-अशोक शर्मा
कड़ी धूप में गुलमुहर बेटियाँ हैं,
हमारे सहन का शजर बेटियाँ हैं।
छुपाया हुआ सा हुनर बेटियाँ हैं,
ये रेशम, ये मलमल, टसर बेटियाँ हैं।
खिले फूल से लग रहे खास बेटे,
मगर इस चमन में समर बेटियाँ हैं।
नजाकत, नफासत, हिफाजत कहें
क्या,
समझ सीप में ये गुहर बेटियाँ हैं।
पिता की छड़ी और अम्मा का चश्मा,
समझ लो कि नूरे - नज़र बेटियाँ हैं ।
रहीं शीत
में
गुनगुनी धूप
सी यें,
दिसम्बर में ज्यों दोपहर
बेटियाँ हैं।
घनी रात में एक ढिबरी
सरीखी,
सदा आस की ये सहर बेटियाँ हैं।
अधूरी रहेगी सदा ज़िन्दगी ये,
नहीं जिन्दगी में
अगर बेटियाँ हैं।
'अशोक' इनको समझो खुशी के परिन्दे,
चहकती घरों में अगर बेटियाँ हैं।
सम्पर्कः 'सोहन-स्नेह', कॉलेज रोड, महासमुंद (छत्तीसगढ़) 493445, मो. 9425215981
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