प्रयास
हम रोज जीते हैं हम रोज
मरते हैं
-सुमन परमार
कहते हैं अपने दोस्तों की लिस्ट में एक डॉक्टर और एक वकील जरूर
होना चाहिए। पता नहीं कब कहाँ इनकी सलाह की जरूरत महसूस हो। बीमारियों को लेकर
हमारे मन में तरह-तरह की धारणाएँ हैं। लेकिन जब आप डॉक्टर अबरार मुल्तानी से
मिलेंगे तो इनमें से ज्यादातर धारणाएं बिलकुल उलट-पुलट जाती हैं। उनके अनुसार ‘दर्द हमारे हमदर्द होते हैं।’
अबरार मुल्तानी का
कहना है, “दर्द शरीर का मैसेज
है। अगर हमें दर्द नहीं होगा तो हम जीवित नहीं रह पायेंगे। दर्द बताता है कि देखों
यहाँ परेशानी है इसका इलाज़ करो। पेनकिलर खाकर हम ‘हमारे
हमदर्द' का मुँह बंद कर देते हैं।
ज्यादा दर्द, मतलब परेशानी ज्यादा बड़ी है डॉक्टर के पास जल्दी जाना जरूरी है।“
पेशे से आयुर्वेदिक
एवं यूनानी डॉक्टर अबरार मुल्तानी लेखक भी हैं। ‘5 पिल्स डिप्रेशन स्ट्रेस से मुक्ति के लिए’ एवं ‘क्यों अलग है
स्त्री-पुरूष का प्रेम’राजकमल
प्रकाशन से प्रकाशित इनकी चर्चित किताबों में शामिल है।
भारत में 1 जुलाई
नेशनल डॉक्टर्स डे के रूप में मनाया जाता है। इसी अवसर पर राजकमल प्रकाशन समूह
द्वारा #CelebrateDoctorsDayWithRajkamal कार्यक्रम
के अंतर्गत लेखक-डाक्टर से मुलाक़ात एवं स्वास्थ चर्चोओं का सिलसिला शुरू किया गया
है। फेसबुक लाइव के जरिए डॉ.अबरार मुल्तानी, डॉ.यतीश अग्रवाल और डॉ.विनय कुमार
समूह के फेसबुक पेज से लाइव आकर अपने अनुभव एवं अच्छे स्वास्थ के लिए महत्वपूर्ण
बातें लोगों से साझा कर रहे हैं।
हमें क्यों स्वस्थ
रहना चाहिए
वैज्ञानिक अर्थ में
हमारे अंदर बहुत सारे अणु रोज़ नष्ट होते हैं और रोज नए अणु बनते भी हैं। यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जो
शरीर के भीतर चलती रहती है। इसलिए डॉक्टर कहते हैं कि शरीर के भीतर नए बनने वाले
अणु जितने स्वस्थ होंगे उतना ही युवा हमारा शरीर होगा।
राजकमल प्रकाशन
समूह के फेसबुक पेज से लाइव बातचीत में अबरार मुल्तानी ने कहा, “बीमारियां हमारी शत्रु नहीं हैं और हर रोग
दवाओं से ठीक नहीं किया जा सकता। ये दो बातें ऐसी हैं जो बीमारी के प्रति हमारी
धारणा को उलट कर रख देती है। लेकिन, जरूरी है कि शरीर की भाषा को, उसकी जरूरतों को
समझना। हमारे भीतर जो विचार पनपते हैं वो हमारे स्वास्य्थ पर सीधा असर करते हैं।
निगेटिव सोच शरीर पर प्रतिकूल असर पैदा करते हैं।“
कोविड 19 के इस समय
में हमारे डॉक्टर्स एवं स्वास्थ कर्मी लगातार डटकर मुक़ाबला कर रहे हैं। वो हर
संभव कोशिश कर रहे हैं हम स्वस्थ एवं सुरक्षित रहें। उनके इस प्रयास में हमारी
सरकार एवं हम सभी शामिल हैं। लेकिन, असल सम्मान तभी
संभव है जब हम उनकी बातों को सुनें और उसे अमल में लाएं।
हमारा शरीर अलग-अलग
तरह से हमसे संवाद करता है। खाँसी, बुखार, शरीर दर्द और अन्य लक्ष्ण दरअसल शरीर की
अपनी भाषा है जिसके जरिए वो हमसे संवाद करना चाहता है। जरूरी है कि हम इसे सुनें
और समझें।
लॉकडाउन के दौरान
और अनलॉक की प्रक्रिया में भी राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा कई महत्वपूर्ण प्रयास
किए जा रहे हैं। हर एक पाठक से संवाद बनाए रखने की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण पहल
'पाठपुनःपाठ' पुस्तिका
67 दिनों से दैनिक वितरित की जा रही थी। 1 जुलाई से इसके साप्ताहिक अंक वाट्सएप्प
के जरिए साझा किए जा रहे हैं। इन 67 अंकों में कई विशेष और विषय-केंद्रित अंक भी
निकाले गए। नई रचनाओं के दो विशेष अंक रचना-चयन की ताजगी के
कारण पाठकों द्वारा बहुत पसंद किए गए।
राजकमल प्रकाशन समूह, फोन - 9540851294
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