- रीता
गुप्ता
एक घंटे पहले ही उसे पता
चला कि पिताजी की तबियत अचानक बहुत $खराब हो गई है। संयोग से तुरंत ही ट्रेन थी सो भागा-भागा
रेलवे स्टेशन आ गया और जनरल बोगी का एक टिकट किसी तरह कटा ट्रेन में चढ़ गया। बोगी
में घुसते उसने एक सूकून भरी साँस ली कि अब वह कम से कम पिताजी के पास पहुँच
जाएगा। बोगी पहले से ही खचाखच भरी हुई थी। हमेशा एसी कोच से स$फर करने वाले को आज मजबूरी में यूँ भेड़-बकरियों के जैसे
ठुँसकर जाना पड़ रहा था। उसने चारों तरफ का मुआयना किया। ऊपर नीचे साइड के सभी
बर्थ पर लोग एक दुसरे पर मानों चढ़े बैठे हुए थे। कोई आधा घंटा एक पैर पर खड़े
रहने के बाद उसने बर्थ पर बैठे एक लडक़े को चाशनी घुले शब्दों में कहा- बेटा मैं
अर्थराइटिस का मरीका हूँ । क्या मुझे थोड़ी देर बैठने दोगे?
उसने दो-तीन बार दुहराया पर
उसने मानों सुना ही नहीं। फिर उसने सामने बर्थ पर बैठे व्यक्ति को भी कहा, साइड वाले चारों लडक़ों को भी कहा। सर उठा उसने आस भरी
निगाहों से ऊपर बर्थ पर पसरे भाई साहब को भी देखा, जो नकार मिलते ही मानों नींद में झूलने लगे। उस से सटे खड़े
व्यक्ति की दुर्गन्ध बर्दाश्त की सीमा पर कर चुकी थी। टाँगे सच में अब दुखने लगी
थी। भीड़ में फँसा खुद को कितना बेबस और लाचार महसूस कर रहा था कि तभी शायद कोई
स्टेशन आया। ऊपर बर्थ वाले भाई साहब की तन्द्रा टूटी और वो उचक कर नीचे कूद पड़े।
इससे पहले कि कोई कुछ सोचता, वह
ऊपर विराजमान हो चुका था। थोड़ा टाँगे फैला उसने अँगडाई ली कि देखा भीड़ का चेहरा
तब तक बदल चुका है और कुछ देर पहले तक जहाँ वह खड़ा था, वहाँ एक गर्भवती महिला खड़ी वैसी ही नकारों से मुआयना कर
रही है, जिन
नकारों से वह कुछ पल पहले कर रहा था। इससे पहले की उस महिला की आस भरी निगाहों का
स$फर उस तक पहुँचे उसने अपनी
आँखें बंद कर लीं।
2- प्रलाप
बुरी तरह से कुचली उद्धव की
मोटर साइकिल को ठीक उसी तरह से कुचले उसके क्षत-विक्षत शरीर के साथ घर के बरामदे
में ला कर रखने की देर थी कि भीड़ जुटने लगी।
-हाय! हेलमेट पहने हुए
रहता तो ये हालत नहीं होती-, एक
पड़ोसी ने कहा।
अब रमोला का क्या होगा, बेचारी इतनी कम उम्र में विधवा हो गई, एक पड़ोसन ने विलाप किया।
कुछ कमाए या नहीं पर पति के
होने से जो सहारा रहता है ,वह आज छूट
गया। कम से कम रक्षक तो था ही, दूसरी
पड़ोसन ने आर्तनाद किया।
रमोला बुत बनी देख सुन रही थी। अभी कुछ देर
पहले ही, जब वह
दफ्त्तर जाने के लिए तैयार हो रही थी, हर दिन की ही तरह
उद्धव ने उसे बेल्ट से मारा। उसकी
कलाई मरोडक़र सारी चूडिय़ों को तोड़ दिया।
उसकी मुट्ठी से
बिजली के बिल भरने के लिए बचाए रुपयों को छीन कर निकला था। दारू पीकर वापस आता तो
फिर
हूँ! रक्षक या राक्षस। आज
बच गई उसकी मार से, रमोला ने मन में सोचा और पीठ पर पड़ी नील को पल्लू से ढक
लिया।
बेचारी सारी जिन्दगी कैसे
जिएगी, देखो
पत्थर हो गई है मानों, किसी ने अ$फसोस जाहिर करते हुए कहा।
तो अचानक रमोला को एहसास
हुआ, उद्धव का
हमेशा के लिए चले जाने का। कितनी सुहानी
होगी वह भोर जब वह नहीं होगा और दिल ही दिल वह झूम उठी उस सवेरे के इन्तज़ार में।
3- समर्पण
कुशल का चयन सरकारी नौकरी
के लिए हुआ। आदर्शों और ईमानदारी के शस्त्र से लैस जब उसने अपना कार्य भार सँभाला
तो वहाँ व्याप्त भ्रष्टाचार को देख उसे वितृष्णा होने लगी। एक से एक घाघ बाबू और
अफसरों से सुसज्जित उस रणक्षेत्र में अकेला कुशल अभिमन्यु -सा मानों जूझने लगा। हर
दिन पचासों गलत पेपर उसके सामने आतें। जिस काम की कोई ज़रूरत नहीं, उसके
टेंडर निकालने का हुक्म आता। सौ रुपये के सामान का हज़ार के बिल पर हस्ताक्षर करने का दबाव आता। अर्जुन पुत्र -सा
कुशल हर वार से बचता-बचाता रहता खुद को।
एक दिन उसके एक वरिष्ठ अफसर ने उसे अपने केबिन
में बुला, खूब
शाबाशी दी। पीठ ठोकते उन्होंने कहा-
कुशल तुम्हे देखता हूँ तो
मुझे अपने दिन याद आ जातें हैं । मैं भी बिलकुल तुम्हारी ही तरह आदर्शवादी था।
देखो! तुम कभी बदलना मत, तुम जैसे
नौजवान ही इस देश का भविष्य बनाएँगे
कुशल की ख़ुशी का ठिकाना
नहीं था, धन्यवाद
बोलकर वह मुड़ा, तो बॉस ने
कहा- देखो ये कागज़ ऊपर से आया
है, मंत्री जी के भतीजे का बिल
है।
पर सर ये काम तो हुआ भी
नहीं है, फिर-
अब देखो इनका काम नहीं होगा
, तो हम सब पर गाज गिर जाएगी, ऐसा करो तुम बस इसे निकाल दो, फिर तुम्हें तुम्हारे अंतर्मन के खिलाफ नहीं जाने कहूँगा।
चक्रव्यूह से निकलने के
मार्ग अब अवरुद्ध हो चुके थे। उस पहली गलत हस्ताक्षर से फँसने से बचने हेतु कुशल
बार- बार कीचड़ की दल दल में उतरता गया। पहले दबाव से, फिर डर से बाद में समर्पित भाव से। अभिमन्यु ने दुर्योधन से हाथ मिला
लिया था।
सम्पर्क: द्वारा श्री बी के
गुप्ता, फ़्लैट नं
5, मन्जूषा बील्डिंग, नीयर इन्डियन स्कूल, एस ई सी एल रोड, ChoteAtarmuda, रायगढ़
छत्तीसगढ़-496001, Phone no 9575464852
1 comment:
Waah very nice stories
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