- शशि पुरवार
होठों पर मुस्कान सजाकर
हमने, ग़म की पी है हाला
ख्वाबों की बदली परिभाषा
जब अपनों को लड़ते देखा
लड़की होने का ग़म, उनकी
आँखों में है पलते देखा
छोटे भ्राता के आने पर
फिर ममता का छलका प्याला
रातो-रात बना है छोटा
सबकी आँखों का तारा
झोली भर-भर मिली दुआएँ
भूल गया घर हमको सारा
छोटे के लालन - पालन में
रंग भरे सपनो की माला
बेटे - बेटी के अंतर को
कई बार है हमने देखा
बिन माँगे, बेटा सब पाए
बेटी माँगे तब है लेखा
आशाओ का गला घोटकर
अधरो, लगा लिया है ताला
होठों पर मुस्कान सजाकर
हमने, ग़म की पी है हाला
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1 comment:
होठों पर मुस्कान सजाकर
हमने, ग़म की पी है हाला ।
बहुत सुन्दर गीत शशि जी । बधाई। आपके तकरीबन fbपर पोस्ट होने वाले सभी गीत पढ़ती हूँ । बहुत मीठे होते हैं गीत ।
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