कैसे हो रहा है जल
प्रदूषण
-राजेश कुमार काम्बोज
आज
के इस दौर में जल प्रदूषण हमारे लिए एक विकट समस्या के रूप में सामने आ रहा है।
इस समस्या का यदि समय रहते समाधान नहीं किया गया तो आने वाली पीढ़ी को इसकी कीमत
चुकानी पड़ेगी। हम जिस पानी का सेवन कर रहे हैं उसी पानी पर हमारे जीव-जन्तु भी
निर्भर करते हैं । बढ़ रहे कारखाने एवम् गलत तरीके से पानी का इस्तेमाल पानी के
प्रदूषण का कारण है। आज विभिन्न प्रकार के कारखानों से आ रहा गन्दा
पानी अनेक प्रकार के रसायनों से दूषित हो रहा है उदाहरण के तौर पर लें तो जो पानी
पेपर मिल से निकलता है उसमें अधिक मात्रा में सल्फर पाया जाता है कुछ अन्य रसायन
जैसे लिगनिंन, हमी सेल्यूलोस, सोडियम
हाइड्रोक्साइड तथा वो सभी रसायन जो पेड़ों में पाए जाते हैं। इन रसायनों के मिल
जाने के कारण जो दूषित पानी इन कारखानों से बहार आता है। उसका बायो कैमिकल ऑक्सीजन
डिमांड तथा कैमिकल डिमांड मात्रा बहुत
ज्यादा बढ़ जाता है और यह पानी जिस भी पानी के स्रोत में मिल जाता है उस पानी को
भी जहरीला कर देता है। यह पानी आज के दौर में हमारे लिए चुनौती बना हुआ है।
इसकी वजह से हमारे पानी के स्रोतों का टी. डी.
अस. (total dissolved solids) भी बहुत मात्रा में बढ़ा हुआ है जो कि मनुष्य को अनेक प्रकार के
कैंसर जैसे भयानक रोग प्रदान कर रहा है। भारत में इस तरह के बहुत सारे क्षेत्र
पाये जाने लगे है जहाँ का पानी पीने से लोगों में कैंसर पाया जा रहा है उदाहरण के तौर पर देखा जाये तो पंजाब के बरनाला
एवम् बठिंडा के आस पास के क्षेत्रो में पानी का स्तर इसी प्रकार का पाया गया है।
इन सब समस्याओं से निपटने के लिए आज हमें बहुत सतर्क रहने की आवश्यकता है और उन
सभी कारखानों पर हमें और हमारी सरकार को दृष्टि रखनी होगी जो अपने दूषित पानी को
सीधे ही हमारे जल स्रोतों में मिला रहे हैं।
हमारा इस समस्या से आज का समाधान ही हमारी आने वाली पीढिय़ों के लिए इस
अमूल्य पेय जल को बचा पाएगा। जो ठोस कचरा पेपर मिल से निकलता है अगर हम उसे ऐसे ही
धरती के तल पर फैला देंगे तो जब हमारा बरसात का पानी या अन्य स्रोतों से निकला पानी इसके संपर्क में आएगा तो उसमें भी वो सभी
बीमारियों के कीटाणु एवम् रसायन मिल जाएँगे, जो इस प्रकार के
कारखानों में इस्तेमाल होते हैं।
यही मिश्रित रसायन पानी के
पी. एच. की मात्रा को भी बढ़ा देते है यदि अम्लीय रसायन पानी में मिल जाये तो पानी की
पी. एच. कम हो जाती है और यदि क्षारकीय रसायन पानी में मिल जाये तो पानी की पी.
एच. को बढ़ा देते हैं। जो हमारे लिए बहुत
घातक है क्योंकि अगर हम बात करे (WHO)यानी वर्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन की तो जो
मापदंड इसके अनुसार हमारे पीने के पानी के होने चाहिये वह होते हैं साढ़े छ: से साढ़े आठ पी. एच. यानि जो पानी हम पीते हैं वह या तो न्यूट्रल होना चाहिए या फिर
हल्का सा क्षारीय। हमारे लिए यह बहुत जरुरी हो जाता है कि हमारे
पानी का यह गुण उसमें होना चाहिए । इसे हम तभी बचा पायेगे यदि हम समय रहते इस पर
ध्यान दें।
अब अगर हम बात करे टी. डी.
एस. की यानि टोटल डिसोल्वड सोलिड्स की तो जो पानी हमारी जमीन के अंदर से हमें प्राप्त होता है उसके अंदर यह
मात्रा बहुत ज्यादा पाई जाती है बहुत से पानी के नमूनों का परीक्षण करके हमें पता
चला है कि जो पानी हमारी धरती के अन्दर से हमें प्राप्त हो रहा है उसका टी.डी.एस. 700 पी.पी.एम.से 900 पी.पी.एम. (Parts per million) के बीच आता है जो कि निर्धारित मात्रा से बहुत
अधिक है क्योंकि पीने के लिए जो पानी सही है उसका पी.पी.एम. 50 से 150 के बीच होना चाहिए। अत: यह पानी भी पीने के
काबिल नहीं बचा है इससे अनेक प्रकार की बीमारियाँ जैसे कुपोषण एवम् पेट से
सम्बंधित बीमारियाँ यहाँ तक कि कैंसर जैसे रोग भी इस तरह के पानी के सेवन से हो
रहे हैं । यह हमारे लिए एक विकट समस्या बनता जा रहा है अगर ऐसे ही हमारे कारखानों
का पानी, धरातल के पानी से मिलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब
हम बड़ी-बड़ी बीमारियों से ग्रसित हो जाएँगें
और हमारी आने वाली पीढिय़ाँ इस धरती पर जीवनयापन नहीं कर पाएगी।
अत: इन सब समस्याओं की
रोकथाम करने के लिए हमारा जागरूक होना बहुत जरुरी है और यह हमारे पर्यावरण बुद्धिजीवियों का पहला दायित्व बनता है कि वह
उन सब कारखानों पर अपनी पैनी नजर रखें जो
सही से पर्यावरण नियमों का ध्यान नहीं रखते।
(अधिस्नातक पर्यावरण विज्ञानं एवम् अभियांत्रिकी)
(M.Tech. in Environment Science and Engineering) Department of chemical Engineering SLIET Longowal, Distt. Sangrur Punjab-148106. M.No. 9779773491 mail id. Rkamboj21@gmail.com
2 comments:
बहुत अच्छा आलेख, बधाई।
बहुत अच्छा आलेख, बधाई।
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