1. माँ
दीप सी जलती रही
-सपना मांगलिक
चूल्हा
चौका पति और बच्चे
दिन
रात ही वो खटती रही
हम
मनाते रहे दीवाली
माँ
दीप -सी जलती रही
रही
बिखेरती ममता का आलोक
भूल
सारे अपने दर्द और शोक
ढांप
आँचल से नन्हीं सी लौ वो
तिमिर
हालात के हरती रही
हम
मनाते रहे दीवाली
माँ
दीप- सी जलती रही
गठजोड़
औलादों का करके
खुद
टूटकर माँ घटती रही
कलह
द्वन्द करते रहे हम
वो
वस्त्र शांति के सिलती रही
हम
मनाते रहे दीवाली
माँ
दीप सी जलती रही
बँट गई
साथ वो घर के
उन
औलादों की रहमत से
मांझे
ने ही दिया छोड़ साथ
बन कटी
पतंग वो गिरती रही
हम
मनाते रहे दीवाली
माँ
दीप- सी जलती रही
बोली न
शब्द कटु फिर भी
मोती
नैन सीप धरती रही
कौन आस
बची उर उसके?
भावों
से भाव गुँथती रही
हम मनाते
रहे दीवाली
माँ
दीप सी जलती रही
2. आजा
चल दीवाली मना ले
हुआ जो
अस्त कामनाओं का सूरज
दीप
जूनून के फिर जला ले
काली
रात से खौफ न खा तू
आजा चल
दीवाली मना ले
आस
विश्वास मूरत लक्ष्मी गणेश की
शीश
इनके आगे तू झुका ले
रख
वाग्देवी को मस्तिष्क में
खील खुशियों
के अब बिखराले
आजा चल
दीवाली मना ले
जोड़
मेहनतों के तिनके तू
ऊँची
लक्ष्य हटरी बना ले
भर
हसरतों के चंडोल दिल में
हृदय
का दीवट यूँ सजा ले
आजा चल
दीवाली मना ले
कर
आह्वान प्रेम लक्ष्मी का
स्नेह
आतिश जी भर छुड़ा ले
दूर कर
तम वैर भाव का
भाई
दूजों को गले लगा ले
आजा चल
दीवाली मना ले
सम्पर्कः
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