लौटे
परिंदे
- डॉ.
राजीव गोयल
1
रवि
जुलाहा
किरणों
के धागे से
बुने
उजाला ।
2
भोर ने
धोई
रजनी की
कालस
फैला
उजास ।
3
सूखा है
कुआँ
पनघट
उदास
है जेठ
मास ।
4
लगते
अच्छे
कड़कती
धूप में
छाँव के
धब्बे ।
5
करे
आराम
चितकबरी
धूप
पेड़ों
के नीचे।
6
ढला जो
दिन
धरती
छोड़ उड़ी
धूप की
चिडी ।
7
जल
-समाधि
ले रहा
सागर में
थका
सूरज ।
8
लौटे
परिंदे
दरख्तों
की शाखाएँ
खुशी से
झूमीं ।
9
बेचता
तारे
चंद्रमा
नभ पर
बिछा के
रात।
10
व्योम
की शय्या
ओढ़कर
बादल
सूरज
सोया ।
11
वर्षा
की झड़ी
सजा गई
पेड़ों पे
बूँदों
की लड़ी।
12
आई बरखा
मेघों
की पालकी में
हवा
कहार ।
13
भर मशक
करता
छिड़काव
भिश्ती
बादल ।
14
नभ
-अखाड़ा
भीमकाय
बादल
लड़ें
दंगल ।
15
ठिठुरे
वृक्ष
चुरा ले
गया पात
पौष का
मास।
16
मौसम
धुनें
बैठ
पहाड़ पर
हिम की
रूई ।
17
कोहरा
आया
सुबह से
सूरज
बंदी
बनाया।
18
डाली से
दूर
बन
तितली उड़ें
पीली
पत्तियाँ।
19
धनी था
पेड़
पतझड़ ने
लूटा
किया
कंगाल ।
20
बातूनी
पेड़
गिरते
ही पत्तियाँ
चुप हो
गया।
21
बसंत
काढ़े
धरा की
चुनरी पे
फूलों
के बूटे।
22
पीली
कमीज़
पहने
हरी पैंट
सरसों-
खेत ।
23
पी -पी
के आग
हो गया
सुर्ख लाल
यह पलाश
।
24
उड़े
अंगार
जली सब
पत्तियाँ
पलाश
-वन ।
25
चुरा के
भागी
बगिया
से सुगंध
चोरनी
हवा ।
26
फँस चीड़
में
करे
चीख-पुकार
उत्पाती
हवा ।
27
फल न
सही
बूढ़ा आम
का पेड़
छाँव तो
देगा ।
28
रिश्ते
रेशम
गाँठ
अगर पड़े
फिर न
खुले ।
सम्पर्क-
C- 36 यमुना विहार ,दिल्ली-110053,
email : rajiv.goel55@gmail.com
1 comment:
बहुत सुंदर भावपूर्ण हाइकु !
Post a Comment