मुकद्दमा
-डॉ. कविता भट्ट
अरे साहेब! एक
मुकद्दमा तो
उस शहर पर भी बनता है
जो हत्यारा है- सरसों
में
प्रेमी आँख-मिचौलियों का
और उस उस मोबाइल को
भी
घेरना है कटघरे में
जो लुटेरा है– सरसों सी
लिपटती
हंसी-ठिठोलियों का
हाँ- उस एयर कंडीशन
की भी
रिपोर्ट लिखवानी है
जो अपहरणकर्ता है-
गीत गाती
पनिहारन सहेलियों का
और उस मोबाइल को भी
सीखचों में धकेलना है
जो डकैत है-
फुसफुसाते होंठों-
चुम्बन-अठखेलियों
का
उस विकास को भी थाने
में
कुछ घंटे तो बिठाना है
जिसने गला घोंटा; बासंती
गेहूँ-जौ-सरसों की
बालियों का
लेकिन इनका वकील खुद
ही
रिश्वत ले बैठा है
फीस इनसे लेता है;
और पैरोकार है शहर की
गलियों का
ओ साहेब! आपकी अदालत
में
पेशी है इन सबकी
कुछ तो हिसाब दो
उन मारी गयी मीठी मटर
की फलियों का
सम्पर्क: हे.न.ब. गढ़वाल केन्द्रीय
विश्वविद्यालय,
श्रीनगर
(गढ़वाल) उत्तराखण्ड।
email- mrs.kavitabhatt@gmail.com
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