निधन-29 अप्रैल- श्रद्धांजलि
मौत तो आनी है तो फिर मौत का क्यूँ डर रखूँ
मौत तो आनी है तो फिर मौत का क्यूँ डर रखूँ
ज़िंदगी आ तेरे क़दमों पर मैं अपना सर रखूँ
जिस में माँ और बाप की सेवा का शुभ संकल्प हो
चाहता हूँ मैं भी काँधे पर वही काँवर रखूँ
हाँ मुझे उड़ना है लेकिन इस का मतलब ये नहीं
अपने सच्चे बाज़ुओं में इस के उस के पर रखूँ
आज कैसे इम्तिहाँ में उस ने डाला है मुझे
हुक्म ये दे कर कि अपना धड़ रखूँ या सर रखूँ
कौन जाने कब बुलावा आए और जाना पड़े
सोचता हूँ हर घड़ी तय्यार अब बिस्तर रखूँ
ऐसा कहना हो गया है मेरी आदत में शुमार
काम वो तो कर लिया है काम ये भी कर रख रखूँ
खेल भी चलता रहे और बात भी होती रहे
तुम सवालों को रखो मैं सामने उत्तर रखूँ
ज़िंदगी यूँ भी जली यूँ भी जली मीलों तक
ज़िंदगी यूँ भी जली यूँ भी जली मीलों तक
चाँदनी चार क़दम धूप चली मीलों तक
प्यार का गाँव अजब गाँव है जिस में अक्सर
ख़त्म होती ही नहीं दुख की गली मीलों तक
प्यार में कैसी थकन कह के ये घर से निकली
कृष्ण की खोज में वृषभानु-लली मीलों तक
घर से निकला तो चली साथ में बिटिया की हँसी
ख़ुशबुएँ देती रही नन्ही कली मीलों तक
माँ के आँचल से जो लिपटी तो घुमड़ कर बरसी
मेरी पलकों में जो इक पीर पली मीलों तक
मैं हुआ चुप तो कोई और उधर बोल उठा
बात ये है कि तिरी बात चली मीलों तक
हम तुम्हारे हैं 'कुँअर' उस ने कहा था इक दिन
मन में घुलती रही मिस्री की डली मीलों तक
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