डरिए नहीं! हम प्लेन हाइजैक करने वाले उत्तर प्रदेश के भोलेनाथ पाण्डे और देवेन्द्र पाण्डे की बात नहीं कह रहे हैं, जिन्होंने कभी 1978 में बच्चों का खिलौना पिस्तौल से पाइलट को डराकर प्लेन हाईजैक किया था। हम साहित्य के हाइजैकियों की बात करना चाहते हैं। ये किसी को डराते नहीं, बस अपनी काक-चेष्टा के बल पर अपने लायक कौर ले उड़ते हैं।
हिमाचल में एक
कार्यक्रम था। मित्रो के कहने से हमें एक पुस्तक का विमोचन कराने का विचार कौंधा।
मित्र को पुस्तकें सौंपी, तो
अचानक एक युवा आ घुसे बीच में। मित्र के हाथ से पुस्तक झपटी ,सबसे आगे खड़े हुए, फोटो खिंचवाई और भीड़ का हिस्सा
हो गए। यह पहला प्रकार है। इसे झपटमार कह
सकते हैं। दूसरा प्रकार है बेहया। इसके दर्शन लाभ आपको हर कार्यक्रम के मंच पर हो
सकते हैं। विश्व पुस्तक मेले में यह बहुतायत से पाया जाता है।
कुछ साल पहले की
बात है-दो पुस्तकों का विमोचन होना था। मुझसे आग्रह किया गया कि विमोचन करने वाला
बाहर के शहर का हो, तो
मज़ा आ जाए. अपनी सहयोग करने की कुटेव के कारण व्यवस्था कर दी। काफ़ी इन्तज़ार के
बाद विमोचनकर्त्ता आए. सबने मोर्चे पर डटे सैनिकों की तरह किताबें सँभालीं। जिनको
तमाशा देखने के लिए बुलाया था, उनको पुस्तकें नहीं दीं।
साहित्यकार महोदय
अपने एक अन्य साथी के साथ पंक्ति के बीचोंबीच अंगद के पाँव की तरह जमकर खड़े हो
गए. विमोचनकर्त्ता भीड़ का हिस्सा बनकर पिछली पंक्ति म्रें गुम हो गए. फोटो खिंचने
लगे, तो एक अति उत्साही मूर्खता के धनी ने कुछ
देर पूर्व विमोचित अपना संग्रह निकाला और कैमरे की आँख के आगे नचा दिया। अधिकतम
खुश!
अब दूसरे लेखक की
पुस्तक का विमोचन होना था। सूचना दी गई. किताबें हथिया ली गईं, लेकिन बार-बार आग्रह करने पर भी बेहया
साथी अपनी जगह से नहीं हिले। विमोचनकर्त्ता कोने में खड़े रहे। विमोचन हो गया।
बेहया बारात के बैण्ड मास्टर की तरह नाच-नाचकर अपनी टीम के
साथ स्टाल के सामने वाली गलियों में घूम-घूमकर विभिन्न कोणों से फोटो खिंचवाने
लगे।
सुबह होते ही नगर
के अखबारों में दीवाना जी का आयोजक के साथ फोटो समाचार-पत्र में छपता है। मुख्य अतिथि, मुख्य वक्ता आदि सब सिरे से गायब हैं। अगर
कोई है, तो सिर्फ़ महान् साहित्यकार
अब्दुल्ला दीवाना जी। फेसबुक का दरवाज़ा खुलता है, तो सिर्फ़ दुर्लभ नस्ल के हमारे साहित्यकार नजऱ आते हैं। अब सारे प्रमाणपत्र और
फोटो समेटकर किसी बड़ी संस्था को भेजे जाएँगे, ताकि कोई
पुरस्कार उल्कापात की तरह इनकी गोदी में आ टपके।
5 comments:
यही होता है अक्सर।
बहुत सुंदर अवलोकन। शानदार व्यंग्य
हिमांशु भाई बहुत ही सटीक व्यंग्य, बधाई।
सार्थक, सही तस्वीर दिखाता बहुत सुंदर व्यंग्य।
साहित्य के हाइजैकियों की परतें उघाड़ता सशक्त व्यंग्य। साहित्य के ये हाइजैकिये हर स्थान पर बहुतायत से पाए जाते हैं।ये बेशर्मी से हर मंच को हथिया लेते हैं,हो सकता है इसे पढ़कर कुछ लोगो की बेशर्मी थोड़ी कम हो।
सधी परिमार्जित भाषा में वर्णित तीनों हाइबन बहुत सुंदर। पढ़ते-पढते मन में उतरते गए। हार्दिक बधाई अनिता जी।
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