जंगल के उपकार
मिट्टी,
पानी
और
बयार
पर्वतीय स्थानों जैसे उत्तराखंड, हिमाचल पर सदाबहार वन और वर्षा वन भी मिलते हैं। वन सदियों से हमारे जीवन का आधार रहे हैं। इनसे हमें भोजन, इमारती लकड़ी, ईंधन और दवाइयां मिलती हैं। हमारा पूरा हर्बल चिकित्सा तंत्र वनों से प्राप्त होने वाली विभिन्न जड़ी- बूटियों पर ही टिका है। जंगल वन्य जीवों के प्राकृतवास हैं। जंगल है तो जंगल का राजा शेर है। शेर, बाघ आदि का पाया जाना एक अच्छे जंगल की निशानी है। जंगल जहरीले प्रदूषकों को सोखते हैं और हमें स्वच्छ वायु प्रदान करते हैं। ये पृथ्वी की जलवायु को नियंत्रित रखते है, वैश्विक तपन को कम करते हैं। जंगल बारिश के पानी को रोककर नदियों को बारहमासी बनाते हैं, भूमि के क्षरण को रोककर बाढ़ की आपदा घटाते हैं। ये दुनिया की 25 प्रतिशत औषधियों को सक्रिय तत्व उपलब्ध कराते हैं। परंतु खेद की बात है कि इतना उपकार करने वाले वन दिनों दिन सिकुड़ते जा रहे हैं। मुख्य कारण है बढ़ती जनसंख्या, उपभोक्तावाद और शहरीकरण।
वर्ष 1900 में विश्व में कुल वन क्षेत्र 700 करोड़ हैक्टर था जो 1975 तक घटकर केवल 289 करोड़ हैक्टर रह गया। 2000 में यह 230 करोड़ हैक्टर था। वनों के घटने की यह रफ्तार पर्यावरणविदों के लिए चिंता का विषय है। इन्हीं कारणों से चिपको एवं आपिको आंदोलनों की शुरुआत हुई थी। इस संदर्भ में जोधपुर की अमृता देवी का बलिदान नहीं भुलाया जा सकता जिन्होंने खेजड़ी वृक्षों को बचाया था। वनों के घटने से वर्षा कम होती है, वर्षा का पैटर्न बदल जाता है, उपजाऊ मिट्टी कम हो जाती है, भूक्षरण बढ़ता है,
पहाड़ी स्थानों पर भूस्खलन की घटनाएं बढ़ती है, भूमिगत जल का स्तर नीचे चला जाता है और जैव विविधता में कमी आती है।
पूरा विश्व इस चिंता से अवगत है। अत: पूरी दुनिया में पिछले 40 वर्षों से 21 मार्च को विश्व वानिकी दिवस मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य जनता को वनों के महत्व से अवगत कराना है। यह विचार युरोपियन कान्फेडरेशन ऑफ एग्रीकल्चर की 23 वीं आम सभा (1971) में आया था। तभी से इसे पूरी दुनिया में मनाया जा रहा है।
आइए इस पर विचार करें कि विश्व वानिकी दिवस के उपलक्ष्य में आम जन क्या कर सकते हैं- वनों को बचाने के खातिर इन बातों पर आज से ही अमल करना शुरू कर दें। अपने आस-पास फूलों वाले पेड़-पौधे लगाएं। इससे आपका पर्यावरण सुंदर लगेगा और साफ भी रहेगा। नीम, पीपल, बरगद, अमलतास जैसे पेड़ लगाएं। ये आपके घर के आस- पास ठंडक बनाए रखेंगे। इससे आप कम बिजली खर्च करेंगे। गर्मियों में आस- पास लगे पेड़ पौधों को पानी देकर बचाने का प्रयास करें। कागज के दोनों ओर लिखें। इससे आप 50 प्रतिशत कागज बचा सकते है। कागज बचाएंगे तो वन बचेगा। रीसायकल्ड कागज से बने बधाई कार्ड, लिफाफों आदि का प्रयोग करें। लिफाफों को बार-बार उपयोग करें। स्कूल कॉलेज में इस दिन जंगलों के बारे में अधिक जानने के लिए विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं। अपने आसपास के जंगल में घूमने जाएं। उनके ताने-बाने को समझें, पेड़- पौधों एवं जंतुओं के नाम पता करें। उनके उपयोग के बारे में आदिवासियों या अन्य जानकारों से पता करें। संरक्षण की पहली शर्त है जीवों से जान-पहचान। विश्व वानिकी दिवस पर यह प्रण लेें कि लकड़ी से बने फर्नीचर नहीं खरीदेंगे। आजकल स्टील एवं प्लास्टिक के चौखट मिलते हैं इनके उपयोग को बढ़ावा दें, इससे जंगलों पर दबाव कम होगा। विश्व वानिकी दिवस 21 मार्च के दूसरे ही दिन 22 मार्च को विश्वजल दिवस भी मनाया जाता है। पीने के पानी की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। इस वर्ष देश के कई हिस्सों में पानी बहुत कम गिरा है जिससे पानी की भयावह समस्या पैदा हो गई है। पानी को लेकर लड़ाई झगड़ा आम हो चला है। इस समस्या से निपटने के लिए पानी के स्रोतों को बचाकर और उपलब्ध पानी का उचित प्रबंधन ही एकमात्र उपाय है। इस मामले में भी आप काफी कुछ कर सकते हैं। जैसे स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल, में पानी बचाने का अभियान चलाएं, सफाई का काम पानी से नहीं झाड़ू से करें, नहाते एवं ब्रश करते समय नल को खुला ना छोड़ें, मोटे तौलिए की बजाय पतले तौलिए का उपयोग करें, अपने वाहन फव्वारे की बजाय गीले कपड़े से साफ करें, किचन का पानी, दाल-सब्जी धोने से निकला पानी, बर्तन धोने का पानी अपने बगीचे में पेड़-पौधों को दें। इससे आपके पौधे गर्मियों में भी बचे रहेंगे और साफ पानी की बचत भी होगी। इसके अलावा अपने घरों में वर्षा जल संग्रहण तकनीक को अपनाएं। इससे भूमिगत जल स्तर बढ़ता है। अपने आसपास के कुएं, बावडि़यों, तालाबों को गंदा ना करें। मुसीबत में ये परंपरागत जल स्रोत ही काम आते हैं, इनकी उपेक्षा न करें। याद रखें जल है तो कल है और वन है तो जल है। दोनों एक-दूसरे से जुड़े हैं, जीवन का आधार हैं । एक बार फिर जंगल के उपकारों को याद करके वन रक्षा का संकल्प करें। (स्रोत फीचर्स)
मिट्टी,
पानी
और
बयार
कागज बचाएंगे तो वन बचेगा। लिफाफों को बार-बार उपयोग करें। स्कूल कॉलेज में इस दिन जंगलों के बारे में अधिक जानने के लिए विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं। अपने आसपास के जंगल में घूमने जाएं। उनके ताने-बाने को समझें, पेड़- पौधों एवं जंतुओं के नाम पता करें। उनके उपयोग के बारे में आदिवासियों या अन्य जानकारों से पता करें। संरक्षण की पहली शर्त है जीवों से जान-पहचान।
हमारे पास उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों में हवा और पानी के बाद सबसे महत्वपूर्ण स्थान जंगल का है। सच पूछा जाए तो ये तीनों आपस में जुड़े हैं। चिपको आंदोलन से निकला नारा- 'क्या है जंगल के उपकार- मिट्टी पानी और बयार' बिलकुल सटीक है। जंगल यानी ऐसा वनस्पति समूह जहां पेड़ों की अधिकता हो, जहां पेड़ों के शीर्ष आपस में मिल- जुलकर घनी छाया प्रदान करते हों, जहां तक नजर जाए लंबे-घने पेड़ ही पेड़ दिखाई दें। खाद्य व कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार दुनिया का लगभग 29 प्रतिशत क्षेत्र जंगलों से ढंका है। इसमें वे स्थान भी शामिल हैं जिन्हें हम घने वन कहते हैं जहां वृक्षाच्छादन जमीन के 20 प्रतिशत अधिक है और वे भी जिन्हें हम विरल वन कहते हैं जहां यह प्रतिशत 20 से कम है। हमारे देश का लगभग 19 प्रतिशत क्षेत्र जंगल हैं। यहां लगभग 6,37,293 वर्ग कि.मी. में जंगल हैं। हमारे देश में 16 प्रकार के जंगल हैं। इनमें सूखे पतझड़ी वन 38 प्रतिशत और नम पतझड़ी वन 30 प्रतिशत हैं। लगभग 7 प्रतिशत वन कंटीले जंगल की श्रेणी में आते हैं।पर्वतीय स्थानों जैसे उत्तराखंड, हिमाचल पर सदाबहार वन और वर्षा वन भी मिलते हैं। वन सदियों से हमारे जीवन का आधार रहे हैं। इनसे हमें भोजन, इमारती लकड़ी, ईंधन और दवाइयां मिलती हैं। हमारा पूरा हर्बल चिकित्सा तंत्र वनों से प्राप्त होने वाली विभिन्न जड़ी- बूटियों पर ही टिका है। जंगल वन्य जीवों के प्राकृतवास हैं। जंगल है तो जंगल का राजा शेर है। शेर, बाघ आदि का पाया जाना एक अच्छे जंगल की निशानी है। जंगल जहरीले प्रदूषकों को सोखते हैं और हमें स्वच्छ वायु प्रदान करते हैं। ये पृथ्वी की जलवायु को नियंत्रित रखते है, वैश्विक तपन को कम करते हैं। जंगल बारिश के पानी को रोककर नदियों को बारहमासी बनाते हैं, भूमि के क्षरण को रोककर बाढ़ की आपदा घटाते हैं। ये दुनिया की 25 प्रतिशत औषधियों को सक्रिय तत्व उपलब्ध कराते हैं। परंतु खेद की बात है कि इतना उपकार करने वाले वन दिनों दिन सिकुड़ते जा रहे हैं। मुख्य कारण है बढ़ती जनसंख्या, उपभोक्तावाद और शहरीकरण।
वर्ष 1900 में विश्व में कुल वन क्षेत्र 700 करोड़ हैक्टर था जो 1975 तक घटकर केवल 289 करोड़ हैक्टर रह गया। 2000 में यह 230 करोड़ हैक्टर था। वनों के घटने की यह रफ्तार पर्यावरणविदों के लिए चिंता का विषय है। इन्हीं कारणों से चिपको एवं आपिको आंदोलनों की शुरुआत हुई थी। इस संदर्भ में जोधपुर की अमृता देवी का बलिदान नहीं भुलाया जा सकता जिन्होंने खेजड़ी वृक्षों को बचाया था। वनों के घटने से वर्षा कम होती है, वर्षा का पैटर्न बदल जाता है, उपजाऊ मिट्टी कम हो जाती है, भूक्षरण बढ़ता है,
पहाड़ी स्थानों पर भूस्खलन की घटनाएं बढ़ती है, भूमिगत जल का स्तर नीचे चला जाता है और जैव विविधता में कमी आती है।
पूरा विश्व इस चिंता से अवगत है। अत: पूरी दुनिया में पिछले 40 वर्षों से 21 मार्च को विश्व वानिकी दिवस मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य जनता को वनों के महत्व से अवगत कराना है। यह विचार युरोपियन कान्फेडरेशन ऑफ एग्रीकल्चर की 23 वीं आम सभा (1971) में आया था। तभी से इसे पूरी दुनिया में मनाया जा रहा है।
आइए इस पर विचार करें कि विश्व वानिकी दिवस के उपलक्ष्य में आम जन क्या कर सकते हैं- वनों को बचाने के खातिर इन बातों पर आज से ही अमल करना शुरू कर दें। अपने आस-पास फूलों वाले पेड़-पौधे लगाएं। इससे आपका पर्यावरण सुंदर लगेगा और साफ भी रहेगा। नीम, पीपल, बरगद, अमलतास जैसे पेड़ लगाएं। ये आपके घर के आस- पास ठंडक बनाए रखेंगे। इससे आप कम बिजली खर्च करेंगे। गर्मियों में आस- पास लगे पेड़ पौधों को पानी देकर बचाने का प्रयास करें। कागज के दोनों ओर लिखें। इससे आप 50 प्रतिशत कागज बचा सकते है। कागज बचाएंगे तो वन बचेगा। रीसायकल्ड कागज से बने बधाई कार्ड, लिफाफों आदि का प्रयोग करें। लिफाफों को बार-बार उपयोग करें। स्कूल कॉलेज में इस दिन जंगलों के बारे में अधिक जानने के लिए विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं। अपने आसपास के जंगल में घूमने जाएं। उनके ताने-बाने को समझें, पेड़- पौधों एवं जंतुओं के नाम पता करें। उनके उपयोग के बारे में आदिवासियों या अन्य जानकारों से पता करें। संरक्षण की पहली शर्त है जीवों से जान-पहचान। विश्व वानिकी दिवस पर यह प्रण लेें कि लकड़ी से बने फर्नीचर नहीं खरीदेंगे। आजकल स्टील एवं प्लास्टिक के चौखट मिलते हैं इनके उपयोग को बढ़ावा दें, इससे जंगलों पर दबाव कम होगा। विश्व वानिकी दिवस 21 मार्च के दूसरे ही दिन 22 मार्च को विश्वजल दिवस भी मनाया जाता है। पीने के पानी की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। इस वर्ष देश के कई हिस्सों में पानी बहुत कम गिरा है जिससे पानी की भयावह समस्या पैदा हो गई है। पानी को लेकर लड़ाई झगड़ा आम हो चला है। इस समस्या से निपटने के लिए पानी के स्रोतों को बचाकर और उपलब्ध पानी का उचित प्रबंधन ही एकमात्र उपाय है। इस मामले में भी आप काफी कुछ कर सकते हैं। जैसे स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल, में पानी बचाने का अभियान चलाएं, सफाई का काम पानी से नहीं झाड़ू से करें, नहाते एवं ब्रश करते समय नल को खुला ना छोड़ें, मोटे तौलिए की बजाय पतले तौलिए का उपयोग करें, अपने वाहन फव्वारे की बजाय गीले कपड़े से साफ करें, किचन का पानी, दाल-सब्जी धोने से निकला पानी, बर्तन धोने का पानी अपने बगीचे में पेड़-पौधों को दें। इससे आपके पौधे गर्मियों में भी बचे रहेंगे और साफ पानी की बचत भी होगी। इसके अलावा अपने घरों में वर्षा जल संग्रहण तकनीक को अपनाएं। इससे भूमिगत जल स्तर बढ़ता है। अपने आसपास के कुएं, बावडि़यों, तालाबों को गंदा ना करें। मुसीबत में ये परंपरागत जल स्रोत ही काम आते हैं, इनकी उपेक्षा न करें। याद रखें जल है तो कल है और वन है तो जल है। दोनों एक-दूसरे से जुड़े हैं, जीवन का आधार हैं । एक बार फिर जंगल के उपकारों को याद करके वन रक्षा का संकल्प करें। (स्रोत फीचर्स)
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