मेरा
गाँव
-देवमणि
पाण्डेय
काग़ज़ों में है सलामत अब भी नक़्शा गाँव का
पर नज़र आता नहीं पीपल पुराना गांव का
बूढ़ीं आँखें मुंतज़िर हैं पर वो आख़िर क्या
करें
नौजवाँ तो भूल ही बैठे हैं रस्ता गाँव का
पहले कितने ही परिंदे आते थे परदेस से
अब नहीं भाता किसी को आशियाना गाँव का
छोड़ आए थे जो बचपन फिर नज़र आया नहीं
हमने यारो छान मारा चप्पा-चप्पा गाँव का
हो गईं वीरान गलियाँ, खो गई सब
रौनक़ें
तीरगी में खो गया सारा उजाला गाँव का
वक़्त ने क्या दिन दिखाए चंद पैसों के लिए
बन गया मज़दूर इक छोटा-सा बच्चा गाँव का
सुख में, दुख में, धूप में जो सर पे आता था नज़र
गुम हुआ जाने कहां वो लाल गमछा गाँव का
हर तरफ़ फैली हुई है बेकसी की तेज़ धूप
सब के सर से उठ गया है जैसे साया गाँव का
जो गए परदेस उसको छोड़कर दालान में
राह उनकी देखता है अब बिछौना गाँव का
शाम को चौपाल में क्या गूंजते थे क़हक़हे
सिर्फ़ यादों में बचा है वो फ़साना गाँव का
हाल इक-दूजे का कोई पूछने वाला नहीं
क्या पता अगले बरस क्या हाल होगा गाँव का
सोच में डूबे हुए हैं न के बूढ़े दरख़्त
वाक़ई क्या लुट गया है कुल असासा गाँव का
सम्पर्कः B-103, Divya
Stuti, Kanya Pada, Gokuldham, Near Maharaja Tower, Film City Road, Goregaon
East, Mumbai-400063
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