1.
इंतज़ार
- डॉ. सुषमा गुप्ता
यूँ तो इंतजार
एक छोटा-सा शब्द है
और याद
उससे भी छोटा
पर कभी कर के देखिएगा।
एक एक पल की गहराई
समंदर-सी हो जाती है।
हर एक आती-जाती
साँस पर्वत-सा थकाती है ।
और घड़ी की बढ़ती
सुइयों के साथ ......
नब्ज़ डूबती-सी जाती है।
जी हाँ ।
कभी करके देखिएगा।
ये वह बला है ...
जितना झटकोगे
उतना चिमटती जाती है।
चित भी अपनी ...
पट भी अपनी
विक्रमादित्य के वेताल-सी
सर पर चढ़ जाती है।
बस फिर और रस्ता
दिखाई नहीं देता ...
और आप की हालत
उस राही-सी
हो जाती है ।
जो बैठा तो है ठंडी
छाँव में प्यार की ।
घने बरगद के नीचे ...
पर दिल की आग
कतरा-कतरा कर
झुलसाती है
जलाती है
और लील ही जाती है।
2.
तेरे हिस्से, मेरे हिस्से
मैं रख लेती हूँ
तुम्हारी यादों से
कुछ माँगे हुए किस्से
हिसाब फिर कभी कर लेंगें
इस रिश्ते में क्या आया
तेरे हिस्से
मेरे हिस्से ।
मैंने नाराजगी रख ली
तुम भी इल्जाम
कुछ रख लो
मुकम्मल हो गया रिश्ता
मगर इक साथ न आया
तेरे हिस्से
मेरे हिस्से ...
वो लम्हों की थी
जागीरें जो मिल-जुलकर
बनाई थी
हड़प गई ज़िन्दगी ऐसे
बचा कुछ भी न बाकी अब
तेरे हिस्से
मेरे हिस्से ।
टूटा तो ज़रूर है
कुछ मेरा वजूद
कुछ तेरा गुरूर भी
हिसाब फिर कभी कर लेंगें
किस के हुए ज्यादा
तेरे हिस्से या......
मेरे हिस्से ।
लेखक के बारे में - जन्म: 21 जुलाई 1976, दिल्ली, शिक्षा: एम कॉम
(दिल्ली यूनिवर्सिटी) , एम बी ए (आई एम टी
गाजियाबाद) , एल-एल बी, पी-एच. डी., कार्य-अनुभव: कानून एवं मानव संस्थान की व्याख्याता-2007-2014
(आई एम टी गाजियाबाद), सम्मान: हिन्दी सागर सम्मान–2017, प्रकाशन: समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में कुछ रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं।,
प्रकाश्य-साझा संग्रह (जे एम डी प्रकाशन) *नारी काव्य सागर,*भारत
के श्रेष्ठ युवा रचनाकार, ई मेल: suumi@rediffmail. com
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