही कह दिया था आप बहुत बड़ी और मशहूर गायिका हैं और ये बात सबको मालूम है। आपके इतने सारे प्रशंसक हैं और लोग यह जानते हैं इसलिए यदि यही मैं भी लिखूँ तो कोई खास बात नहीं होगी। लोगों को कमल में रूचि नहीं होती। उनको जानना होता है कि यह कमल जो खिला है उसके नीचे कितना कीचड़ है। कहने का मतलब यह कि जो कमल खिला है उसका संघर्ष कहाँ से प्रारम्भ हुआ है। मैंने उषा जी से यह भी कहा था कि आम तौर पर जीवनी एक अभिनन्दन ग्रंथ बन जाता है। मैंने कहा था कि मैं ऐसा नहीं कर सकता हूँ। यदि आप इस बात के लिए राजी हैं कि इसमें उस कीचड़ की बात आये और इस कमल के संघर्ष की कहानी आये तो ही मैं इसको लिखूँगा। ऊषा जी बहुत ही ईमानदार हैं, उन्होंने मेरी बात के बारे में सोचा और फिर कुछ दिनों बाद मुझसे कहा कि मैं बहुत परेशान हूँ। तो मुझको लगा क्या मैंने कोई ऐसा प्रश्न पूछ लिया जो मुझको नहीं पूछना चाहिए था, क्या मुझसे कोई गलती हो गयी? तब इन्होंने कहा, नहीं आपसे कोई गलती नहीं हुई है और इसके बाद उषा जी ने ऐसी-ऐसी बातें बताई जो उन्होंने कभी किसी भी साक्षात्कार में नहीं कहा और वे सारी दुर्लभ बातें इस किताब में हैं। उषा जी ने सारी बातें खुल कर मुझको बताया और कहा कि यह अब आप पर है कि अब आप इसको कैसे लिखते हैं।
कुछ खट्टी-मीठी बातों का पिटारा है ये किताब मसलन इनके घर के प्रांगण में एक अमरुद का पेड़ था। उषा जी जब स्कूल से लौटती थीं तो घर से तकिया लाकर, अमरुद की जो वी बनाती हुयी डाल होती है उस पर लेट कर कॉमिक्स पढ़ती थीं। इसमें उषा जी से जुड़े सभी चरित्रों की कथा है और जब उन सब को आप जोड़ेंगे तो उषा जी की जीवनी बन जाएगी। इसमें जानी उथुप, ब्रिग्रेडियर उथुप, सासु माँ हैं, तुलसी अम्मा, हम्बी मामा, मद्रास पातुबा और मामा बलराम नादर इत्यादि सभी लोगों के बारे में लिखा है। मेरे लिए यह सभी लोग उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं जितनी की उषा जी। एक चिन्नी का चरित्र है जो उस समय मालगोट सिगरेट पीती थी और कहानियाँ सुनाती थीं। उषा जी बताती हैं कि वह उनके ननिहाल में आतीं थीं, उषा जी छोटी सी थीं और जब चिन्नी सिगरेट का छल्ला बनाती थीं तो ऐसा लगता था कि कहानी वहीं से निकल रही है और चिन्नी हर बार नयी कहानी सुनाती थी। उषा जी के गाने नौजवानों को बहुत पसंद हैं और उन नौजवानों में मैं भी था और इनके तराने गाते गाते मैंने "उल्लास की नाव" लिख दी।
अभी आपने "पतंग उड़ाती लड़की" के बारे में कुछ कहा था, उसके बारे में कुछ बताइये।
उषा जी पतंग का माँझा बनाने में बहुत उस्ताद हैं। उषा जी के पिता स्वर्गीय बैद्यनाथ सोमेश्वर स्वामी जी पुलिस कमिशनर थे। जिनका बहुत बड़ा बंगला था। दोपहर में जब सभी लोग सोते थे तो उषा जी अपने भाई बहनों के साथ खेलती थीं और घर में से कोल्ड ड्रिंक्स की काँच की बोतल को ला कर पीस कर उसका चूरा बनाती थीं, उसको धागे पर घिसती थीं। "नेवर नो हाउ मच आई लव यू" ये उषा जी का गाना है जिसे उन्होंने मद्रास में गाया था। वह इनका शुरूआती दौर था और उसी को लेकर यह चैप्टर बना।
उषा जी, आप इस बारे में क्या कहना चाहेंगी ?
जी विकास जी सही कह रहे हैं। मेरे जैसा माँझा कोई नहीं बना सकता था। मैं काँच को चूरा बना के उसको मैदे के साथ मिला कर धागे पर घिसती थी। मेरे भाई कहते थे कि एक चरखी भर का माँझा बन गया और बनाओ। मेरे द्वारा बनाये गए माँझे से सारी पतंग कट जाती थी। सोच के देखिये क्या आज की कोई माँ अपने बच्चे को माँझा बनाने देगी?
उषा जी, "मल्लिगई पू मल्लिगई पू" एक चैप्टर है इसके बारे में कुछ बताइये।
"मल्लिगई पू" तमिल शब्द है। मेरा पहला तमिल गाना है पर है वो इंग्लिश में '
उषा जी के साथ सृष्टि झा |
उषा जी, इस किताब का अंग्रेजी में अनुवाद भी हो रहा है क्या आप उसके बारे मैं कुछ बताना चाहेंगी ?
जी हाँ इस किताब का अंग्रेजी में अनुवाद विकास जी की बेटी सृष्टि करने जा रही हैं। जब मैं पहली बार इनकी बिटिया से मिली तो मुझे बहुत अच्छा लगा और उसका नाम भी बहुत अच्छा लगा। आगे की बात सृष्टि आपको बताएंगी-
सृष्टि, इस किताब का अंग्रेजी में अनुवाद करने के लिए किस बात ने आपको प्रेरित किया ?
जब मेरे पापा कोई चैप्टर समाप्त करते थे तो मुझको पढ़ने के लिए देते थे तो यह कहना गलत न होगा कि मैंने इस किताब को सबसे पहले पढ़ा है। मैं उषा जी की कहानी सुनती थी और मुझको इससे लगाव हो गया था। जब मैं पहली बार उषा दीदी से मिली तो ऐसा लगा कि एक दोस्त हैं। हम दोनों में उम्र का बहुत अन्तर है पर यदि आप हमको साथ देखेंगी तो लगेगा की दो सहेलियाँ हैं। जब इस किताब का प्रचार हो रहा था तो उसी समय इस किताब के अंग्रेजी अनुवाद की चर्चा शुरू हो गयी थी। एक दिन मैं अपने कार्यालय से वापस आ रही थी तो मैंने पापा को कॉल किया और कहा कि मैं इस किताब का अनुवाद अंग्रेजी में करना चाहूँगी। मुझे पापा के लिखने के तरीका का पता है तो मुझे लगा कि इस किताब की खुशबू बची रहे और अनुवाद भी हो जाये इसलिए मैंने "उल्लास की नाव" का अनुवाद करने का सोचा। जब मैं इसका अनुवाद कर रही थी तो पढ़ कर अकेले में हँसती थी।
अंग्रेजी की किताब का शीर्षक क्या होगा ?
जी अभी इस बारे में बात चल रही है। कुछ निर्णय नहीं लिया है परन्तु "उल्लास की नाव" के आस पास ही कुछ होगा।
उषा जी, "उल्लास की नाव" पढ़ने के बाद आपको लोगों की क्या प्रतिक्रिया मिली ?
बहुत से लोगों की प्रतिक्रिया मिली। मेरे ज्यादातर लोग अंग्रेजी बोलने वाले हैं पर मेरे ऐसे दोस्त जो हिन्दी जानते हैं उन्होंने यह किताब पढ़ी और बहुत खुश हुए। उन्होंने कहा कि किताब पढ़ कर उनको बहुत कुछ पता चला। उनको यह नहीं मालूम था कि मैं ब्राह्मण परिवार से आयी हूँ। मैं सभी भाषाओँ में गाने गाती हूँ तो उनको पता ही नहीं चलता था कि मैं कहाँ से हूँ। लोगों ने यह भी कहा की किताब का वह हिस्सा जहाँ मेरे ग्रैंडपैरंट्स के बारे में बाते की गयीं हैं उनको बहुत अच्छा लगा। एक व्यक्ति ने लिखा कि वो अपनी दोस्त के साथ मेरा शो देखने आता था। उस समय उनकी शादी नहीं हुई थी पर आज उनके पोते-पोतियाँ है। उन्होंने लिखा कि आपके संगीत के कारण ही हम इतने पास आये थे।
विकास जी, आपकी भाषा शैली बहुत ही प्रवाहवान है। उषा जी की जीवन इतनी सहजता से लिखना कितना आसान था और कितना कठिन?
भाषा के सन्दर्भ में मैं ऐसा मानता हूँ कि यह नदी-नाव संयोग है क्योंकि उषा जी का पूरा व्यक्तित्व बहुत अद्भुत है। मेरा उपन्यास है "मैकलेकसी गंज" उसमें भाषा कल्प कुछ अलग है। कर्नाटक के एक गाँव की कहानी है जिसमें भाषा एकदम विभिन्न है। एक लेखक के रूप में मेरा मानना है कि जो भी विषय होता है, उसके हिसाब से ही भाषा अपने रूप बदलती है।
"उल्लास की नाव- भाग २" लिखने का विचार है क्या ?
मैं तो उषा जी के लिए कहता हूँ जीवेत् वर्षम् शतम्। उषा उथुप जी १०० वर्ष की हों और मैं भी इस दुनिया में रहूँ कि भाग-२ लिख सकूँ:)
बस इसी अनुरोध के साथ बातचीत का सिलसिला यही रुकता है की आप सब पाठक "उल्लास की नाव" में आप एक बार ज़रूर बैठिये और कौन जाने, इसी नाव का एक यात्री, एक और उषा उथुप बनने के गुर सीख जाएँ!
1 comment:
उषा उथुप जी के जीवन के कई पहलुओं पर प्रकाश डालता रोचक साक्षात्कार। हार्दिक बधाई।
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