- गिरीश पंकज
सुन्दर एक जहान मिले
हर चेहरे मुसकान मिले
काश मिले मंदिर में अल्ला
मसजिद में भगवान मिले
वह घर पावन जिसमे गीता
बाइबिल और क़ुरान मिले
आते खाली जाते खाली
जितने भी इनसान मिले
धर्म-जात के झगड़े ना हों
ऐसा हिन्दुस्तान मिले
धनवालों के भीतर भी
सुन्दर इक इनसान मिले
सुख हम भीतर खोजेंगे
बाहर सब परेशान मिले
दान दे सकें हम सबको
क्यों सबका अहसान मिले
बस्ती में घर खोज रहा
वैसे बहुत मकान मिले
गढ़ें नई तक़दीर
उडऩे को तैयार रहो आकाश
बुलाता है,
पतझर से मत घबराना मधुमास
बुलाता है
मुड़ कर पीछे मत देखो मंज़िल तो
आगे है
जो रहता है पीछे बस पीछे रह
जाता है
मत रुकना तुम रात अरे यह बीत
रही देखो
एक नया सूरज बढ़ कर आवाज़
लगाता है
वर्तमान में रह कर जिसकी नजऱें
हैं कल पर
वही शख्स सचमुच स्वर्णिम
इतिहास बनाता है
आओ मेहनतकश हाथों से गढ़ें नई
तक़दीर
हर इंसा का करम उसी का
भाग्यविधाता है
वह तो एक फरिश्ता है इनसान
नहीं 'पंकज'
भीतर दु:ख का पर्वत है बाहर
मुसकाता है
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